उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा विभाग ने शिक्षामित्रों और अनुदेशकों के खिलाफ सख्त रुख अपनाने का फैसला किया है। यह कदम उन शिक्षकों के खिलाफ उठाया जा रहा है जो बिना अवकाश मंजूरी के अन्य विभागीय परीक्षाओं की तैयारी या निजी कार्यों में संलग्न हो रहे हैं। विभाग ने इस तरह की अनियमितताओं को गंभीरता से लिया है और कई जिलों से इस संबंध में विस्तृत जानकारी मांगी है।
अवैतनिक अवकाश का दुरुपयोग
सूत्रों के अनुसार, कई शिक्षामित्र और अनुदेशक अवैतनिक अवकाश का सहारा लेकर लंबे समय तक स्कूल से अनुपस्थित रहते हैं। वे इस अवकाश का उपयोग अन्य परीक्षाओं की तैयारी, निजी कार्यों या अन्य नौकरियों के लिए करते हैं। हैरानी की बात यह है कि शासन के नियमों में ऐसे अवैतनिक अवकाश का कोई प्रावधान नहीं है। फिर भी, कुछ शिक्षक बिना किसी औपचारिक अनुमति के छुट्टी लेते हैं, जिससे स्कूलों में पढ़ाई प्रभावित हो रही है और बच्चों का भविष्य खतरे में पड़ रहा है।
शासन का सख्त रवैया
विभाग ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए सभी संबंधित जिलों से रिपोर्ट तलब की है। अधिकारियों का कहना है कि यह प्रथा न केवल नियमों का उल्लंघन है, बल्कि शिक्षा व्यवस्था की गुणवत्ता को भी कमजोर करती है। शासन ने स्पष्ट किया है कि बिना मंजूरी अवकाश लेने वाले शिक्षकों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी। इसमें निलंबन से लेकर वेतन कटौती और अन्य अनुशासनात्मक कदम शामिल हो सकते हैं।
जमीनी हकीकत और चुनौतियां
शिक्षामित्रों और अनुदेशकों का तर्क है कि उनकी आर्थिक स्थिति और करियर की सीमित संभावनाएं उन्हें अन्य परीक्षाओं की तैयारी के लिए मजबूर करती हैं। हालांकि, विभाग का मानना है कि इसका समाधान अवैध रूप से छुट्टी लेना नहीं है। अधिकारियों का कहना है कि अगर कोई शिक्षक अपनी स्थिति से असंतुष्ट है या अन्य अवसर तलाशना चाहता है, तो उसे औपचारिक प्रक्रिया का पालन करना चाहिए। बिना सूचना के स्कूल छोड़ना बच्चों के प्रति उनकी जिम्मेदारी से भागने जैसा है।
आगे की राह
शिक्षा विभाग अब इस दिशा में ठोस नीति बनाने की तैयारी में है ताकि ऐसी अनियमितताओं पर लगाम लगाई जा सके। इसके लिए अवकाश नियमों को और सख्त करने, शिक्षकों की उपस्थिति पर निगरानी बढ़ाने और पारदर्शी व्यवस्था लागू करने की योजना है। साथ ही, जिला स्तर पर शिकायत निवारण तंत्र को मजबूत किया जाएगा ताकि शिक्षकों की वास्तविक समस्याओं का समाधान हो सके।
यह मामला एक बार फिर शिक्षा व्यवस्था में जवाबदेही और पारदर्शिता की जरूरत को उजागर करता है। शिक्षामित्र और अनुदेशक समाज के उस महत्वपूर्ण तबके का हिस्सा हैं जो बच्चों के भविष्य को संवारता है। ऐसे में, उनकी जिम्मेदारियों और अधिकारों के बीच संतुलन बनाना जरूरी है। विभाग की यह कार्रवाई न केवल अनुशासन को बढ़ावा देगी, बल्कि यह सुनिश्चित करेगी कि स्कूलों में पढ़ाई का माहौल बना रहे। अब देखना यह है कि इस सख्ती का असर जमीनी स्तर पर कितना प्रभावी साबित होता है।