मोमोज बेचकर पढ़ाई संग परिवार संभाल रहीं अंकिता, शिक्षक ने मदद की तो सपने को लगे पंख

 

प्रयागराज। कोई बलिया, देवरिया तो कोई आजमगढ़ से आया है। हजारों बार पैदल चलके इलाहाबाद आया है। कई बेटियों का हौसला भी बाप से लड़कर आया है, इलाहाबाद के लड़कों तुमसे ये मौका ना छूटे.., मशहूर लेखक व कवि नीलोत्पल मृणाल की ये पंक्तियां आजमगढ़ निवासी अंकिता मौर्या पर सटीक बैठती हैं।



अपने सपनों को साकार करने आजमगढ़ से जनवरी 2024 में प्रयागराज आईं अंकिता राजापुर की दस नंबर गली के सामने मंचूरियन, अंडा रोल, मोमोज व चाऊमीन बेचकर न सिर्फ पढ़ाई कर रहीं हैं, बल्कि परिवार को संभाल रहीं हैं। ऐसे समय में जब युवाओं का पूरा दिन स्मार्टफोन पर सोशल मीडिया पर बीतता है, अंकिता का जुनून उन्हें चैन से सोने तक नहीं देता।


अंकिता कर्मचारी चयन आयोग की परीक्षा पास करके कुछ बनने के लिए प्रयागराज आईं थीं। लेकिन दो महीने बाद होली के दिन पिता के आकस्मिक निधन पर उन्हें लौटना पड़ा। परिवार के एकमात्र कमाऊ सदस्य के निधन के बाद उनके सामने दो ही रास्ते थे। या तो सबकुछ छोड़कर वापस आजमगढ़ चली जाएं या अपने सपनों को साकार करने के लिए प्रयागराज में ही रहकर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी जारी रखना।


दूसरा रास्ता कठिन तो था लेकिन अंकिता ने हौसला नहीं खोया। प्रयागराज लौटकर फिर से तैयारी में जुट गईं। अपने शिक्षक की सहायता और आजमगढ़ की तीन सहेलियों के साथ अंकिता ने 15 दिनों पहले खाने-पीने का स्टॉल लगाना शुरू किया है। फिलहाल वह दिन में एसएससी व बैंक पीओ जैसी परीक्षाओं की तैयारी करती हैं और शाम को चार से रात नौ बजे तक स्टाल पर मंचूरियन, अंडा रोल, मोमोज व चाऊमीन बेचती हैं।


अंकिता ने बताया कि पिता के निधन के बाद अपने सपनों को पूरा करने के साथ परिवार भी संभालना था। आजमगढ़ में रहकर तैयारी अच्छे से नहीं हो पाती। इसलिए प्रयागराज आने का निर्णय लिया। पढ़ाई के साथ परिवार की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए दुकान लगाती हैं।


शिक्षक ने मदद की तो सपने को लगे पंख

पिता के आकस्मिक निधन के बाद अंकिता के ऊपर मां, छोटी बहन व एक भाई की जिम्मेदारी आ गई। आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए आसपास के पांचवीं तक बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। इससे सिर्फ राजापुर के कमरे का किराया ही निकल पाता था। परिवार को आर्थिक सहयोग नहीं कर पाती थीं। यह बात अंकिता ने आजमगढ़ में रहने वाले अपने शिक्षक गिरजेश तिवारी को बताई और एक फूड स्टाल खोलने की इच्छा जताई तो उन्होंने अंकिता को 60 हजार रुपये की सहायता की।


● दिन में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी, शाम को लगाती हैं ठेला


● पिता की मौत के बाद भी कम नहीं हुआ अंकिता का हौसला