35 साल बच्चों को पढ़ाया, बुढ़ापे में इलाज के लिए भी रुपये नहीं

 समाज कल्याण विभाग से संचालित व अनुदानित प्रदेश के 489 व प्रयागराज के 28 प्राथमिक स्कूलों से सेवानिवृत्ति शिक्षकों की हालत खस्ता है। जो परिवार से समृद्ध हैं उनका बुढ़ापा तो ठीक-ठाक कट रहा है, लेकिन जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं उन्हें दवा-इलाज तक के लिए मोहताज होना पड़ रहा है। भले ही ये स्कूल बेसिक शिक्षा परिषद से मान्यता प्राप्त और समाज कल्याण विभाग से अनुदानित हैं। इनके जीपीएफ की कटौती भी होती है, लेकिन न तो इन्हें पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) का लाभ मिलता है और न ही राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) से आच्छादित हैं। इन शिक्षकों को जब पेंशन देने की बात होती है तो विभाग यह कहते हुए पल्ला झाड़ लेता है कि पेंशन का कोई प्रावधान नहीं है। इस मुद्दे को लेकर शिक्षकों ने कई बार हाईकोर्ट में भी याचिकाएं कीं, लेकिन अब तक हाथ खाली है।



ऋषिकुल प्राथमिक विद्यालय शिवकुटी से 2023 में सेवानिवृत्त अंबिका प्रसाद शुक्ल का स्वास्थ्य ठीक नहीं है और जीपीएफ का जो पैसा मिला था उसी से गुजारा चल रहा था। जीपीएफ की रकम से ही बेटी की शादी कर दी और अब कोई वित्तीय सहारा नहीं है।


समाज कल्याण विभाग से संचालित बाल विद्यालय नयापुरा से 2015 में सेवानिवृत्त श्याम सूरत ने 35 साल तक बच्चों को पढ़ाया। जब वह रिटायर हुए थे तब उनका वेतन 46 हजार रुपये था। विडंबना है कि आज उनके पास अपना इलाज कराने तक के रुपये नहीं है। 2017 से पेट की बीमारी से ग्रसित श्याम सूरत का एसआरएन अस्पताल से लेकर बीएचयू तक इलाज चल रहा था लेकिन रुपयों के अभाव में दवा बंद करनी पड़ी। पत्नी का निधन हो गया और परिवार ने भी किनारा कर लिया है।


बाल्मीकि विद्यालय न्याय मार्ग से 2019 में छेदीलाल जब सेवानिवृत्त हुए तो उनका वेतन 70 हजार रुपये प्रतिमाह था। वर्तमान में घर की माली हालत ठीक नहीं है और बच्चों ने भी अलग कर दिया है। किसी तरह आंख का इलाज करा रहे हैं।


बाल विद्यालय नयापुरा से 2018 में सेवानिवृत्त पन्ना लाल का आखिरी वेतन 75 हजार रुपये था। पन्ना लाल का शुगर, हार्ट और फेफड़े का इलाज चल रहा था, लेकिन पैसे के अभाव में बंद करना पड़ा। उनका पैदल चलना-फिरना मुश्किल है। घर के लोगों ने भी साथ छोड़ दिया है।


तीन-चार दशक तक शिक्षण के बाद सेवानिवृत्ति पर बुढ़ापे का सहारा न होना चिंताजनक है। पेंशन के नाम पर एक रुपया भी नहीं मिलने से कई साथी इलाज तक के लिए तरस रहे हैं। लंबे समय तक कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद भी हमारे हाथ खाली जरूर हैं, लेकिन हम अपना हक लेकर रहेंगे।


सीएल कुशवाहा, जिलाध्यक्ष, उत्तर प्रदेश अशासकीय सहायता प्राप्त विद्यालय शिक्षक एसोसिएशन