केंद्र सरकार ने स्कूली विद्यार्थियों को आठवीं कक्षा तक अनुत्तीर्ण (फेल) नहीं करने की नीति बदल दी है। अब पांचवीं और आठवीं कक्षा की नियमित रूप से परीक्षाएं ली जाएंगी और अनुत्तीर्ण छात्रों को अगली कक्षा में प्रवेश नहीं दिया जाएगा। हालांकि दो महीने में ऐसे विद्यार्थियों को एक और अवसर मिलेगा। दूसरी परीक्षा में भी सफल नहीं होने पर उन्हें पुरानी कक्षा में ही पढ़ाई करनी होगी।
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग ने इस संबंध में आदेश जारी कर दिए हैं। नया नियम मौजूदा शैक्षणिक सत्र से ही लागू होगा। संशोधित नियमों के अनुसार यदि छात्र पुनः परीक्षा में भी सफल नहीं होता, तो उसे उसी कक्षा में रोक दिया जाएगा। इस दौरान शिक्षक छात्र का विशेष मार्गदर्शन करेंगे। शिक्षक न केवल छात्र के प्रदर्शन पर ध्यान देंगे, बल्कि उनके माता-पिता को भी आवश्यक सहायता प्रदान करेंगे। शिक्षक छात्रों के प्रदर्शन का आकलन करेंगे और कमी को दूर करने के लिए सुझाव देंगे। स्कूल के प्रधानाध्यापक ऐसे छात्रों की सूची बनाएंगे और उनके विकास की नियमित रूप से निगरानी करेंगे। इस प्रक्रिया का उद्देश्य छात्रों को उनकी जरूरत के अनुसार सहायता उपलब्ध कराना है। छात्रों को रटने और प्रक्रियात्मक कौशल पर आधारित सवालों के बजाय उनके समग्र विकास व व्यावहारिक ज्ञान को परखा जाएगा।
15 वर्ष पहले बनी थी नीति गुणवत्ता में आई कमी
तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने वर्ष 2009 में निश्शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम बनाया था, जिसमें आठवीं तक बच्चों को फेल करने पर रोक लगा दी गई। वर्ष 2010 में इसे पूरे देश में लागू कर दिया गया। प्रारंभिक शिक्षा के दौरान किसी भी छात्र को अनुत्तीर्ण नहीं करने के नियम के चलते पढाई की गुणवत्ता में काफी गिरावट आई है। इसलिए केंद्र सरकार ने 15 साल बाद फिर नियमों में बदलाव करते हुए पांचवीं व आठवीं में प्रदर्शन के आधार पर अगली कक्षा में भेजने का नियम बनाया है।