शिक्षक ही हैं जो.............
मिट्टी के कलश की भाँति
अपने विद्यार्थी को गढ़ते हैं
शिक्षक राष्ट्रनिर्माता हैं जो
समाज को शिक्षित करते हैं
वे शिक्षक ही हैं जो.........
प्रकृति और प्रलय को
अपनी गोद में रखते हैं
चाणक्य की भाँति ये
किसी को भी सम्राट बना सकते हैं
वे शिक्षक ही हैं जो.........
एक आदर्श जीवन हर क्षण
वे समाज के साथ ही जीते हैं
अपनी कार्यपद्धति के बल पर
वे समाज में सम्मान पाते हैं
वे शिक्षक ही हैं जो.........
हमारी बाधाओं को छाँटकर
हमारी उन्नति चाहते हैं
वे शिक्षक हैं हमारे जो
हमें हमेशा आगे बढ़ाना चाहते हैं
वे शिक्षक ही हैं जो.........
कमियों को हमारी पहचान
हमें उनका आभास करवाते हैं
हमारी गलतियों को क्षमाकर
हमें सफलता का शिखर दिखाते हैं
वे शिक्षक ही हैं जो.........
-अनन्त राम त्रिपाठी ‘उमापुष्पांश’