लखनऊ। प्रदेश के मुख्य सचिव मनोज
कुमार सिंह ने निर्देश दिए हैं कि कोई भी सरकारी अधिकारी और कर्मचारी गैर सरकारी समितियों, ट्रस्ट जैसे निजी निकायों के प्रबंधन का हिस्सा नहीं बन सकता। न ही कोई भी सरकारी कर्मचारी, सरकार की पूर्व मंजूरी के बिना, कंपनी अधिनियम 1956 या उस समय लागू किसी अन्य कानून के तहत पंजीकृत किसी बैंक या अन्य कंपनी के पंजीकरण, प्रचार या प्रबंधन में भाग लेगा।
सरकारी कर्मचारी उत्तर प्रदेश सहकारी समिति अधिनियम, 1965 के तहत या किसी अन्य कानून के तहत पंजीकृत सहकारी समिति के पंजीकरण, प्रचार या प्रबंधन में भाग ले सकता है। इसका उल्लंघन करने वाले को आचरण
नियमावली नियम-16 का दोषी पाया जाएगा और उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इस संबंध में सभी अपर मुख्य सचिवों, प्रमुख सचिवों, मंडलायुक्तों और जिलाधिकारियों को निर्देश जारी कर दिए गए हैं। इस संबंध में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश का हवाला भी दिया गया है।
बृहस्पतिवार को जारी शासनादेश के मुताबिक राज्य सरकार एक सामान्य दिशा निर्देश भी जारी करेगी, जिसमें सभी सरकारी अधिकारियों को निर्देश दिया जाएगा कि वे प्रावधानों के विपरीत, किसी भी सूरत में गैर-सरकारी समितियों, ट्रस्टों आदि जैसे निजी निकायों के प्रबंधन
निकायों का हिस्सा न बनें। अखिल भारतीय सेवा के सदस्यों के संबंध में, मुख्य सचिव मामले की जांच करेंगे और देखेंगे कि कितने मामलों में सरकार की पूर्व मंजूरी प्राप्त की गई है। यदि अनुपालन नहीं मिलेगा तो कार्रवाई करेंगे।
मुख्य सचिव छह महीने की अवधि के भीतर इस संबंध में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे। कोई भी अधिकारी या कर्मचारी सोसायटी धन संग्रह या शेयर बेचने या किसी अन्य वित्तीय लेनदेन की सदस्यता बढ़ाने में भाग नहीं लेगा। यदि कोई सरकारी कर्मचारी भाग लेता है किसी भी बड़ी सहकारी समिति या निकाय के प्रतिनिधि के रूप में, वह उस बड़ी समिति या निकाय के किसी भी पद के लिए चुनाव नहीं लड़ेगा। वह केवल वोट डालने के उद्देश्य से ऐसे चुनाव में भाग ले सकता है।