संयुक्त राष्ट्र की विश्व स्तर पर शिक्षा से जुडे़ मामलों के लिए नीति निर्धारित करने वाली संस्था यूनेस्को का कहना है कि साल 2015 से 2024 के बीच भारत ने अपनी जीडीपी का 4.1 से 4.6 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च किया। यह तथ्य यूनेस्को द्वारा जारी ‘शिक्षा 2030 के लिए आवश्यक कदम’ निर्देशिका में उभरकर सामने आया है। इसके अनुसार, दुनिया के हर देश को शिक्षा पर जीडीपी का चार से छह प्रतिशत खर्च करना चाहिए। यूनेस्को द्वारा जारी आंकड़ों का यह भी कहना है कि भारत में केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा साल 2015 से 2024 की अवधि में कुल सरकारी व्यय का 13.5 प्रतिशत से 17.2 फीसदी तक शिक्षा पर खर्च किया गया। ये आंकडे़ यूनेस्को की उस अपेक्षा के अनुरूप हैं, जो संसार की सभी सरकारों से यह मांग करती है कि वे सरकारी बजट का कम से कम पंद्रह से बीस प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करें।
यूनेस्को के आंकड़े इसलिए महत्वपूर्ण हैं कि विश्व स्तर पर स्वीकृत सतत विकास लक्ष्य 2030 के अनुसार कुल 17 लक्ष्यों को पूरा किया जाना है, जिसमें चौथा लक्ष्य है, ‘सबको गुणवत्ता वाली समावेशी व समतामूलक शिक्षा प्रदान करना।’ 2030 तक ये 17 लक्ष्य विश्व स्तर पर हासिल हो पाएंगे, यह कहना मुश्किल है, पर दुनिया की हर सरकार को इस दिशा में ठोस प्रगति दिखाने को कहा गया है। यूनेस्को के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में, खासकर कोविड के बाद दुनिया भर की सरकारों का शिक्षा पर खर्च कम होता दिखा है, किंतु भारत में यह लगभग स्थिर देखा गया है। साल 2010 के बाद से मध्य व दक्षिण एशिया के देशों में शिक्षा पर विनियोग और खर्च बढ़ता हुआ पाया गया है। कुछ बहुत छोटे देशों का खर्च प्रतिशत ज्यादा हो सकता है, किंतु उनके कुल खर्चे भारत के कुल प्रावधान की तुलना में बहुत कम हैं। यूनेस्को का कहना है कि समूचे एशिया में भारत द्वारा शिक्षा पर किया जा रहा खर्च जापान और चीन से ज्यादा रहा है।
मगर क्या भारत कोठारी आयोग (1964-66) की उस सिफारिश को पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ पाया है, जिसमें जीडीपी का छह प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करने की बात की गई थी? राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 ने भी 1968 में स्वीकृत शिक्षा पर जीडीपी का छह प्रतिशत खर्च करने के लक्ष्य को सम्मान दिया है। इसका कहना है कि ‘यह नीति शिक्षा पर विनियोग बढ़ाने के लक्ष्य से प्रतिबद्ध है, क्योंकि कोई अन्य विनियोग या खर्चे का प्रावधान हमारी युवा पीढ़ी को गुणवत्ता वाली शिक्षा देने पर होने वाले खर्चे से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है।’
शिक्षा पर हम कितना खर्च करते हैं, इस पर अर्थशास्त्रियों और शिक्षाविदों के बीच कोई एकराय नहीं बन पाई है। इसका एक कारण यह है कि हमारे देश में शिक्षा पर सरकारी और निजी खर्चे के आंकड़े अलग-अलग होते हैं। सरकारी खर्चों की गणना के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा इस मद में किए गए व्यय को जोड़ा जाता है। केंद्रीय स्तर पर खर्चों की गणना जटिल है, क्योंकि शिक्षा मंत्रालय के अलावा लगभग सभी मंत्रालय इस मद में खर्च करते हैं। अब सवाल उठता है कि देश में सरकारों द्वारा शिक्षा पर कुल कितना खर्च किया जाता है? साल 2019-20 में शिक्षा पर कुल सरकारी खर्च 8.93 लाख करोड़ रुपये आंका गया था। इसमें केंद्र सरकार का खर्च 2.27 लाख करोड़ रुपये और राज्य सरकारों का 6.66 लाख करोड़ रुपये था। चालू वित्त वर्ष में अनुमानत 12 लाख करोड़ रुपये खर्च किया जा रहा है। भारत का वर्तमान जीडीपी करीब 3.3 ट्रिलियन डॉलर का है, जिसका शिक्षा पर अनुमानित खर्च 4.5 प्रतिशत होगा। यह विश्व बैंक के अनुमान से भी मिलता है।
यह एक शुभ संकेत कहा जा सकता है कि भारत का शिक्षा पर होने वाला सरकारी विनियोग और खर्च दुनिया के बहुत सारे देशों की तरह कम नहीं हो रहा है। किंतु भविष्य की अनेक संभावनाओं और राष्ट्रीय संकल्पों को ध्यान में रखते हुए हमें शिक्षा पर खर्चों को वर्तमान स्तर से लगातार बढ़ाना होगा। हमें नहीं भूलना चाहिए कि अगले दस वर्षों में जमीन और व्यापार के लिए विश्व-युद्ध भले न हों, प्रतिभा और मेधा के लिए देशों में कठिन प्रतिस्पर्द्धा होगी। इस प्रतिस्पर्द्धा में हम तभी जीत पाएंगे, जब हम शिक्षा और स्वास्थ्य पर अधिक खर्च करेंगे और मानव पूंजी का निरंतर विकास करेंगे।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)