लखनऊ। पिछले 19 साल से बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग में संविदा पर कार्यरत बाल विकास परियोजना अधिकारियों (सीडीपीओ) सहित करीब 260 कार्मिकों का वेतन भुगतान व संविदा वृद्धि रोक दी गई है। शासन ने संविदा बढ़ाने के प्रस्ताव पर सवाल उठाते हुए इन कार्मिकों के स्थान पर आउटसोर्सिंग से भर्ती करने का विकल्प सुझाया है। इससे करीब 260 कर्मचारियों के सड़क पर आने का खतरा पैदा हो गया है।
जानकारी के मुताबिक बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग में वर्ष 2003 में आईसीडीएस-तृतीय
अनियमितता की शिकायत पर सतर्कता जांच के हुए थे आदेश, रिपोर्ट तलब
परियोजना के अंतर्गत बाल विकास परियोजना अधिकारियों, मुख्य सेविकाओं व चतुर्थ श्रेणी कर्मियों के रिक्त पदों पर नियुक्ति हुई थी। वर्ष 2003 में ही नियुक्ति प्रक्रिया में अनियमितता का हवाला देते हुए सतर्कता जांच बैठा दी गई। परियोजना अवधि 2005 तक थी। इस बीच जांच जारी रही और विभाग वर्ष 2006 से 2023 तक उच्च स्तर से अनुमोदन लेकर इनकी संविदा एक-एक वर्ष के लिए बढ़ाता रहा। जुलाई 2023 में संविदा विस्तार का
प्रस्ताव शासन को भेजा गया, जिसे रोक दिया गया। तब से वेतन भुगतान भी नहीं हुआ है। बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग
के संयुक्त सचिव अशोक कुमार तिवारी ने 30 मई को विभागीय निदेशक को पत्र लिखा है। इसमें कई सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा है कि सतर्कता जांच जारी होने के बावजूद साल दर साल संविदा वृद्धि का प्रस्ताव क्यों भेजा गया? खुली सतर्कता जांच निदेशालय स्तर पर प्रचलित रही लेकिन इस तथ्य को उच्चाधिकारियों के संज्ञान में नहीं लाया गया। शासन ने कहा है कि संविदा कार्मिकों के संविदा कार्यकाल को बढ़ाने का प्रस्ताव खुली सतर्कता जांच जारी रहने और न्यायालय में
प्रकरण लंबित होने के चलते स्वीकार करने योग्य नहीं है। काम की आवश्यकता को देखते हुए आउटसोर्सिंग से कार्मिकों को रखा जा सकता है। इसके अलावा शासन ने प्रकरण में एफआईआर की वर्तमान स्थिति की जानकारी से अवगत कराने को कहा है। निदेशक से यह भी पूछा है कि सतर्कता अधिष्ठान को जरूरी दस्तावेज मुहैया न कराने और पत्रावली गायब होने के दोषी पटलवार कार्मिक कौन हैं।
उधर, कर्मचारियों ने नियुक्ति में किसी तरह की गड़बड़ी न होने का हवाला देते हुए पूर्व की तरह संविदा बढ़ाने की मांग की है। यहां बता दें कि इस प्रकरण में चयन में प्रक्रियागत खामी थी