अशासकीय सहायता प्राप्त (एडेड) माध्यमिक विद्यालयों में फर्जी नियुक्ति पत्र से नौकरी पाने का खेल कई बार हो चुका है। इसके बावजूद विभाग की ओर से ऐसे फर्जीवाड़े रोकने के लिए कोई पुख्ता इंतजाम नहीं किए गए हैं। न ही फर्जी नियुक्ति पत्र तैयार करने वाले सरगना तक जांच एजेंसियां पहुंच पाई हैं। ताजा मामला कानपुर का है। वहां पर फर्जीवाड़ा पकड़ा गया तो पुलिस ने मुकदमा दर्ज करके जांच शुरू कर दी है।
एडेड विद्यालयों में फर्जी नियुक्ति पत्र के जरिये नौकरी पाने का खेल अमूमन विभागीय स्थानांतरण और नई भर्ती के समय होता है, जिससे कि भीड़ में वह पकड़े न जाएं। 2018 में स्थानांतरण सीजन में तीन फर्जी शिक्षक बनाए गए थे। उस समय पीलीभीत के एक इंटर कॉलेज से तीन फर्जी शिक्षकों का स्थानांतरण दिखाया गया। वह फर्जी स्थानांतरण आदेश लेकर प्रत्यूष झा हरदोई, उसका भाई उत्कर्ष झा
अंबेडकर नगर और जितेंद्र यादव मैनपुरी पहुंचा था। हरदोई और अंबेडकरनगर के डीआईओएस ने ज्वाइन नहीं करवाया, जबकि मैनपुरी के डीआईओएस ने ज्वाइनिंग करवा दी थी। जितेंद्र यादव ने करीब एक वर्ष तक नौकरी की और वेतन लिया।
जब उसकी शिकायत हुई तो मामला प्रकाश में आया। जांच हुई तो उसे हटा दिया गया और मुकदमा हुआ, लेकिन रिकवरी नहीं हुई। इस मामले
में निदेशालय के कुछ लिपिकों की मिलीभगत थी, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। वह लिपिक अब भी महत्वपूर्ण पटल पर काम कर रहे हैं। अब कानपुर में नौ फर्जी नियुक्ति पत्र के मामले सामने आए हैं। नी में से दो ने कॉलेज में ज्वाइन भी कर लिया था। उसमें से एक ने तीन महीने का वेतन भी उठा लिया है। प्रमाण पत्रों के सत्यापन के दौरान पता चला तो मुकदमा हुआ और दो लिपिक निलंबित किए गए हैं।
लाखों देकर बने थे फर्जी शिक्षक
फर्जी नियुक्ति पत्र के जरिये नौकरी पाने वाले नौ युवक-युवतियों ने लाखों रुपये खर्च किए हैं। इन सभी से मोटी रकम लेकर नियुक्ति पत्र जारी किया गया था। उन्हें भरोसा दिया गया था कि नौकरी पक्की है। दो की नियुक्ति होने के बाद उन्हें भरोसा भी हो गया था। अब पकड़े गए और मुकदमा दर्ज हुआ तो सब फरार हो गए हैं। इस खेल में विभाग के किसी कर्मचारी की भी मिलीभगत हो सकती है।