लखनऊ। परिषदीय विद्यालयों की बेहत्तरी के लिए भले ही खूब खर्च किया जा रहा हो, पर इनमें बच्चों को पढ़ाने से विभाग के ही लोग कतरा रहे हैं। यहां तैनात्त शिक्षक, विभागीय अधिकारी व कर्मचारी अपने बच्चों का दाखिला इन स्कूलों में नहीं करवाना चाहते। लखनऊ शिक्षा भवन में करीच 30 कर्मचारी व अधिकारी तैनात हैं। इनमें ज्यादातर के बच्चे नामचीन निजी स्कूलों में पढ़ते हैं। ये सिर्फ बानगी है। जिले में 1900 से अधिक परिषदीय स्कूल हैं। इनमें करीब 1.90 लाख
विद्यार्थी पंजीकृत हैं। ज्यादातर गरीव और मजदूर परिवार के बच्चे हैं। बेसिक शिक्षक संघ का कहना है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा गुणवत्ता लगातार गिर रही है।
स्कूलों में शिक्षकों की कमी, आधुनिक व्यवस्थाओं का अभाव व तेजी से बढ़ते निजी शिक्षण संस्थानों से सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या घट रही है।
दो साल में 21 हजार से ज्यादा विद्यार्थियों ने कटवाए नाम
स्कूलों में नामांकन बढ़ाने के लिए हर साल अप्रैल से सर्व शिक्षा अभियान की शुरुआत होती है। इसके बाद भी थीते दो साल में 21 हजार से अधिक बच्चों ने परिषदीय विद्यालयों से नाम कटवाए हैं। राजधानी के स्कूली में साल 2021-22 में 211326 छात्र पंजीकृत थे, साल 2023 में यह संख्या घटकर दो लाख हो गई। सत्र 2023-24 में 21 लाख से घटकर यह संख्या 189700 से कम हो गई। हालांकि, विभाग ऑनलाइन व्यवस्था से फर्जी दाखिले पर रोक लगने का असर बता रहा है।
लाखों खर्च के बाद भी सुधार नहीं
• प्रत्येक विद्यालय को करीब 50 हजार रुपये का कंपोजिट ग्रांट मिलता है। इसके अलावा अन्य व्यवस्थाओं व शिक्षकों के वेतन पर सरकार लाखों खर्च कर रही है, फिर भी शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हो रहा है। बेसिक शिक्षक संघ के पदाधिकारी संदीप कहते हैं कि शिक्षक की जिम्मेदारी बच्चों को पढ़ाना है, लेकिन अन्य कामों में शिक्षकों की उयूटी लगने से पढ़ाई प्रभावित होती है। कुछ स्कूलों बैठने तक की सुविधा नहीं है। ऐसे में वच्चों को बेहतर शिक्षा कैसे मिलेगी।
बच्चों को पढ़ाने के लिए सभी स्वतंत्र
यह व्यक्तिगत मामला है, जरूरी नहीं कि परिषदीय विद्यालय में अधिकारी, शिक्षक अपने बच्चों का दाखिला करवाएं। अपने बच्चे के दाखिले के लिए सभी स्वतंत्र हैं। परिषदीय विद्यालयों की व्यवस्था व शिक्षा की गुणवत्ता में बहुत सुधार हुआ है। राम प्रवेश, बीएसए