55 से 18 हजार पहुंचा न्यूनतम वेतन, पहले वेतन आयोग में संरचना को तर्कसंगत बनाया

नई दिल्ली,  आजादी के बाद देश की आर्थिक तरक्की के साथ सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों के वेतनमान में लगातार वृद्धि होती गई। अभी तक गठित वेतन आयोग की सिफारिशों को देखा जाए तो आजादी के 78 वर्षों में न्यूनतम वेतनमान में 32,627 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। जबकि अधिकतम वेतनमान में 12,500 प्रतिशत का इजाफा हुआ। अब आठवें वेतन आयोग को हरी झंडी मिलने के बाद सरकारी कर्मचारियों को फिर से बड़ी सौगात मिलने की संभावना है।



अभी तक गठित वेतन आयोग की सिफारिशों को देखा जाए तो समय के साथ सरकारी कर्मचारियों व अधिकारियों को मिलने वाले वेतनमान के साथ-साथ अन्य भत्तों में भी खासा इजाफा हुआ है। सात वेतन आयोग के जरिए कर्मचारियों की वेतन वृद्धि व अन्य तरह के लाभ प्रदान किए गए हैं।


पहले वेतन आयोग में संरचना को तर्कसंगत बनाया


पहला वेतन आयोग 1947 में आया, जिसमें कर्मचारी का न्यूनतम मासिक वेतन 55 रुपये और अधिकतम दो हजार रुपये रखा गया था। वहीं, 2016 में लागू की गई सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के जरिए न्यूनतम वेतन 18 हजार रुपये और अधिक ढाई लाख रुपये मासिक कर दिया गया। पहले वेतन आयोग में आजादी के बाद कर्मचारियों की वेतन संरचना को तर्कसंगत बनाने पर ध्यान दिया गया। वहीं, दूसरे वेतन आयोग ने देश की अर्थव्यवस्था और जीवन-यापन की लागत को संतुलित करने पर ध्यान केंद्रित किया। इसके बाद आए वेतन आयोगों का लक्ष्य लोगों की जीवन शैली, विभिन्न पदों पर वेतन में असमानताओं को कम करने, सरकारी कार्यालयों के आधुनिकीकरण और वेतन बैंड व ग्रेड वेतन की शुरुआत की गई। सातवें वेतन आयोग में ग्रेड वेतन प्रणाली की जगह एक नए वेतन मैट्रिक्स की सिफारिश की गई।