आज दिनांक 12 नवंबर को जिले में देवउठनी एकादशी (चरखारी मेला) के उपलक्ष्य में रहेगा स्थानीय अवकाश

 

आज दिनांक 12 नवंबर को जिले में देवउठनी एकादशी के उपलक्ष्य में रहेगा स्थानीय अवकाश


देवउठनी एकादशी: महोबा जिले में चरखारी मेला के उपलक्ष्य में स्थानीय अवकाश

आज दिनांक 12 नवंबर को महोबा जिले में देवउठनी एकादशी के उपलक्ष्य में स्थानीय अवकाश रहेगा। यह दिन विशेष रूप से महोबा के निवासियों के लिए खास महत्व रखता है, क्योंकि इसी दिन यहां प्रसिद्ध चरखारी मेला आयोजित किया जाता है। 

देवउठनी एकादशी का महत्व


देवउठनी एकादशी को देवताओं के जागने का पर्व माना जाता है। यह पर्व कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु इस दिन योग निद्रा से जागते हैं, जिससे सृष्टि में फिर से उत्साह और उमंग का संचार होता है। इस दिन का धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व अत्यधिक है।


चरखारी मेला का आकर्षण


चरखारी मेला महोबा जिले का एक प्रमुख आयोजन है, जिसमें दूर-दूर से लोग भाग लेने आते हैं। इस मेले में पारंपरिक लोकनृत्य, संगीत, और विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। स्थानीय व्यापारियों और कारीगरों के लिए यह मेला अपनी कला और उत्पादों को प्रदर्शित करने का एक सुनहरा अवसर होता है। मेले में तरह-तरह के झूले, खिलौने, मिठाइयां और अन्य मनोरंजन के साधन मौजूद रहते हैं, जो बच्चों और बड़ों दोनों के लिए आकर्षण का केंद्र होते हैं।

स्थानीय अवकाश का महत्व


देवउठनी एकादशी के उपलक्ष्य में स्थानीय अवकाश घोषित किए जाने का उद्देश्य है कि सभी लोग इस विशेष पर्व और मेले का आनंद बिना किसी व्यवधान के ले सकें। यह अवकाश न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक जुड़ाव को प्रकट करता है, बल्कि समाजिक सौहार्द और मेलजोल को भी बढ़ावा देता है।

समाज में एकता और सौहार्द का प्रतीक


इस प्रकार के मेलों और पर्वों का आयोजन समाज में एकता और सौहार्द को बढ़ावा देता है। देवउठनी एकादशी और चरखारी मेला महोबा जिले के लोगों के लिए एक ऐसा अवसर है, जब वे अपने व्यस्त जीवन से थोड़ा समय निकालकर धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग ले सकते हैं। 

आज का दिन महोबा जिले के लोगों के लिए विशेष खुशी और उत्सव का दिन है। देवउठनी एकादशी और चरखारी मेला के उपलक्ष्य में घोषित किए गए इस स्थानीय अवकाश से लोग इस दिन को पूरी श्रद्धा और उत्साह के साथ मना सकेंगे। यह अवसर न केवल धार्मिक आस्था को मजबूत करता है, बल्कि समाजिक बंधनों को भी और अधिक मजबूत बनाने का काम करता है।