रिपोर्ट: मां-बाप से बेहतर संवाद न होने के कारण घर से भागते हैं बच्चे

 

नई दिल्ली। माता-पिता के साथ बेहतर संवाद की कमी, पढ़ाई में अच्छे अंक लाने का दबाव और आजादी में कमी करने कारण किशोर उम्र के बच्चे घर से भाग रहे हैं। इतना ही नहीं, किशोरों से दो गुना से भी अधिक संख्या में किशोरियां घरों से लापता हो रही हैं।



यह खुलासा भारतीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के एक शोध में हुआ है। शोध में यह भी पता चला कि भागने के बाद जब बच्चे घर वापस लौटते हैं तो उनमें से 25 फीसदी स्कूल जाना बंद कर देते हैं। इस मामले में भी लड़कियों का प्रतिशत अधिक है। शोध रिपोर्ट में बच्चों के लापता होने के कई कारणों का जिक्र करते हुए कहा गया है कि किशोर उम्र के बच्चे प्रेम संबंध, साथियों के प्रभाव, पढ़ाई से संबंधित दबाव और घर में बहस विवाद के चलते घर से भागते हैं।


शोध में कहा गया है कि आंकड़ों का विश्लेषण से पता चलता है कि पढ़ाई में अच्छे अंक लाने के दबाव, शारीरिक दंड, स्वतंत्रता की कमी के कारण बच्चों में अपने माता-पिता के प्रति नाराजगी की भावना विकसित हो जाती है। इसी वजह से उनमें घर से भागने की प्रवृत्ति उभरती है। आयोग के निर्देश पर न्यू कॉन्सेप्ट सेंटर फॉर डेवलपमेंट कम्यूनिकेशन, नई दिल्ली द्वारा किए गए इस शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि घर से लापता होने वाले किशोरियों की औसत आयु 16 वर्ष पाई गई है, जबकि किशोरों की औसत आयु 14.5 साल है। इसमें कहा गया है कि लापता बच्चों में से 71 फीसदी लड़कियां और 29 फीसदी लड़के थे। शोध रिपोर्ट में 2021 के आंकड़ों के आधार पर विश्लेषण किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार किशोरावस्था की शुरुआत में ज्यादा लड़के लापता हुए।

बेहतर पैरेंटिंग जरूरी

रिपोर्ट में कहा गया है कि परिवार आधारित पैरेंटिंग से इस समस्या को कम कर सकते हैं। इसके तहत माता-पिता और किशोरों के बीच संवाद बहुत जरूरी है। पारिवारिक संबंधों को मजबूत करने वाले और पैरेंटिंग कौशल में सुधार करने वाले कार्यक्रम से युवाओं की समस्याओं को कम किया जा सकता है।


ऐसे किया गया शोध

शोध में बच्चों के लापता होने के कारणों का पता लगाने के लिए दिल्ली से भागे बच्चों से जुड़े मामले का अध्ययन किया गया। इसमें प्रश्नावली के आधार पर बच्चों के साक्षात्कार को भी शामिल किया गया। रिपोर्ट के मुताबिक 51 फीसदी बच्चे अपने स्कूल या ट्यूशन के आने-जाने के समय भागते हैं।


प्रमुख आंकड़े

●भागने वाले बच्चों में 83 फीसदी हिंदू जबकि 13 फीसदी मुस्लिम।


●64बच्चे सामान्य श्रेणी के थे, 20 ओबीसी वर्ग, 9 एससी वर्ग और 3 एसटी वर्ग के थे।


●89 फीसदी मामलों में, बच्चे के माता-पिता दोनों जीवित थे।