विभागीय कार्यवाही में बरी हो जाना आपराधिक केस रद्द का आधार नहीं

 इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि विभागीय कार्यवाही में बरी होना आपराधिक केस कार्यवाही रद्द करने का आधार नहीं हो सकता। ट्रायल में आरोप तय होने व गवाहों के परीक्षण के बाद अभियुक्त को दोषमुक्त किया जा सकता है, लेकिन आपराधिक कार्यवाही समाप्त नहीं की जा सकती।

यह आदेश न्यायमूर्ति समित गोपाल ने सुभान अली की याचिका पर दिया है। इसी के साथ कोर्ट ने गोविंदपुर गाजियाबाद पोस्ट ऑफिस फ्राड के आरोपी सुभान अली की याचिका खारिज कर दी है। विभागीय जांच में नियम विरुद्ध आरोप या लागू न होने वाले आरोप लगाने के कारण याची को बरी कर दिया गया था। इसी आधार पर याची ने आपराधिक केस की कार्यवाही रद्द करने की मांग में याचिका की थी। केंद्र सरकार के डिप्टी सॉलीसिटर जनरल एवं सीबीआई के वरिष्ठ अधिवक्ता ज्ञान प्रकाश व एडवोकेट संजय यादव ने याचिका का प्रतिवाद किया। 




गाजियाबाद के सीबीआई थाने में षड्यंत्र, भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी आदि आरोप में 13 जनवरी 2017 को शिकायत मिली। जिसमें गोविंदपुरा पोस्ट ऑफिस व गाजियाबाद हेड पोस्ट ऑफिस में 2015 में फर्जी दस्तावेज से धन का स्थानांतरण किया गया जबकि खाता बंद था। 15 अक्तूबर 2020 को सीबीआई ने आठ अभियुक्तों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। सीबीआई कोर्ट गाजियाबाद ने संज्ञान लेते हुए आरोपियों को सम्मन जारी किया।


 ट्रायल में चार गवाहों का परीक्षण हो चुका है। विभागीय जांच में बिना आरोप साबित किए तकनीकी आधार पर बरी होने के बाद यह कहते हुए याचिका की गई कि आपराधिक केस खत्म किया जाए। सीबीआई की ओर से कहा गया कि जब एक बार आरोप तय कर ट्रायल शुरू हो गया तो बिना गुण-दोष का निर्धारण किए बीच में अभियुक्त को डिस्चार्ज नहीं किया जा सकता। वह ट्रायल में दोष साबित न होने पर ही बरी हो सकता है। लेकिन विभागीय जांच में बरी होने के आधार पर आपराधिक केस समाप्त नहीं किया जा सकता।