मानदेय बढ़ने के इंतजार में 1.42 लाख शिक्षामित्र, जानिए इसके आलावा क्या हैं मांगें

 

यूपी के प्राइमरी स्कूलों में तैनात 1.42 लाख शिक्षामित्र आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। दूसरे बच्चों का भविष्य संवार रहे शिक्षामित्र 10 हजार रुपये मानदेय में अपने बच्चों की पढ़ाई, परिवार का पालन पोषण व उपचार का खर्च नहीं उठा पा रहे हैं। 20 से 25 वर्ष की सेवा पूरी कर चुके 80 फीसदी शिक्षामित्र अधेड़ हो चुके हैं। उनका भविष्य असमंजस में हैं। सहायक शिक्षक बनने के बाद से दोबारा फिर उसी पद पर सेवाएं दे रहे शिक्षामित्र प्रदेश सरकार से मानदेय बढ़ाने की उम्मीद लगाए बैठे हैं। मुख्यमंत्री से लेकर विभागीय अफसर मानेदय बढ़ाने का आश्वासन दे चुके हैं। इन्हें अब उस पल का इंतजार है, कि कब सरकार बढ़े हुए मानदेय का ऐलान करे...

देश सरकार ने वर्ष 1999 में प्राइमरी स्कूलों में शिक्षकों की कमी को दूर करने के लिये 2250 प्रति माह के मानदेय पर शिक्षामित्रों की भर्ती शुरू की। ग्राम प्रधान की संस्तुति पर शिक्षामित्रों की प्राइमरी स्कूलों में नियुक्त हुई। वर्ष 2009 तक पूरे प्रदेश में 1.72 लाख शिक्षामित्र सेवा में लिये गए। वर्ष 2004 में 150 रुपये मानदेय बढ़ाकर 2400 रुपये किया गया। वर्ष 2007 में प्रदेश सरकार ने शिक्षामित्रों का मानदेय बढ़ाकर तीन हजार रुपये कर दिया।


वर्ष 2010 में शिक्षामित्रों ने मानदेय बढ़ाने को लेकर शहीद स्मारक के पास बड़ा आन्दोलन किया। उस समय 1.24 लाख शिक्षामित्र स्नातक थे। सरकार ने पहले बैच में 60 हजार और दूसरे चरण में करीब 92 हजार शिक्षामित्रों को दो वर्षीय प्रशिक्षण दिलाया। वर्ष 2014 में तत्कालीन सपा सरकार ने शिक्षामित्रों का सहायक शिक्षक के पद समायोजन का शासनादेश जारी किया। प्रदेश भर के 1.37 शिक्षामित्र सहायक शिक्षक के पद पर समायोजित किये गए। इन्हें शिक्षकों के समान वेतन और अन्य सुविधाएं मिलने लगी। एक वर्ष बाद 2015 में हाईकोर्ट ने शिक्षामित्रों के समायोजन पर रोक लगा दी। सरकार सुप्रीम कोर्ट गई। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को सही ठहराया। हालांकि कोर्ट ने सरकार को शिक्षकों की खुली भर्ती के जरिये लम्बे समय से सेवाएं दे रहे शिक्षामित्रों को सेवा अविधि के अनुसार तय अंक के भरांक के साथ चयन करने के निर्देश जारी किये। दो अलग-अलग शिक्षक भर्ती में करीब 15 हजार शिक्षामित्र ही शिक्षक बन पाए। बाकी के शिक्षामित्र के पद पर कार्य कर रहे हैं। आज कम मानदेय के कारण प्रदेश के 1.42 लाख शिक्षामित्र तंगी में दिन गुजारने को मजबूर हैं। कई बार मांगों को लेकर प्रदर्शन के बाद भी इनकी स्थिति में कोई सुधार नहीं आ सका है।




लखनऊ में 1925 शिक्षामित्र दे रहे सेवाएं
लखनऊ के अलग अलग प्राइमरी स्कूलों में 1925 शिक्षामित्र सेवाएं दे रहे हैं। कई स्कूल शिक्षामित्रों के भरोसे चल रहे हैं। बच्चों को पढ़ाने से लेकर सारे काम निपटा रहे हैं। स्कूलों में परीक्षा व अन्य महत्वपूर्ण काम आने पर महिला शिक्षक सीसीएल व मेडिकल अवकाश ले लेतर हैं। ऐसे में स्कूल में परीक्षा से लेकर अन्य कामों की जिम्मेदारी शिक्षामित्रों पर आ जाती है। फिर भी शिक्षामित्र बिना छुट्टी लिये जिम्मेदारी निभा रहे हैं लेकिन इनके मानदेय बढ़ाने पर अधिकारी चुप हैं।

आर्थिक तंगी से परेशान हो चुके हैं शिक्षामित्र
शिक्षामित्रों के आगे 10 हजार रुपये के मानदेय में परिवार चलाना बहुत मुश्किल हो रहा है। बढ़ती महंगाई में सारे शिक्षामित्र आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। इतने कम मानदेय में यह अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ा भी नहीं पा रहे हैं। बीमार होने पर इलाज भी नहीं करा पा रहे। मानदेय बढ़ाने को लेकर विभागीय अधिकारी, मंत्री से लेकर शासन के अफसरों के यहां गुहार लगा चुके हैं लेकिन उन्हें सिर्फ आश्वासन ही मिल सका है। 20 से 25 वर्ष की सेवा पूरी कर चुके शिक्षामित्रों का भविष्य अधर में है।

सेवानिवृत्ति की उम्र 60 से 62 की जाए
शिक्षामित्रों का कहना है कि उनकी सेवा उम्र 60 साल है। साल में सिर्फ 11 छुट्टियां मिलती हैं। जबकि उसी स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षकों की सेवानिवृत्ति 62 वर्ष है। शिक्षकों को सीसीएल, मेडिकल लीव, सीएल आदि का अवकाश की सुविधा है। शिक्षामित्रों की मांग है कि उनकी सेवानिवृत्ति की आयु को 60 से बढ़ाकर 62 साल किया जाना चाहिए। इसके अलावा बीमार होने पर मेडिकल लीव समेत अन्य छुट्टियां दी जाएं। ताकि अवकाश लेने प्पर मानदेय की कटौती न होने पाए।

● मानदेय न बढ़ने से शिक्षामित्रों के आगे बढ़ी आर्थिक तंगी

● पदोन्नति का लाभ नहीं मिल रहा है। जिस पद पर भर्ती उसी पद से सेवानिवृत्ति।

● बीमार होने पर चिकित्सा अवकाश की सुविधा नहीं, छुट्टी लेने पर मानदेय काट लिया जाता है।

● किसी भी तरह का स्वास्थ्य बीमा नहीं, बीमारी में जेब पर पड़ता बोझ।

● जनवरी शीतकालीन और जून ग्रीष्मकालीन अवकाश में 15-15 दिन का मानदेय नहीं दिया जाता है।

● शिक्षक के समान योग्यता और टीईटी पास शिक्षामित्रों का समायोजन किया जाए

● फिलहाल सरकार बढ़ा हुआ मानदेय जल्द लागू करे

● शिक्षामित्रों को भी शिक्षकों की तरह पदोन्नति की व्यवस्था की जाए

● पढ़ाई के अलावा दूसरे कामों से मुक्त किया जाए।

● छुट्टियां, चिकित्सा अवकाश और स्वास्थ्य बीमा की सुविधा दी जाए।



बीएलओ और परीक्षा ड्यूटी भी करते
शिक्षामित्रों से भी शिक्षकों की तरह सभी काम लिये जा रहे हैं। शिक्षामित्र बच्चों को पढ़ाने के साथ, बीएलओ ड्यूटी, बोर्ड परीक्षा और हाउस होल्ड सर्वे से लेकर अन्य विभागीय कामकाज में हाथ बंटा रहे हैं। कई स्कूलों में शिक्षामित्र ही बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। यह बच्चों और स्कूल को निपुण बनाने में सहयोग दे रहे हैं फिर भी इनके भविष्य के बारे में कोई नहीं सोच रहा है। विभाग भी सिर्फ शिक्षकों को सम्मानित करता है। इससे शिक्षामित्रों में आक्रोश है। शिक्षामित्रों का कहना है कि प्रधानाध्यापक और शिक्षक भी शिक्षामित्रों को हीन भावना से देखते हैं।

स्मार्टफोन का खर्च कैसे उठाएं...

शिक्षामित्रों का कहना है कि विभाग के अधिकारियों ने स्मार्ट फोन खरीदवा दिया। जबकि 10 हजार रुपये के मानदेय में स्मार्ट फोन खरीदने के बाद माह खर्च चलाना मुश्किल हो गया। ऊपर से हर महीने डाटा रिचार्च भी कराना जरूर है। स्मार्ट फोन पर विभागीय ऐप अपलोड करायी गई हैं। जिनकी मदद से बच्चों को पढ़ाया जाता है। स्मार्ट फोन की मदद से बच्चों का ब्योरा अपलोड करने के साथ ही विभागीय काम काज भी कराए जा रहे हैं। ऐसे में सरकार को चाहिए कि रिचार्ज और हर माह डाटा के रुपये शिक्षामित्रों को मुहैया कराए।

11 माह का मानदेय काफी नहीं

शिक्षामित्रों का कहना है कि इन्हें सिर्फ 11 माह का मानदेय मिलता है। प्राइमरी स्कूलों में 31 दिसम्बर से 14 जनवरी के बीच शीतकालीन और जून में 15 दिन गर्मियों की छुट्टियां होती है। इन छुट्टियों का मानदेय शिक्षामित्रों को नहीं मिलता है। जबकि शिक्षकों को इन दिनों का वेतन दिया जाता है। इतने कम मानदेय में दो महीने 15-15 दिन का मानेदय काटने पर सिर्फ पांच-पांच हजार रुपये मिलता है। सरकार को चाहिए कि कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालयों के शिक्षकों और कर्मचारियों की तरह 11 माह 29 दिन का मानेदय दें।



चाइल्ड केयर लीव भी मिले

महिला शिक्षामित्र लम्बे समय से चाइल्ड केयर लीव (सीसीएल) की मांग कर रही हैं। छोटे बच्चों की बीमारी व परवरिश के लिए छुट्टी लेने पर इनका मानदेय काट लिया जाता है। कई महिला शिक्षा मित्र हैं। जिन्होंने बच्चों के लिये पूरे माह अवकाश लिया। उस महीने का इन्हें मानदेय नहीं मिला है। सरकार की दोहरी नीति से शिक्षामित्रों में आक्रोश है। इनकी सरकार से मांग है कि शिक्षकों की तरह इन्हें भी सीसीएल का लाभ दिया जाए।


तबादले का शासनादेश लागू किया जाए

सरकार ने तबादले का शासनादेश जारी कर दिया है, लेकिन इसे लागू अभी तक नहीं किया जा रहा है। सरकार को चाहिए कि जल्द इस शासनादेश को लागू कराए। ताकि शिक्षामित्रों को नजदीकी स्कूल में तबादले का लाभ मिल सके। कई महिला शिक्षामित्रों की दलील है कि उनकी शादी दूसरे जिले में हुई है। वह पढ़ाने दूसरे जिले में जा रही हैं। मानदेय के आधे रुपये किराए में ही खर्च हो जाते हैं। इसी तरह उसी जिले में बहुत से शिक्षामित्र 50 किमी. से अधिक दूर के स्कूलों में सेवाएं दे तबादले का शासनदेश लागू होने से उन्हें अपने घर के पास के स्कूल में आने का मौका मिलेगा।