राष्ट्रीय शिक्षा को एक या दो वाक्यों में संक्षिप्त रूप से परिभाषित नहीं किया जा सकता, किंतु काम चलाने के लिए हम कह सकते हैं कि वह ऐसी शिक्षा है, जो अतीत से प्रारंभ होती है और वर्तमान का पूरा उपयोग करते हुए एक महान राष्ट्र का निर्माण करती है। जो भी राष्ट्र को उसके अतीत से काटकर अलग करना चाहता है, वह हमारी राष्ट्रीय उन्नति का मित्र नहीं है। जो भी वर्तमान का लाभ उठाने से चूकता है, वह जीवन की लड़ाई में हमें हरवाना चाहता है।
हमें इस कारण भारत के लिए वह सारा ज्ञान, चरित्र और उत्कृष्ट विचार, जो उसने अपने अविस्मरणीय अतीत में जमा कर रखे हैं, बचाना है। उसके लिए वह उत्कृष्ट से उत्कृष्ट ज्ञान, जो यूरोप उसे दे सकता हो, हमें प्राप्त करना चाहिए और उसकी विशिष्ट प्रकार की राष्ट्रीय प्रकृति के साथ इस ज्ञान का सामंजस्य बैठाना चाहिए। अब तक मानवता ने शिक्षा की उत्तम से उत्तम प्रणालियां जो विकसित की हों, चाहे आधुनिक अथवा पुरातन, हमें उनको समाविष्ट करना चाहिए। और इन सभी को समन्वित करके हमें एक ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए, जो आत्मावलंबन की भावना से गर्भित हो, जिससे हम मनुष्यों का निर्माण करें, मशीनों का नहीं।
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भारत राष्ट्रों का गुरु है, मानव आत्मा का गुरु, अधिक गंभीर रोगों का चिकित्सक; उसके भाग्य में एक बार फिर विश्व के जीवन को नए सांचे में ढालना लिखा है।... जब हमारी नसों में पहले पहल पाश्चात्य शिक्षा का विष डाला गया, तो उसका तत्काल प्रभाव पड़ा और (बंगाल के) हिंदू, जो तब बांग्लाभाषी लोगों में बहुसंख्यक थे, गांव से शहर की ओर जाने लगे।...
केवल वही कौम, जो अपने जीवन के ग्रामीण मूल
की पुष्टता को शहरी तड़क-भड़क रूपी पत्तों और फूलों के लिए बलिदान नहीं कर देती, स्वस्थ दशा में मानी जाएगी और उसका ही स्थायित्व सुनिश्चित होगा। हमें अपने को अब इस दिशा में उस कार्यक्षेत्र की ओर मोड़ना होगा, जिसकी हमने अब तक सबसे अधिक उपेक्षा की है और वह है कृषि का क्षेत्र। भूमि की ओर वापस लौटना हमारी मुक्ति के लिए उतना ही महत्वपूर्ण
जो कौम अपने जीवन के ग्रामीण मूल की पुष्टता को शहरी तड़क-भड़क के लिए बलिदान नहीं करती, वही स्वस्थ दशा में मानी जाएगी और उसका ही स्थायित्व सुनिश्चित होगा।
है, जितना स्वदेशी का विकास अथवा अकाल के विरुद्ध संघर्ष में है। यदि हम अपने नवयुवकों को खेतों पर वापस जाने का प्रशिक्षण दें, तो वे ग्रामीण जनता के लिए सलाहकार, नेता और उदाहरण बन सकेंगे।
यह समस्या तुरंत अपने हल की मांग कर रही है और केवल ग्राम सभाओं के संगठन से आंशिक प्रभाव ही पड़ेगा, जब तक कि उसे एक ऐसी शिक्षा-व्यवस्था का समर्थन न दिया जाए, जो कि शिक्षित हिंदू को स्वयं किसान और जाति के कृषक वर्ग के नेता के रूप में भूमि को वापस न लौटाए !
श्री अरविंद