आईटीआर भरते वक्त भी कर व्यवस्था बदलने का मौका

 

आईटीआर भरते वक्त भी कर व्यवस्था बदलने का मौका



वित्त वर्ष 2023-24 के लिए आयकर रिटर्न भरने की अंतिम तिथि करीब आ रही है। आयकर नियमों के तहत रिटर्न दाखिल करते वक्त भी कर व्यवस्था बदलने की छूट दी गई है। यानी जिन वेतनभोगियों को डिफॉल्ट के तौर पर नई कर व्यवस्था में डाल दिया गया हो, वे अब भी कर छूट पाने के लिए पुरानी कर व्यवस्था चुन सकते हैं। इसी तरह पुरानी कर व्यवस्था वाले करदाता नई व्यवस्था को अपना सकते हैं। इसके लिए उन्हें रिटर्न दाखिल करने के वक्त केवल एक फॉर्म भरकर देना होगा।

समय पर आईटीआर दाखिल करना जरूरी

पुरानी व्यवस्था में जाने के लिए भरना होगा फॉर्म


वेतनभोगियों को कर व्यवस्था बदलने की छूट

केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2023-24 से नई कर व्यवस्था को डिफॉल्ट बना दिया है। इसका मतलब यह है कि अगर कोई नौकरीपेशा करदाता पुरानी और नई कर व्यवस्था के बीच स्पष्ट रूप से चयन नहीं करता है, तो उसके कर की गणना स्वचालित रूप से नई व्यवस्था के तहत की जाएगी। ऐसी स्थिति में ऐसे कई कर्मचारियों के वेतन से टीडीएस की कटौती भी नई व्यवस्था के आधार पर हुई होगी, जिनकी कर देनदारी नई व्यवस्था में अधिक निकलती है। यह उनके लिए घाटे का सौदा होगा। इससे बचने के लिए उनके पास अब भी पुरानी कर व्यवस्था को अपनाकर आईटीआर दाखिल करने का विकल्प है।


इनके पास मौका आयकर से जुड़े नियमों के अनुसार, वेतनभोगी व्यक्तियों और व्यावसायिक पेशेवरों को हर साल पुरानी और नई कर व्यवस्थाओं के बीच स्विच करने का अवसर दिया जाता है। भले ही किसी करदाता को वित्त वर्ष की शुरुआत में डिफॉल्ट के तौर पर नई कर व्यवस्था में डाल दिया गया हो या उसने खुद कोई भी व्यवस्था चुनी हो। रिटर्न भरते समय कर इसे बदलने का मौका मिलता है। इसका मतलब यह है कि अगर करदाता ने भूलवश भी कोई व्यवस्था चुन ली है तो रिटर्न भरते समय वह गलती को सुधार सकता है।


यदि आप इस वर्ष आयकर रिटर्न दाखिल करते समय पुरानी कर व्यवस्था का विकल्प चुन रहे हैं तो यह भी सुनिश्चित कर लें कि आईटीआर 31 जुलाई तक की समय सीमा तक जरूर दाखिल कर दें। ऐसा इसलिए है क्योंकि आयकर नियम किसी व्यक्ति को पुरानी कर व्यवस्था का विकल्प चुनने की अनुमति केवल तभी देते हैं, जब आईटीआर समय पर दाखिल किया जाता है। यदि कोई व्यक्ति 31 जुलाई के बाद विलंबित आईटीआर (1 अगस्त से 31 दिसंबर के बीच) दाखिल करता है तो कर देनदारी की गणना नई कर व्यवस्था के आधार पर ही की जाएगी।


यदि कोई करदाता अपने नियोक्ता को सूचित करने में विफल रहता है, तब भी आयकर रिटर्न दाखिल करते समय कर व्यवस्था को बदल सकता है। बशर्ते यह नियत तारीख के भीतर किया गया हो। कर विशेषज्ञों के अनुसार, अगर करदाता को लगता है कि नई अथवा पुरानी व्यवस्था में उसे अधिक फायदा पहुंच रहा तो है तो आयकर रिटर्न दाखिल करते समय इसे बदल सकता है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि हर साल कर व्यवस्था बदलने की यह सुविधा सिर्फ वेतनभोगियों के लिए है। कारोबारी या व्यापारी सिर्फ एक बार ही बदल सकते हैं, हर साल नहीं।


आयकर विभाग हाल ही में आकलन वर्ष 2024-25 करदाताओं के लिए आयकर रिटर्न फॉर्म जारी किए। इनमें कर छूट दावों के लिए विवरण फॉर्म के साथ ही फॉर्म-10-आईईए शामिल है। जो करदाता नई से पुरानी कर व्यवस्था में आना चाहता है, उसे यह फॉर्म भरना होगा। ऐसा नहीं करने पर यह माना जाएगा कि करदाता ने नई व्यवस्था को अपनाया है और कर की गणना भी उसी के मुताबिक होगी। जो लोग पुरानी कर व्यवस्था में वापस जाना चाहते हैं, उन्हें नए 10-आईईए फॉर्म में कई तरह की जानकारियों को भरना होगा। इसके तहत पैन नंबर, कर भुगतान का पूरा विवरण आदि शामिल हैं। इसके अलावा इसके अतिरिक्त, फॉर्म में दोनों कर व्यवस्था के बदलाव करने के बारे में भी पूछा जाएगा।


●आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 115बीएसी(6) नई कर व्यवस्था से संबंधित है। यह धारा किसी व्यक्ति को आयकर रिटर्न दाखिल करते समय प्रत्येक वित्तीय वर्ष मे कर व्यवस्था चुनने की अनुमति देती है।


●आयकर विभाग ने वित्त वर्ष 2023-24 के लिए आयकर रिटर्न फॉर्म अधिसूचित कर दिए हैं। विभाग के पोर्टल पर आईटीआर फॉर्म दाखिल करते वक्त पूछा जाएगा कि ’’क्या आप नई कर व्यवस्था से बाहर निकलने के लिए धारा 115बीएसी(6) के तहत विकल्प का प्रयोग करना चाहते हैं?’’


●ड़िफॉल्ट के तौर पर ‘नहीं’ का विकल्प होगा। करदाता को इसे बदलकर ‘हां’ का विकल्प चुनना होगा।


●यदि विकल्प ‘नहीं’ चुना जाता है, तो आयकर रिटर्न फॉर्म नई कर व्यवस्था के स्लैब के अनुसार देय आयकर की राशि की गणना करेगा।


●यदि करदाता ‘हां‘ चुनता है, तो देय आयकर की गणना पुरानी कर व्यवस्था में आयकर स्लैब के आधार पर की जाएगी।



कर छूट और कटौतियों में बड़ा अंतर

पुरानी और नई आयकर व्यवस्था के बीच मुख्य अंतर इनके तहत प्राप्त कर छूट और कटौतियां हैं। पुरानी व्यवस्था के तहत करदाता पर्याप्त कटौती का दावा कर सकते हैं, जिसमें मानक कटौती के साथ धारा 80सी, धारा 80डी और धारा 80टीटीए में निर्दिष्ट कर छूट शामिल हैं। पुरानी कर व्यवस्था में एक वेतनभोगी व्यक्ति कुल 2.5 लाख रुपये की कटौती का दावा कर सकता है। इसके विपरीत नई व्यवस्था चुनने वाले करदाता को केवल 50 हजार रुपये की मानक कटौती का ही लाभ मिलेगा।


कर व्यवस्था का चयन जरूरी

यदि कोई वेतनभोगी करदाता पुरानी व्यवस्था को चाहता है तो उसे नए वित्त वर्ष की शुरुआत में अपने नियोक्ता को इस संबंध में सूचित करना होगा। अगर वह ऐसा नहीं करता है तो वह अपने आप नई कर व्यवस्था में आ जाएगा और इसके तहत तय आयकर स्लैब के आधार पर उसके वेतन से आयकर काटा जाएगा। वित्त वर्ष 2024-25 में भुगतान किए गए अतिरिक्त कर के लिए आयकर रिफंड का दावा करने के लिए उन्हें अगले वित्तीय वर्ष तक इंतजार करना होगा।


अगर नई से पुरानी व्यवस्था को चुन रहे हैं तो .....

● नियोक्ता ने जो फॉर्म-16 और टीडीएस सर्टिफिकेट दिए हैं, उनमें कर कटौती नई व्यवस्था के हिसाब से होनी चाहिए।


● इसका मतलब ये है कि 31 मार्च तक कर बचत के लिए होम लोन के मूलधन और ब्याज के भुगतान और 80सी के तहत निवेश समेत जो भी उपाय किए होंगे, उनका जिक्र फॉर्म-16 में नहीं होगा।


● ऐसे में करदाता को रिटर्न में इन सभी का ब्योरा अलग से भरना होगा।


● इसके साथ ही करदाता जो भी कर छूट का दावा करेंगे, उसके सबूत सुरक्षित रखने होंगे।



अगर पुरानी से नई व्यवस्था में बदलाव कर रहे हैं तो....

● करदाता को सिर्फ दो कटौती का फायदा मिलेगा। एक तो वेतन या पेंशन से 50 हजार रुपये की मानक कटौती और दूसरे, एनपीएस के टियर-1 खाते में नियोक्ता की तरफ से किया गया योगदान


● चूंकि ये दोनों छूट पुरानी व्यवस्था में भी मौजूद हैं, इसलिए अगर करदाता ने यह व्यवस्था चुनी थी तो इनका जिक्र फॉर्म-16 में होना चाहिए। ऐसे में रिटर्न भरते वक्त कोई दिक्कत नहीं आएगी


●करदाताओं को दोनों कर व्यवस्था की अच्छी तरह तुलना करनी चाहिए और जो उनके लिए सबसे अधिक फायदेमंद हो, उसका चुनाव करना चाहिए।





आयकर का गणित ऐसे समझें

माना किसी करदाता की सालाना आय 11 लाख रुपये है। उसे किस व्यवस्था के अनुसार आईटीआर दाखिल करना सबसे फायदेमंद रहेगा, यह जानते हैं -


किसी तरह का निवेश नहीं करने पर अगर करदाता कुछ भी निवेश नहीं करता है और उसका पीएफ भी नहीं कटता है तो पुरानी व्यवस्था के तहत कर के रूप में उसे 1,48,200 रुपये चुकाने होंगे। वहीं, नई व्यवस्था में 78,000 हजार रुपये ही चुकाने होंगे। यहां करीब 70 हजार रुपये की बचत होगी।

निवेश करने की स्थिति में अगर करदाता पुरानी कर व्यवस्था में 80सी के तहत 1.50 लाख रुपये, एनपीएस के तहत 50 हजार रुपये, एचआरए के तहत 2 लाख रुपये की छूट का लाभ उठाता है तो कर के रूप में 44,200 रुपये ही चुकाने होंगे।



सूचना पुरानी व्यवस्था में 2.5 लाख रुपये की कर छूट मिलती है। इसमें 80सी के तहत 1.5 की कर छूट, 50 हजार की मानक कटौती और 50 हजार एनपीएस में योगदान के शामिल हैं। वहीं, नई व्यवस्था में केवल 50 हजार की मानक कटौती का ही लाभ मिलता है।