उत्तर प्रदेश के परिषदीय स्कूलों में कार्यरत हज़ारों प्राथमिक शिक्षकों के लिए सात साल से लंबित पदोन्नति का मामला अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निर्भर है। शिक्षकों की प्रमोशन प्रक्रिया में टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट (टीईटी) की अनिवार्यता को लेकर चल रहे विवाद का समाधान शीर्ष अदालत द्वारा किया जाएगा। 20 मार्च को इस मामले में अगली सुनवाई होनी है, जिसके बाद राज्य के 62,229 शिक्षकों की पदोन्नति प्रक्रिया में गति आने की उम्मीद है।
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पदोन्नति के लिए अनिवार्य है TET
एनसीटीई ने सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल शपथपत्र में नियुक्ति और पदोन्नति को लेकर स्थिति स्पष्ट की है। एनसीटीई के अनुसार तीन सितंबर 2001 के पूर्व नियुक्त शिक्षक, तीन सितंबर 2001 को एनसीटीई के शिक्षकों की योग्यता से संबंधित विनिमय आने के बाद तीन सितंबर 2001 से 23 अगस्त 2010 के बीच नियुक्त शिक्षक और 23 अगस्त 2010 को एनसीटीई की अधिसूचना जारी होने के बाद 29 जुलाई 2011 तक एनसीटीई के विनिमय 2001 से नियुक्त शिक्षक को सेवा में बने रहने के लिए टीईटी की परीक्षा से राहत दी गई है।
सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नति में टीईटी को अनिवार्य कराने के लिए पैरवी कर रहे राहुल पांडे का कहना है कि एनसीटीई ने 12 नवंबर 2014 को अधिसूचना जारी करके पदोन्नति में न्यूनतम योग्यता को अनिवार्य किया है। शपथ पत्र में एनसीटीई ने साफ किया है कि आरटीई एक्ट के तहत एनसीटीई की अधिसूचना 31 मार्च 2010 अनुसार पदोन्नति व नियुक्ति में 29 जुलाई 2011 के पूर्व नियुक्त समस्त शिक्षकों को टीईटी उत्तीर्ण करना होगा।
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क्या होगा आगे?
20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस विवाद का अंतिम समाधान कर सकता है। यदि टीईटी को अनिवार्य माना गया, तो हज़ारों शिक्षकों को यह परीक्षा उत्तीर्ण करनी होगी। वहीं, यदि छूट का प्रावधान लागू होता है, तो सात साल से अटके प्रमोशन का रास्ता साफ हो जाएगा। कोर्ट के निर्णय का असर केवल यूपी पर ही नहीं, बल्कि देशभर के शिक्षक नियमों पर पड़ेगा।
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शिक्षक संघों और प्रशासन के बीच यह मामला लंबे समय से विवादित रहा है। अब सभी की निगाहें 20 मार्च को होने वाली सुनवाई पर टिकी हैं, जो शिक्षकों के भविष्य और देश की शिक्षा नीति दोनों के लिए अहम साबित होगी।