निरक्षरों को साक्षर बनाने की योजना बंद कर अब शिक्षकों के भरोसे साक्षरता!

 

फतेहपुर/खागा, संवाददाता 15 वर्ष से अधिक निरक्षरों को साक्षर बनाने की मुहिम धीमी पड़ती नजर आ रही है। 2018 में निरक्षरों के लिए डेडीकेटेड लोक शिक्षा केन्द्रों को बंद कर दिया गया। अब पहले से ही तमाम गैर शैक्षणिक कार्यों से जूझ रहे बेसिक शिक्षकों को यह कार्य थमा दिया गया है।




साक्षर भारत मिशन के अन्तर्गत 2012 में लोक शिक्षा समिति का गठन कर प्रत्येक ग्राम पंचायत में एक लोक शिक्षा केन्द्र की स्थापना की गई थी। प्रत्येक लोक शिक्षा केन्द्र पर दो प्रेरक नियुक्त किए गए थे। इन प्रेरकों का कार्य 15 से 65 वर्ष की आयु के निरक्षरों को चिन्हित कर उन्हें साक्षर बनाना था। नियमित अंतराल पर निरक्षरों की परीक्षा आयोजित कर उन्हें साक्षर बनाया जाता था। प्रेरकों को दो हजार रूपए प्रतिमाह का मानदेय भी दिया जाता था लेकिन 2018 में इस योजना को बंद कर दिया गया। प्रेरकों के मानदेय का मामला अब भी शासन के पास है।



बच्चों को पढ़ाएं या वालंटियर खोजें

वर्तमान समय में निरक्षरों और उन्हें साक्षर करने वाले वालंटियर्स को खोजने की जिम्मेदारी बेसिक शिक्षकों को दी गई है। पहले से ही अनेक गैर शैक्षणिक कार्यों में उलझे बेसिक शिक्षकों के पास पूरी गंभीरता से इस कार्य को करने के लिए समय नहीं है। सूत्र बताते हैं कि किसी तरह चिन्हित किए गए निरक्षरों को पढ़ाने के लिए वालंटियर्स खोजे नहीं मिल रहे हैं। इस मसले पर सिर्फ कागजी बाजीगरी की जा रही है। बीते साल 23 हजार निरक्षर चिन्हित किए गए थे। इस वर्ष चिन्हीकरण जारी है।



आंकड़ों में यह है साक्षरता दर


-2001 में 67.43 प्रतिशत


-2011 में 67.43 प्रतिशत


-2021 में 69.01 प्रतिशत