बच्चे की कस्टडी तय करने का अधिकार आयोग को नहीं

 लखनऊ, । हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि प्रथम दृष्टया मानवाधिकार आयोग को बच्चों की कस्टडी के विवाद की सुनवायी करने का अधिकार नहीं है।




सेवानिवृत्त जज शारदा प्रसाद द्विवेदी की बेटी प्रीती के संदिग्ध हालत में मृत्यु के पश्चात उसके बच्चों की कस्टडी को लेकर उपजे विवाद में राज्य मानवाधिकार आयोग ने बच्चों को अपने समक्ष पेश किए जाने का आदेश दिया था। न्यायालय ने अपने आदेश में आयोग के उक्त आदेश को प्रथम दृष्टया क्षेत्राधिकार से बाहर का बताते हुए, कस्टडी पर सुनवायी करने से रोक दिया है।यह आदेश न्यायमूर्ति राजन रॉय व न्यायमूर्ति बृजराज सिंह की खंडपीठ ने प्रभा शंकर द्विवेदी व अन्य की याचिका पर पारित किया है। याची की ओर से अधिवक्ता गौरव मेहरोत्रा ने दलील दी कि मामले में रिटायर्ड जज की बेटी की संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु के पश्चात पीजीआई थाने में एफआईआर दर्ज हुयी है, जिसके पश्चात मृतका के पति रवींद्र को जेल भेजा जा चुका है, रवींद्र और प्रीती के 11 वर्ष व 3 वर्ष के बच्चे फिलहाल याची जो बच्चों के दादा हैं व उनके परिवार के साथ हैं।


कहा गया कि रिटायर्ड जज के प्रार्थना पत्र पर आयोग ने 14 नवंबर 2024 और 5 दिसम्बर 2024 को बच्चों को पेश करने का आदेश पारित किया। दलील दी गई कि बच्चों की कस्टडी के मामलों की सुनवायी गार्जियंस एंड वार्ड्स एक्ट तथा दूसरे प्रावधानों के तहत सक्षम न्यायालय में हो सकती है लेकिन मानवाधिकार आयोग को इस प्रकार के विवाद पर सुनवायी का कोई अधिकार नहीं है। याचिका विरोध करते हुए, वादी के अधिवक्ता अपूर्व तिवारी की दलील थी कि बच्चों के याची के कस्टडी में होने के कारण विवेचनाधिकारी उनका बयान नहीं दर्ज कर पा रहा है। इस पर याची की ओर से कहा गया कि विवेचनाधिकारी कई बार याची के घर जांच के लिए आ चुके हैं और वह जब चाहें बच्चों का बयान ले सकते हैं।