लखनऊः विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) इस बार हाइब्रिड मोड में सीयूईटी (कामन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट) कराएगा। इससे जून के पहले और दूसरे सप्ताह तक प्रवेश परीक्षा का परिणाम घोषित हो जाएगा। अगस्त में प्रवेश प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। देश के सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों के साथ सीयूईटी में शामिल राज्य विश्वविद्यालय समय से छात्रों का प्रवेश कर पाएंगे। विद्या भारती उच्च शिक्षण संस्थान की ओर से लखनऊ विश्वविद्यालय में आयोजित अखिल भारतीय संस्थागत नेतृत्व समागम में यह बात यूजीसी के चेयरमैन प्रो. एम. जगदीश कुमार ने कही। उन्होंने समागम के तकनीकी सत्र में देश भर के उच्च शिक्षण संस्थानों के कुलपति, कालेजों के प्राचार्य, संस्थानों के निदेशक और शिक्षाविदों से संवाद किया।
यूजीसी चेयरमैन ने बताया कि देश के सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में सीयूईटी अनिवार्य है। राज्य विश्वविद्यालयों को भी इसमें शामिल होने के लिए पत्र लिखा गया है। केवल कंप्यूटर आधारित टेस्ट होने से छात्रों को असुविधा होती थी। अब हाइब्रिड मोड में सभी प्रमुख विषयों में पेपर-पेन यानी ओएमआर पर बहुविकल्पीय प्रश्नों के उत्तर भी दे सकेंगे। सभी केंद्रीय स्कूल परीक्षा केंद्र बनाए जा सकेंगे। नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन पर चर्चा करते हुए बताया कि विश्वविद्यालयों में नेशनल क्रेडिट फ्रेमवर्क को लागू किया गया है। विद्यार्थी जो क्रेडिट हासिल करेंगे, उसे एकेडमिक बैंक आफ क्रेडिट पोर्टल में रखेंगे। चार वर्ष की डिग्री में 160 क्रेडिट हासिल करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि देश को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने का लक्ष्य मिला है। नई शिक्षा
में बबेोले यूजीसी चेयरमैन
नीति के सही से क्रियान्वयन के साथ शिक्षा में बदलाव के साथ इसे हासिल किया जा सकता है। राष्ट्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी मंच
(एनइटीएफ) के चेयरमैन प्रोफेसर अनिल डी सहस्रबुद्धे ने नैक मूल्यांकन की नई प्रणाली पर चर्चा करते हुए बताया कि अब नैक की ग्रेडिंग का तरीका बदल रहा है। इसमें निर्धारित प्रोफार्मा और मानक पूरा करने वाले संस्थानों को नैक मूल्यांकन होने का सर्टिफिकेट मिलेगा। ग्रेड प्वाइंट नहीं रहेगा। इससे 70 प्रतिशत ऐसे संस्थान जो नैक से दूर हैं, वह भी आगे आएंगे। इसमें शीर्ष संस्थानों को लेवल एक से पांच तक अलग से मिलेगा। उन्होंने अनुवादिनी के माध्यम से पाठ्य सामग्री के अनुवाद सुविधा की चर्चा की। साथ ही एक राष्ट्र, एक डाटा की अवधारणा पर जोर दिया। भारतीय भाषाओं के लिए उच्चाधिकार प्राप्त समिति के अध्यक्ष पद्मश्री प्रो. चामू कृष्ण शास्त्री ने शिक्षा में भारतीय भाषाओं को शामिल करने और उनकी दृश्यता को बढ़ाने की अनिवार्यता बताते हुए कहा कि भारत की 90 प्रतिशत आबादी अंग्रेजी में पारंगत नहीं हैं। स्थानीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय भाषाओं में अध्ययन सामग्री उपलब्ध होनी चाहिए। शिक्षकों को बहुभाषी होना चाहिए। गर्मी में शिविर लगाकर वह भाषाओं को पढ़ा सकते हैं। विद्या भारती उच्च शिक्षण संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. कैलाश चंद्र शर्मा ने सत्र का संचालन किया।
स्नातक में रोजगार के अवसर बढ़ाएंगे
यूजीसी चेयरमैन बातचीत में बताया कि चार करोड़ विद्यार्थी उच्च शिक्षा में पंजीकृत होते हैं। इसमें 70 प्रतिशत बीए, बीएससी, बीकाम जैसे परंपरागत कोर्स करते हैं। ऐसे विद्यार्थियों को अधिक अवसर देने के लिए एक नीति बनाई जा रही है। इसमें माइक्रोसाफ्ट, इंफोसिस, आइबीएम, टीसीएस जैसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगठनों में चलने वाले आनलाइन प्रोग्राम को जोड़ा जाएगा। विश्वविद्यालयों को इन कोर्स के विषय में बताया जाएगा। ऐसे 100 प्रोग्राम होंगे। विद्यार्थी अपनी रुचि के अनुसार रजिस्ट्रेशन करके अपने कौशल को बढा सकेंगे।