नए बजट से उम्मीदें वही पुरानी

महंगाई से परेशान मध्यवर्ग को यदि आयकर में राहत मिलती है, तो इससे बाजार में खपत बढे़गी, जिससे अर्थव्यवस्था रफ्तार पकडे़गी और सरकार की कमाई भी बढे़गी।


भारत में सबसे ज्यादा बजट पेश करने का रिकॉर्ड हासिल करने के बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अब अपना आठवां बजट पेश करने जा रही हैं। उनसे पहले सबसे ज्यादा बजट पेश करने का रिकॉर्ड मोरारजी देसाई के नाम था, जिन्होंने छह बजट पेश किए थे। बजट का नाम आते ही अर्थ और वित्त जगत ही नहीं, बल्कि खबरों पर नजर रखने वाले हरेक भारतीय के मन में सवाल उठने लगते हैं या उम्मीदें जागने लगती हैं। ज्यादातर के मन में सबसे बड़ा सवाल यही होता है कि बजट से हमें क्या मिलेगा?



कुछ साल पहले तक बजट के बाद की सबसे बड़ी हेडलाइन होती थी- क्या महंगा हुआ और क्या सस्ता! तब कस्टम, एक्साइज और दूसरे अप्रत्यक्ष कर भी यहीं कम या ज्यादा किए जाते थे। जीएसटी आने के बाद से यह काम करीब-करीब खत्म हो चुका है। अब महंगे-सस्ते का मामला सिर्फ सीमा शुल्क में फेरबदल तक सीमित रह गया है। उद्योगों और बडे़ व्यापारियों की नजर अब उन नीतियों पर होती है, जिनका फायदा या नुकसान उन्हें तुरंत, निकट भविष्य में या फिर लंबे दौर में होने की गुंजाइश दिखती है। लेकिन आम आदमी के लिए अब सबसे जरूरी चीज ‘इनकम टैक्स’ का हिसाब रह गई है।


खबरें चलने लगी हैं कि इस बार वित्त मंत्री आयकर के मामले में बड़ा दिल दिखाने वाली हैं। चर्चा तो यहां तक चल रही है कि कर-मुक्त आय की सीमा, यानी इनकम टैक्स का पहला स्लैब बढ़ाकर 15 लाख रुपये सालाना किया जा सकता है। अभी पुरानी टैक्स व्यवस्था में ढाई लाख रुपये और नई व्यवस्था में तीन लाख रुपये तक की कमाई टैक्स फ्री होती है। हालांकि, ‘स्टैंडर्ड डिडक्शन’ और दूसरी रियायतें मिलाकर सात लाख से पौने आठ लाख रुपये तक की कमाई टैक्स फ्री हो जाती है। जानकारों को लगता है कि ऐसी संभावना तो नहीं है कि सरकार तीन लाख की इस लिमिट को सीधे बढ़ाकर पंद्रह लाख रुपये कर दे, लेकिन ऐसा हो सकता है कि वेतनभोगी कर्मचारियों के लिए स्टैंडर्ड डिडक्शन और बाकी सबके लिए भी इनकम टैक्स से छूट वाले निवेश की सीमाएं बढ़ाकर दूसरे रास्ते से उन्हें राहत दी जाए।


आम आदमी और मजदूर संघों ने तो यह सीमा बढ़ाने की मांग की ही है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुडे़ भारतीय मजदूर संघ ने भी दस लाख रुपये तक की कमाई को टैक्स फ्री करने की मांग की है। साथ ही, सीआईआई जैसे बडे़ उद्योग संगठन की बजट मांगों में भी आयकर के मोर्चे पर कई तरह की राहत का सुझाव दिया गया है। उसे भी लगता है कि महंगाई की वजह से खासकर मध्यवर्ग के कम आय वर्ग के लिए खर्चा चलाना मुश्किल हो रहा है। दूसरी तरफ, उसने यह तर्क भी दिया है कि जहां कंपनियों के इनकम टैक्स, यानी कॉरपोरेट टैक्स की सबसे ऊंची दर 25.17 प्रतिशत है, वहीं सरचार्ज और सेस जोड़ने के बाद व्यक्तिगत इनकम टैक्स की सबसे ऊंची दर 42.74 फीसदी हो जाती है। सीआईआई को लगता है कि यह फर्क बहुत ज्यादा है, इसको कम किया जाना चाहिए।


यहां यह गलतफहमी नहीं होनी चाहिए कि सीआईआई अचानक धर्मार्थ संगठन हो गया है या वह समाजसेवा के लिए ऐसी सलाह दे रहा है। उसने साफ किया है कि ऐसे कदम उठाने से क्या होगा, जिससे न सिर्फ सीआईआई, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी फायदा होगा। उसका कहना है कि महंगाई से परेशान मध्यवर्ग को अगर टैक्स में यह राहत मिलती है, तो इससे बाजार में खपत बढे़गी, जिससे अर्थव्यवस्था रफ्तार पकडे़गी और सरकार की कमाई भी बढे़गी। यही अर्थव्यवस्था का चक्र है, जिसको तेज करने की जरूरत है।


गरीबों को मदद या रेवड़ी दिए जाने के इस दौर में सीआईआई ने एक सुझाव यह भी दिया है कि गरीबों को नकद रकम के बजाय वाउचर दिए जाने चाहिए, जिनको वे किसी खास चीज पर ही खर्च कर सकें और वह भी तय समय-सीमा के भीतर। सुझाव यह भी है कि ऐसे वाउचर जन-धन खाता खोल चुके ऐसे ही लोगों को दिए जाएं, जिन्हें किसी भी अन्य सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल रहा हो। इससे दो बातें होंगी। एक तो कुछ खास उत्पादों या सेवाओं पर खर्च बढ़ेगा, यानी उन उद्योगों या कारोबार के ग्राहक तैयार होंगे, दूसरे यह सुनिश्चित होगा कि सरकार जो धन दे रही है, लाभार्थी उसे खर्च भी कर रहे हैं। इसको किसी उद्योग संगठन का सीधा स्वार्थ भी माना जा सकता है।


एक सुझाव ऐसा भी आया है, जिसका मध्यवर्ग यकीनन स्वागत करेगा। सीआईआई का कहना है कि बैंक में जमा रकम पर जो ब्याज मिलता है, उस पर इनकम टैक्स की दर सामान्य से कम होनी चाहिए। इसके पीछे भी तर्क है। वित्त वर्ष 2019-20 में भारतीय परिवारों की बचत का 56.4 प्रतिशत हिस्सा बैंकों में जमा होता था, साल 2023-24 में यह हिस्सेदारी घटकर 45.2 फीसदी रह गई है। इसकी बड़ी वजह शेयर बाजार और म्यूचुअल फंड वगैरह के मुकाबले कम रिटर्न के साथ ही उस पर लगने वाला टैक्स भी है। खासकर बुजुर्गों और बैंक में ही बचत रखने वाले लोगों के लिए यह एक अच्छा कदम हो सकता है।


सीआईआई का एक अन्य सुझाव महंगाई पर हमला करने और अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने में बड़ी भूमिका निभा सकता है। बजट की लिस्ट में यह उसकी पहली ही मांग है। उसका कहना है कि अब सरकार को पेट्रोल-डीजल पर ‘एक्साइज डॺूटी’ घटानी चाहिए। मई 2022 के बाद से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का दाम करीब 40 प्रतिशत गिर चुका है, लेकिन इस शुल्क में फेरबदल नहीं हुआ है। अभी पेट्रोल के दाम में 21 प्रतिशत और डीजल में 18 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ ‘सेंट्रल एक्साइज डॺूटी’ का ही है। जाहिर है, महंगाई में भी इसकी हिस्सेदारी बहुत बड़ी है। यह डॺूटी कम की गई, तो इसका सीधा असर महंगाई पर दिखेगा और लोगों के हाथ में खर्च करने के लिए कुछ रकम और बचेगी।


हजारों ख्वाहिशें वित्त मंत्री के पास पहुंच चुकी हैं, लेकिन इनमें से कितनी पूरी हो पाती हैं, यह खासकर इस बात पर निर्भर रहेगा कि सरकारी खजाने का हाल कैसा है। अभी तक की खबरें तो अच्छा संकेत दे रही हैं, लेकिन विकास के मोर्चे पर कुछ चिंताएं भी पैदा होती दिख रही हैं। इस स्थिति में कुछ ऐसे ही उपाय कारगर हो सकते हैं, जिनसे न सिर्फ आम आदमी को राहत मिले, बल्कि अर्थव्यवस्था को भी रफ्तार पकड़ने में मदद मिल सके।आज की अन्य सभी खबरों के लिए यहां क्लिक करें