निष्पक्ष रहने के लिए नास्तिक होना जरूरी नहीं: चंद्रचूड़

 

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को न्यायपालिका के भीतर नियुक्तियों के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा न्यायिक शक्तियों के उपयोग में संयम के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने इस धारणा को भी खारिज किया कि जजों को निष्पक्ष बने रहने के लिए नास्तिक होना चाहिए।
Dhananjaya Yeshwant Chandrachud (धनंजय यशवंत चंद्रचूड़)


मुख्य न्यायाधीश ने हिन्दुस्तान टाइम्स को शनिवार को दिए साक्षात्कार में अपने कार्यकाल पर खुलकर बात की। उन्होंने न्यायिक स्वतंत्रता, नियुक्तियों में न्यायिक शक्ति के संयमित उपयोग और ट्रायल कोर्ट स्तर पर जमानत के मजबूत समर्थन पर केंद्रित भारत की न्यायपालिका पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका की सच्ची स्वतंत्रता जजों को निष्पक्ष रूप से निर्णय लेने की अनुमति देती है, भले ही परिणाम सरकार के पक्ष में हो या चुनौती दे। न्यायिक नियुक्तियों को सुविधाजनक बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट को शक्तियों का उपयोग करने में बहुत सावधानी बरतनी चाहिए। उन्होंने नियुक्ति प्रक्रिया में न्यायिक हस्तक्षेप का सहारा लेने के बजाय सरकार के साथ खुली बातचीत की आवश्यकता पर बल दिया।


कोलेजियम की भूमिका का बचाव किया

न्यायिक नियुक्तियों पर चंद्रचूड़ ने कोलेजियम की सीमाओं को स्वीकार किया और उम्मीदवारों की जांच में कोलेजियम की भूमिका का बचाव किया। उन्होंने प्रक्रिया का समय पर पालन करने की वकालत की, जो सरकार द्वारा दोहराई गई सुप्रीम कोर्ट की सिफारिशों को स्वीकार करना अनिवार्य बनाता है।

न्यायिक निर्णयों का मूल्यांकन व्यक्तिगत विश्वास के बारे में धारणाओं के बजाय कानूनी तर्क के आधार पर किया जाना चाहिए। अदालतों से आग्रह है कि वे दोषसिद्धि से पहले अनुचित हिरासत से बचने के लिए जमानत देने में ट्रायल कोर्ट का समर्थन करें।

-न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़