बलिया। कभी सुंदरता और पोषण का प्रतीक रहे स्कूलों के किचन गार्डन आज लापरवाही के कारण बदहाली का शिकार हो गए हैं। परिषदीय विद्यालयों में बने ये गार्डन अब सूख रहे हैं और इनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है। हालात ऐसे हैं कि जो योजना बच्चों को पौष्टिक भोजन और पर्यावरण के प्रति जागरूकता देने के लिए शुरू की गई थी, वह पूरी तरह विफल होती दिख रही है।
राज्य शासन ने सरकारी स्कूलों में बच्चों को पौष्टिक आहार उपलब्ध कराने के लिए हर विद्यालय को 5-5 हजार रुपये आवंटित किए थे। इस राशि से किचन गार्डन में हरी सब्जियां और फलदार पौधे लगाने के साथ-साथ उनकी देखभाल की जिम्मेदारी भी तय की गई थी। योजना के तहत स्कूलों में जैविक खेती को बढ़ावा देना और बच्चों को इसके प्रति प्रेरित करना लक्ष्य था।
पांच साल में भी नहीं दिखा असर
यह योजना पिछले पांच सालों से चल रही है, लेकिन ज्यादातर स्कूलों में किचन गार्डन न तो सब्जियों के उत्पादन में सक्षम हो सके और न ही फलदार पेड़ विकसित हो पाए। गर्मी के मौसम में अधिकांश गार्डन सूख गए हैं और अब ये वीरान पड़े हैं। देखभाल के अभाव में ये गार्डन अपनी मंशा को पूरा करने में नाकाम रहे हैं।
शासन की मंशा अधूरी
किचन गार्डन योजना का उद्देश्य स्कूलों में पौष्टिक सब्जियों और फलों का उत्पादन बढ़ाना था। साथ ही, बच्चों में जैविक खेती और पर्यावरण संरक्षण के प्रति रुचि जगाना भी इसका हिस्सा था। लेकिन लापरवाही और खानापूर्ति के चलते न तो उत्पादन बढ़ पाया और न ही बच्चों को इससे कोई सीख मिल सकी।
अधिकारी का बयान
"स्कूलों में किचन गार्डन तैयार किए गए हैं। कई गार्डन बेहतर तरीके से संचालित हो रहे हैं और उन्हें बढ़ाने के लिए तेजी से काम किया जा रहा है।"
- अजीत पाठक, डीसी, एमडीएम, बलिया।
हालांकि, जमीनी हकीकत अधिकारियों के दावों से उलट नजर आती है। 400 स्कूलों के किचन गार्डन की यह दुर्दशा सवाल उठाती है कि क्या इस योजना को सफल बनाने के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे?