प्रदेश के एक हजार से ज्यादा अस्थायी शिक्षकों के नियमितीकरण पर निर्णय जल्द होगा


प्रदेश में हजार से ज्यादा अस्थायी शिक्षकों के नियमितीकरण पर निर्णय जल्द लिया जाएगा। इलाहाबाद हाई कोर्ट में राज्य सरकार की तरफ से अपर महाधिवक्ता ने कहा कि सात अगस्त 1993 से दिसंबर 2000 के बीच नियुक्त इन अस्थायी अध्यापकों को नियमित करने पर शीघ्र ही सरकार निर्णय लेगी। कोर्ट ने कहा है कि माध्यमिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने सरकार को सही जानकारी नहीं दी। दो मुद्दों को आपस में मिलाकर भ्रमित किया और उलझा रखा है। न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने विनोद कुमार श्रीवास्तव  की याचिका पर सुनवाई करते तथ्य छिपाने वाले ऐसे अधिकारियों के  खिलाफ कार्रवाई के लिए आदेश की प्रति मुख्यमंत्री के समक्ष पेश करने को कहा है। प्रकरण में अगली सुनवाई 20 सितंबर को होगी।



कोर्ट ने कहा, अधिकारियों ने  सरकार से सही तथ्य छिपाकर नौ नवंबर 2023 व आठ जुलाई 2024 को परिपत्र जारी कराया। कोर्ट ने निबंधक (अनुपालन) को कहा है कि 48 घंटे में आदेश की प्रति मुख्य सचिव को भेजें ताकि कार्रवाई के लिए इसे मुख्यमंत्री के समक्ष

एक सप्ताह में पेश किया जा सके। याची की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता आरके ओझा, शिवेंदु ओझा, वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक खरे और सरकार की तरफ से अपर महाधिवक्ता अजीत कुमार सिंह ने पक्ष रखा।

कोर्ट द्वारा पारित आदेश पर अपर महाधिवक्ता ने आदेश के पालन के लिए कुछ समय मांगा। साथ ही आश्वासन दिया कि वह आदेश की जानकारी सरकार को देंगे। उम्मीद है कि सरकार सही निर्णय लेगी। निर्णय वर्ष 2000 के बाद के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा संजय सिंह केस


में दिए गए फैसले के तहत लिया जाएगा। कहा गया कि सरकार इन अध्यापकों को वेतन देने पर भी विचार कर रही है, लेकिन पहले नियमितीकरण पर निर्णय लेना होगा। याची के अधिवक्ता ने कहा, सरकार भ्रमित है, पूरी स्कीम पर विचार करना चाहिए। कोर्ट ने अंतरिम आदेश से अध्यापकों को वेतन देने व सेवा जारी रखने का निर्देश दिया है। इसके बावजूद सरकार ने आठ नवंबर, 2023 से वेतन भुगतान रोक रखा है। विशेष सचिव ने निदेशक माध्यमिक शिक्षा को आठ जुलाई 2024 को आदेश दिया कि जिन्हें नौ नवंबर 2023 से हटाया गया है, उनमें हाईस्कूल के अध्यापकों को 25 हजार व इंटरमीडिएट के अध्यापकों को 30 हजार रुपये प्रतिमाह दिया जाए। इस सर्कुलर का शिक्षा विभाग को पालन करना चाहिए, यह बाध्यकारी है। अपर महाधिवक्ता ने स्वीकार किया कि धारा 33जी का मुद्दा सरकार ने जवाबी हलफनामे में नहीं लिया है। इस पर कोर्ट ने कहा अधिकारी दो मुद्दों को एक साथ मिक्स कर सरकार को गुमराह कर रहे हैं। वे ऐसा जानबूझकर कर रहे हैं, इस कारण सही निर्णय नहीं लिया जा रहा है।