यूपी सरकार के पास एक विकल्प, क्या सीएम योगी 69000 भर्ती में सीटें बढ़ाकर करेंगे एडजस्ट या फिर कुछ और

 

69 हजार शिक्षक भर्ती मामले में इलाहाबाह हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच से अभ्यर्थियों को राहत मिली है. कोर्ट के फैसले ने योगी सरकार को जोर का झटका धीरे से दिया है. इसके बाद भी नौकरी को लेकर अभ्यर्थियों की राह आसान नजर नहीं आ रही है. दरअसल, इस फैसले के बाद नई मेरिट लिस्ट जारी होगी. ऐसे में 6800 वे लोग हैं जो इस भर्ती में नियुक्ति पाकर नौकरी कर रहे हैं, उन पर असर होगा. उनकी नौकरी जा सकती है. इस ये लोग भी कोर्ट जाने और आंदोलन करने की तैयारी में हैं. इन सबके बीच बता दें कि सरकार के पास सुपर न्यूमैरिक यानी सीटें बढ़ाने का एक विकल्प बचा है.



कहां से शुरू हुआ 69 हजार शिक्षक भर्ती का बवाल: बता दें कि 25 जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में यूपी के 1.37 लाख शिक्षामित्रों को सहायक शिक्षकों के तौर पर नियुक्ति को अवैध घोषित कर दिया था. इन पदों पर नए सिरे से भर्ती के निर्देश दिए थे. इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने दो चरणों में इन पदों पर भर्ती करवाने का निर्णय लिया था. पहले चरण में 68500 पदों पर भर्ती प्रक्रिया आयोजित की गई.


भर्ती प्रक्रिया योगी सरकार के गले की हड्डी बना: दिसंबर 2018 में दूसरे चरण में 69000 पदों पर भर्ती के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने विज्ञापन निकाला. पहले चरण के मुकाबले दूसरे चरण में किए गए कुछ बदलावों और फैसलों ने ऐसी असहज स्थिति पैदा कर दी कि भर्ती का हर चरण आरोपों और अदालतों के चक्कर में फंस गया. 67000 से अधिक पद भरे जाने के बाद भी गलत सवाल और आरक्षण का विवाद इस पूरी भर्ती प्रक्रिया में सरकार की गले की हड्डी बन गई.


शिक्षक भर्ती प्रक्रिया 6 महीने में करनी थी पूरी: सरकार की तरफ से विज्ञापन जारी करने के बाद भर्ती प्रक्रिया को 6 महीने में पूरा करने की तैयारी थी. लेकिन, पहले डेढ़ साल तक कट ऑफ के विवाद में पूरी प्रक्रिया अटकी रही. पहले चरण में अनारक्षित वर्ग के लिए 45% और आरक्षित वर्ग के लिए 40% अंक का न्यूनतम कट ऑफ तय किया गया था. दूसरे चरण के कट ऑफ बढ़कर क्रमशः 65% और 60% कर दिया गया.


अदालतों के चक्कर में 16 महीने लग गए: लेकिन, यह आदेश 6 जनवरी 2020 को हुई भर्ती परीक्षा के अगले दिन जारी किया गया था. इसका असर यह रहा कि हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक इस मामले में सरकार को चक्कर लगाने पड़े. जिसके चलते नतीजे 16 महीने बाद घोषित हो सके. विशेषज्ञों का कहना है कि विज्ञापन जारी करते समय कट ऑफ तय कर दिया गया होता तो इतनी लंबी कानूनी लड़ाई से बचा जा सकता था.


एक सवाल बना बवाल का कारण: 69 हजार शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में 1000 से अधिक ऐसे अभ्यर्थी नियामक संस्थान से लेकर अदालत की चौखट तक लगातार एक नंबर को लेकर बवाल करते रहे. यह एक नंबर उनके भविष्य से जुड़ा था. दरअसल, शिक्षक भर्ती परीक्षा में एक सवाल ऐसा आया था, जिसके चारों विकल्प ही गलत थे. अभ्यर्थियों की आपत्ति को सुनने के बजाए विभाग उन्हें ही गलत ठहराता रहा.


आखिरकार हाईकोर्ट ने अभ्यर्थियों के पक्ष को सही मानते हुए सवाल के एक नंबर देने का आदेश दिया. इसके बाद सरकार इस फैसले के विरोध में सुप्रीम कोर्ट चली गई. सुप्रीम कोर्ट ने भी पूरे मामले को सुनते हुए अभ्यर्थियों के पक्ष में ही फैसला दिया. इस दौरान भर्ती प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी, इसलिए कोर्ट ने विभाग को राहत देते हुए एक अंक के फायदे को उन तक ही सीमित कर दिया जो कोर्ट तक आए थे.


एक अंक के चलते जो भर्ती से बाहर हो गए उनसे परीक्षा नियामक प्राधिकारी प्रत्यावेदन मांगे. लगभग 3300 अभ्यर्थियों ने प्रत्यावेदन किया, जिसमें 2249 के प्रतिवेदन सही पाए गए. इन्हें आगे की प्रक्रिया के लिए बेसिक शिक्षा परिषद को बढ़ाया गया. इसमें से करीब 1000 अभ्यर्थी ऐसे हैं जो एक अंक पाने के बाद नियुक्ति के हकदार हो जाएंगे. लेकिन, हाईकोर्ट की फटकार और धरना प्रदर्शन के बाद भी विभाग अब तक अपनी गलती नहीं सुधर पाया है. केवल आश्वासन ही दिया जा रहा है. विभाग हाईकोर्ट में चल रहे आरक्षण विवाद का हवाला देते हुए इन अभ्यर्थियों को नियुक्ति नहीं दे रहा है.


आरक्षण को लेकर उपजा विवाद: एक नंबर के विवाद के बाद सहायक शिक्षक भर्ती में जिस मामले को लेकर प्रदेश में राजनीति गरमाई हुई है. उसको लेकर हाईकोर्ट की डबल बेंच ने कुछ दिन पहले फैसला दिया है. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में इस भर्ती प्रक्रिया में आरक्षण की विसंगतियां को सही माना है. अभ्यर्थी आरक्षण में 19000 पदों के घोटाले का आरोप लगा रहे हैं, जबकि भर्ती को सही ठहराने के लिए विभाग अपने तर्क दे रहा है.


अभ्यर्थियों का आरोप है कि 1 जून 2020 को भर्ती की जो प्रस्तावित सूची जारी की गई थी, उसमें अब भर्तियों के वेटेज, कैटेगरी के साथ सब कैटेगरी का उल्लेख नहीं था. जबकि ओबीसी को 27% की जगह 3.86% ही आरक्षण मिला. आरक्षित वर्ग के जो अभ्यर्थी अधिक मेरिट के चलते अनारक्षित वर्ग के पदों के हकदार थे. उन्हें भी कोट के तहत गिना गया.


इसे लेकर राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग व विभाग के बीच लंबे समय तक लिखा पढ़ी भी चली. हालांकि विभाग का दावा है कि असफल अभ्यर्थी भ्रम फैला रहे हैं. ओबीसी के लिए आरक्षित 18598 पदों के सापेक्ष 310228 अभ्यर्थियों का चयन हुआ है. जिसमें से 12630 अभ्यर्थी अनारक्षित वर्ग के अंतर्गत मेरिट में चयनित हुए हैं.


6800 अतिरिक्त सूची ने बढ़ाया भर्ती प्रक्रिया के लिए संकट: भर्ती परीक्षा में आरक्षण की अनियमितता का आरोप ऐसा था जिसे विपक्षी दलों को सरकार को घेरने का मौका दे दिया. विधानसभा चुनाव से पहले सरकार के भी ओबीसी चेहरे असहज थे, इसलिए सरकार ने 5 जनवरी 2022 को विवाद के समाधान के लिए 6800 और अभ्यर्थियों की चयन सूची जारी कर दी गई.


समाधान के बजाय इस सूची ने आरक्षण में गड़बड़ियों के आप को पुख्ता कर दिया. इस सूची के आने के बाद अब अभ्यार्थियों का कहना था कि गलती नहीं थी तो सरकार को अतिरिक्त सूची क्यों जारी करनी पड़ी? हालांकि विभाग के कुछ अधिकारियों ने परोक्ष रूप से यह जरूर माना की क्षैतिज आरक्षण के निर्धारण में चूक हुई थी. वहीं सूत्रों की मानें तो महिलाओं के 20% के आरक्षण के निर्धारण का फार्मूला ही गलत था. इसे सुधारने के लिए और पदों पर चयन सूची जारी करनी पड़ी. बेसिक शिक्षा विभाग इतनी बड़ी अनियमितता पर किसी बड़े की जवाबदेही भी नहीं तय कर पाया. दूसरी ओर कोर्ट ने चयन सूची भी रद कर दी.


शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में अब तक क्या-क्या हुआ


5 दिसंबर 2018 को सरकार ने भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला.

विवाद एक- कटऑफ


6 जनवरी 2019 को लिखित परीक्षा हुई.

7 जनवरी को अनरक्षित वर्ग के लिए 65% व आरक्षित वर्ग के लिए 60% का कट ऑफ जारी किया गया.

17 जनवरी को कट ऑफ के खिलाफ शिक्षामित्र की याचिका पर हाईकोर्ट ने रिजल्ट पर रोक लगा दी.

29 जनवरी को सिंगल बेंच के आदेश को डबल बेंच ने सही माना.

6 मई 2020 को हाईकोर्ट ने कट ऑफ सही माना और रिजल्ट घोषित करने को कहा.

12 मई 2020 को परीक्षा नियामक प्राधिकारी ने रिजल्ट घोषित किया.

9 जून 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने 37339 पदों पर भर्ती होल्ड करने के निर्देश दिए.

18 जून 2020 को कट ऑफ सही मानते हुए कोर्ट ने भारती के आदेश दिए विवाद बढ़ा.

विवाद दो- गलत सवाल


8 मई 2020 को भर्ती परीक्षा की आंसर-की जारी की गई.

3 जून 2020 को हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने गलत सवालों के चलते भर्ती की काउंसलिंग रोक दी.

12 जून 2020 को डबल बेंच ने काउंसलिंग पर लगी रोक हटा दी, अभ्यर्थी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे.

7 जुलाई 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने विवाद निपटाते हुए मामले को निपटारा करने को कहा.

24 अगस्त 2021 को हाईकोर्ट ने एक नंबर से फेल अभ्यर्थियों को गलत सवाल दोबारा मूल्यांकन का नियुक्ति के लिए कहा.

9 नवंबर 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ यूपी सरकार की स्पेशल याचिका खारिज कर दी.

7 दिसंबर 2022 को हाई कोर्ट ने एक नंबर से भर्ती पाने से चुके अभ्यर्थियों के मामले पर विचार के लिए विभाग को समय दिया.

19 जनवरी 2023 को एक नंबर से चुके अभ्यर्थियों से इस तारीख तक प्रतिवेदन मांगे गए थे जिसमें 3192 प्रतिवेदन मिले.

2 मार्च 2013 को आई प्रत्यावेदनों में से 2249 अभ्यर्थियों की सूची परीक्षा नियामक प्राधिकारी ने बेसिक शिक्षा परिषद को भेजी तब से आरक्षण विवाद का हवाला देकर मामला लंबित है.

17 नवंबर 2023 को अब मानना याचिका पर हाई कोर्ट ने परीक्षा नियामक प्राधिकारी से हलफनामा देने को कहा.

विवाद तीन- आरक्षण में विसंगतियां


1 जून 2020 को 69000 भर्ती परीक्षा में चयनित अभ्यर्थियों की सूची जारी हुई.

सितंबर 2020 में ओबीसी अभ्यर्थियों ने आरक्षण की शिकायत पिछड़ा वर्ग आयोग में की.

29 अप्रैल 2021 को पिछड़ा वर्ग आयोग ने रिपोर्ट में कहा कि आरक्षण का पालन नहीं किया गया है.

5 जनवरी 2022 को आरक्षण में विसंगतियां मानते हुए 6800 और अभ्यर्थियों की सूची जारी की गई.

27 जनवरी 2022 को बिना विज्ञापन अतिरिक्त नियुक्ति को गलत मानते हुए हाईकोर्ट ने सूची पर रोक लगा दी.

28 मार्च 2022 को सिंगल बेंच के आदेश को डबल बेंच ने बरकरार रखा.

13 मार्च 2023 को हाई कोर्ट ने 6800 की सूची रद्द की और 1 जून 2020 की सूची की समीक्षा करने को कहा.

17 अप्रैल 2023 को सिंगल बेंच के फैसले के खिलाफ महेंद्र पाल और कुछ अभ्यर्थी डबल बेंच पहुंचे.

16 अगस्त 2024 को हाई कोर्ट की डबल बेंच ने 69000 शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में चयन सूची बनाकर नियुक्ति दिए जाने का आदेश दिया.

हाईकोर्ट ने योगी सरकार को दिया झटका: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 69000 शिक्षक भर्ती की नई सिरे से लिस्ट बनाने के आदेश दिए. योगी सरकार ने भी कहा है कि कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए ऐसा रास्ता निकाला जाएगा जिससे किसी भी अभ्यर्थियों का कोई अहित न हो. लेकिन यह मामला इतना आसान नहीं है. नए सिरे से मेरिट लिस्ट तैयार करने की राह में कई पेच हैं.


नौकरी और वरिष्ठ सूची पर सबसे पहले खड़ा होगा संकट: नए सिरे से मेरिट लिस्ट तैयार करने में सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि अनारक्षित वर्ग के और अभ्यर्थियों की मेरिट में जगह मिलती है. जबकि इस वर्ग के कई चयनित शिक्षकों की नौकरी पर संकट आ सकता है. ऐसे में वे भी इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे. इतना ही नहीं नौकरी पा चुके आरक्षित वर्ग के शिक्षक भी नहीं चाहते कि अब लिस्ट में कोई छेड़छाड़ हो. अगर लिस्ट बदलता है तो नौकरी कर रहे शिक्षकों की वरिष्ठता भी बदल जाएगी, वह 4 साल की नौकरी कर चुके हैं. वरिष्ठता बदलने से उनके जिले भी बदल सकते हैं. ऐसे में नौकरी पा चुके शिक्षक नहीं चाहते कि अब मेरिट लिस्ट में कोई छेड़छाड़ हो.


अपील की तैयारी में हैं नौकरी कर रहे शिक्षक: नौकरी पा चुके आरक्षित वर्ग और अनारक्षित वर्ग के शिक्षकों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की तैयारी कर ली है. बीएड लीगल टीम से जुड़े अनारक्षित श्रेणी में नौकरी पाने वाले अखिलेश कुमार शुक्ला का कहना है कि अगर नई लिस्ट में उनकी नौकरी पर संकट आएगा, तो वह फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे. अगर बीच का रास्ता निकालकर किसी को नौकरी मिलती है, तो हमें इसमें कोई दिक्कत नहीं है. आरक्षित श्रेणी से नौकरी पाने वाले बीएड लीगल टीम के जय सिंह यादव भी कहते हैं कि नई मेरिट से नौकरी पाने वाले सभी शिक्षकों का नुकसान है. इसलिए उन्होंने कोर्ट जाने की पूरी तैयारी कर ली है.


सरकार के पास सुपर न्यूमैरिक पोस्ट सृजित करने का है विकल्प: बीएड लीगल टीम के जय सिंह यादव ने बताया कि सबसे पहले किसी भी गड़बड़ी के कारण वंचित आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को नौकरी दी है लेकिन, नौकरी पा चुके शिक्षकों का अहित न हो इसके लिए एक ही रास्ता है कि सरकार सुपर न्यूमैरिक पोस्ट सृजित करें. इसके लिए सरकार को कैबिनेट से मंजूरी लेनी होगी. सुपर न्यूमैरिक प्रक्रिया के तहत जो सीटें बढ़ेगी उसे पर वंचित रह गए अभ्यर्थियों को नौकरी दे. इसके लिए कोर्ट से रजामंदी भी सरकार को ले ली होगी. उधर विभाग के अवसर भी बीच का रास्ता निकालने के उन विकल्पों पर मंथन कर रहे हैं.


शेड्यूल जारी रहने तक प्रदर्शन करेंगे: 69000 शिक्षक भर्ती में शामिल आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी अमरेंद्र पटेल ने बताया कि वह शेड्यूल जारी होने तक प्रदर्शन करेंगे. हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद एक बार फिर से वह नियुक्ति के लिए अनिश्चितकालीन प्रदर्शन पर बैठ गए हैं. नियुक्ति प्रक्रिया का शेड्यूल जारी होने तक उनका यह धरना जारी रहेगा. कोर्ट ने अभ्यर्थियों के हक में फैसला दिया है. मगर सरकार हिलाहवाली कर रही है. वहीं बेसिक शिक्षा परिषद के निदेशक प्रताप सिंह बघेल का कहना है कि मुख्यमंत्री के आदेश के अनुसार कार्रवाई की प्रक्रिया चल रही है. अभी इस विषय पर कुछ भी कहना सही नहीं है.