लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक अहम फैसले में कहा कि किसी निजी संस्थान के कर्मचारी सेवा मामले में हाईकोर्ट में रिट याचिका दाखिल नहीं कर सकते, जब तक इसके लिए कानूनी प्रावधान न हों। हो सकता है कि कोई शिक्षण संस्थान लोक कार्य कर रहा हो लेकिन सेवा का करार निजी प्रकृति का होने के नाते वह लोक कार्य नहीं माना जाएगा। ऐसे निजी संविदा कर्मी की सेवा मामले में दाखिल याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।
इस महत्वपूर्ण विधिक व्यवस्था के साथ न्यायमूर्ति मनीष माथुर की एकल पीठ ने अंबेडकरनगर के डीएवी कॉलेज और डीएवी पब्लिक स्कूल के शिक्षक सूर्य प्रकाश मिश्र को बर्खास्त करने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी।
याची को पिछले साल सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। उसने इस आदेश को चुनौती देते हुए कोर्ट से इसे रद्द करने का आग्रह किया था। साथ ही देयों का भुगतान करने के निर्देश देने की भी गुजारिश की थी। याची का कहना था कि वह शिक्षण का कार्य करता है, जो लोक कार्य में आएगा। ऐसे में उसकी याचिका सुनवाई योग्य है।
सरकारी वकील ऋषभ त्रिपाठी ने याचिका का विरोध किया। कहा कि डीएवी कॉलेज व डीएवी पब्लिक स्कूल निजी संस्थान हैं। ऐसे में वहां से सेवा से हटाने के आदेश को संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिका दाखिल कर चुनौती नहीं दी जा सकती। अपने तर्क के समर्थन में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के सेंट मैरी एजुकेशन सोसाइटी के मामले में दिए गए फैसले का हवाला भी दिया।
कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला याची के मामले में लागू है, जिसमें याची ने कॉलेज के साथ हुए सेवा के करार को अमल में लाने के लिए याचिका दाखिल की। ऐसे में संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दाखिल यह याचिका सुनवाई के लिए ग्रहण करने योग्य नहीं है। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट के याचिका खारिज कर दी।