पोर्टल पर गांवों को अपलोड न करने का मांगा स्पष्टीकरण

● कहा, ऐसा न करना अदालती कार्यवाही में हस्तक्षेप, मूल अधिकारों का उल्लघंन



प्रयागराज, विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कमिश्नर/सचिव उत्तर प्रदेश राजस्व परिषद को प्रदेश के ऐसे सभी गांवों का डाटा पेश करने का निर्देश दिया है, जिन्हें अब तक राजस्व कोर्ट कंप्यूटरीकृत प्रबंध सिस्टम पोर्टल पर अपलोड नहीं किया गया है। कोर्ट ने व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर गांव के कोड को पोर्टल पर अपलोड करने की प्रक्रिया की जानकारी मांगी है। साथ ही गांवों को पोर्टल पर अपलोड न करने का कारण स्पष्ट करने को कहा है।


यह आदेश न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया ने बलिया के आदित्य कुमार पांडेय की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है। कोर्ट ने कहा कि गांवों को पोर्टल पर अपलोड न करना अदालती कार्यवाही में हस्तक्षेप है और वादकारी के मूल अधिकारों का हनन है।


मामले के तथ्यों के अनुसार सिकंदरपुर गर्वी के गांव डुमराहर दायरा व डुमराहर खुर्द दायरा की पैमाइश कर कंप्यूटरीकृत करने के लिए एसडीएम के समक्ष राजस्व संहिता की धारा 22/24के तहत अर्जी दी गई। एसडीएम ने राजस्व निरीक्षक/ लेखपाल को सर्वे कर रिपोर्ट पेश करने और केस दर्ज कर नंबर देने का आदेश दिया।


याची ने निर्धारित शुल्क एक हजार रुपये भी जमा किया। लेकिन तीन साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी न तो केस पंजीकृत किया गया और न ही केस नंबर दिया गया।


एसडीएम वित्त एवं लेखा ने बताया कि कमिश्नर/सचिव राजस्व परिषद को पोर्टल पर गांव का कोड दर्ज करने के लिए पत्र लिखा गया है। अनुस्मारक भी दिया गया है। लेकिन गांव का कोड पोर्टल पर अपलोड न होने के कारण केस पंजीकृत नहीं हो सका है और केस नंबर भी तय नहीं इसलिए केस निस्तारित नहीं हो सका है।


कोर्ट ने कहा कि पुराने कानून में केस तय करने की कोई समय सीमा नहीं थी लेकिन राजस्व संहिता में संक्षिप्त विचारण वाले मामलों की अवधि निश्चित है।धारा 24 का केस तय करने की अवधि तीन माह तय है। लेकिन जो केस तीन माह में तय होना चाहिए वह तीन साल बीतने के बाद भी पंजीकृत नहीं किया जा सका है। जबकि अर्जी दाखिल करते ही कार्यवाही शुरू कर देनी चाहिए और समय के भीतर केस का निस्तारण किया जाना चाहिए।


कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि गांव का कोड पोर्टल पर अपलोड न होना न्यायिक कार्यवाही में हस्तक्षेप करना है और यह अनुच्छेद 14 व 21 के तहत वादकारी के मूल अधिकारों व अनुच्छेद 300 ए के तहत संपत्ति के संवैधानिक अधिकारों का उल्लघंन है।


कोर्ट ने कहा कि गांव पोर्टल पर अपलोड न किए जाने पर ऑफ लाइन सुनवाई की जा सकती थी। कोर्ट ने मामले को गंभीरता से लेते हुए कमिश्नर/सचिव उप्र राजस्व परिषद को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर गांवों को पोर्टल पर अपलोड न करने का स्पष्टीकरण मांगा है।