प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आर्थिक तंगी से जूझ रही मृतक आश्रित बेटी को शिक्षा विभाग में तीन महीने में नियुक्ति देने का आदेश दिया है। कहा कि केवल पांच साल देरी से दावा करने के आधार पर नौकरी देने की मांग नहीं खारिज की जा सकती है। दावे पर विचार करते वक्त परिवार की आर्थिक स्थिति पर भी विचार करना होगा। हालांकि, मौजूदा मामले में याची ने नाबालिग रहते हुए पांच साल के भीतर दावा कर दिया था।
यह आदेश न्यायमूर्ति अजय भनोट की अदालत ने झांसी निवासी इंदु चंदेल की ओर याचिका स्वीकार करते हुए दिया है। इंदु की मां कंचन लता पाल झांसी के बबीना के पूर्व माध्यमिक विद्यालय खैरा में सहायक अध्यापक के पद पर तैनात थीं। 21 नवंबर 2010 को उनकी मृत्यु हो गई। उस वक्त पति असाध्य रोग से पीड़ित थे और बेटी इंदु नाबालिग थी। मां की मौत के बाद परिवार की आर्थिक हालत बेहद खराब हो गई।
इंदु ने मृतक आश्रित के तौर पर नौ अक्तूबर 2015 को नौकरी के लिए
आवेदन किया। तत्कालीन बीएसए झांसी ने नाबालिग होने के आधार पर उसे नौकरी देने से इन्कार कर दिया। कहा कि वह बालिग होने पर आवेदन करे। इंदु ने बालिग होने के बाद 2016 में पुनः आवेदन किया तो मामला पांच साल की देरी का बना। बीएसए ने अनुमति के लिए मामले को राज्य सरकार को संदर्भित कर दिया। विशेष सचिव ने 12 जून 2018 को यह कहते हुए अनुमति देने से इन्कार कर दिया कि आवेदन पांच साल बाद दिया गया है। इसी आधार पर बीएसए ने याची का दावा खारिज कर दिया।
इसके खिलाफ याची ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। याची के
अधिवक्ता अनुराग त्रिपाठी व आदित्य शुक्ल ने दलील दी कि याची का पहला आवेदन पांच साल के भीतर दिया गया था।
लेकिन, उस व्यक्त याची नाबालिग थी। वयस्कता आयु प्राप्त करने के बाद दिया आवेदन बालिग होने के बाद का है। याची के पिता गंभीर रूप से बीमार हैं और घर की आर्थिक हालत बेहद खराब है। कोर्ट
ने शासन के विशेष सचिव व बीएसए झांसी के आदेश को रद्द कर तीन माह में नियुक्ति प्रदान करने का आदेश दिया।
कोर्ट ने कहा कि पहले आवेदन के वक्त याची नाबालिग थी। इसलिए उसे आवेदन में देरी के लिए छूट देने के साथ ही मृतक आश्रितों की आर्थिक हालत पर भी विचार किया जाना चाहिए।