अधिकारियों की उदासीनता का परिषदीय परीक्षा व्यवस्था पर पड़ा बड़ा असर, बजट के अभाव में नहीं हो सका निर्देशों का पालन
अधिकारियों की उदासीनता का व्यवस्था पर कितना बड़ा असर पड़ सकता है, इसे परिषदीय विद्यालयों में चल रही अर्धवार्षिक परीक्षाओं के इंतजाम से समझा जा सकता है। शासन ने इन विद्यालयों में अर्धवार्षिक परीक्षाओं के निर्देश तो जारी कर दिए लेकिन हाल यह है कि अधिकांश जिलों में प्रश्नपत्र तक का इंतजाम नहीं किया जा सका।
एनसीआर के अंतर्गत आने वाले गौतमबुद्ध नगर, गाजियाबाद और हापुड़ में तो 80 प्रतिशत स्कूलों में ब्लैक बोर्ड पर ही प्रश्न पत्र लिखे गए। यहां तक कि कहीं- कहीं उत्तर पुस्तिकाओं का इंतजाम भी छात्रों और शिक्षकों को ही करना पड़ा। इससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि प्राथमिक शिक्षा में गुणवत्ता के दावे कितने सच हैं।
परिषदीय विद्यालय शिक्षा प्रदान करने के प्राथमिक केंद्र हैं, जहां छात्र - छात्राओं को संसाधन महैया कराने के प्रति अधिकारियों को गंभीर होना होगा। परीक्षाओं के संबंध में औपचारिकताओं का निर्वहन नहीं किया जा सकता, इसके लिए हर स्तर पर तैयारी होनी चाहिए। अव्यवस्था की स्थिति छात्रों को भी परीक्षाओं के प्रति उदासीन कर देती है और इसका असर उन छात्रों पर भी पड़ता है जो मेधावी हैं और पूरी मेहनत से परीक्षाओं की तैयारी करते हैं।
परिषदीय विद्यालय प्राथमिक शिक्षा की रीढ़ हैं, जहां विशेष तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चे अध्ययनरत हैं। नई शिक्षा नीति के तहत इन विद्यालयों में स्मार्ट क्लास समेत अन्य आधुनिक संसाधन उपलब्ध कराने की बातें कही जाती रही हैं लेकिन इसका लाभ छात्रों को तभी मिल सकता है जब अधिकारी शासकीय निर्देशों को ईमानदारी से अमल में लाएं। विद्यालयों के प्रधानाचार्यों का कहना है कि इस साल प्रश्नपत्र के लिए बजट नहीं आया। उन्हें स्वयं से ही इसकी व्यवस्था करने के निर्देश दिये गए थे।
इस बात की जांच होनी चाहिए कि बजट क्यों नहीं आवंटित हो सका और इसके लिए व्यवस्था में गड़बड़ी कहाँ हुई। स्कूल शिक्षा महानिदेशक यदि यह कहते हैं कि जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों को प्रश्नपत्र छपवाकर परीक्षा कराने के निर्देश दिये गए थे तो उन्हें यह जवाब भी लेना चाहिए कि ऐसा क्यों नहीं हुआ। गड़बड़ी किसी भी स्तर पर हो, प्रभावित तो छात्र ही होता है।
बदलते बेसिक शिक्षा की पोल अर्द्धवार्षिक परीक्षा ने खोली, मास्टरजी ब्लैक बोर्ड पर लिख रहे प्रश्न पत्र
ज्यादातर स्कूलों में ब्लैक बोर्ड पर ही प्रश्न पत्र लिखे जा रहे, कॉपियों का खर्चा वहन कर रहे गुरु जी
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत परिषदीय स्कूलों के छात्रों को भाषा और गणित में निपुण बनाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं। स्मार्ट क्लास रूम, स्मार्ट बोर्ड आदि से शिक्षण को बेहतर बनाने के दावे किए जा रहे हैं, लेकिन अर्द्धवार्षिक परीक्षा ने पूरी व्यवस्था की पोल खोल दी है।
स्थिति यह रही कि छात्रों को प्रश्न पत्र ब्लैक बोर्ड पर चाक से लिखे मिले और उत्तर पुस्तिका के रूप में छात्रों ने कापियों का प्रयोग किया। शिक्षा विभाग छात्रों को डिजिटल और तकनीक युक्त बनाने का दंभ भर रहा है, जबकि वास्तविक स्थिति यह है कि परिषदीय स्कूलों में परीक्षा कराने से लेकर प्रश्न पत्र छपवाने और उत्तर पुस्तिका की व्यवस्था की जिम्मेदारी शिक्षकों पर है, जिसे वह स्वयं वहन कर रहे हैं।
नतीजा यह निकला कि प्रदेश के जिलों में छात्रों ने ब्लैक बोर्ड से प्रश्न पढ़े को उत्तर पुस्तिकाएं मिलीं, लेकिन प्रश्न पत्र कक्षा के ब्लैक बोर्ड पर चौक से लिखा रहा। सबसे अधिक कक्षा छह से आठवीं के छात्रों को परेशानी हुई। नई शिक्षा नीति में समग्र मूल्यांकन की बात मंचों से की जा रही है, प्रदेश के सरकारी स्कूलों में परीक्षा औपचारिकता बना दी गई।
एनसीआर के अंतर्गत आने वाले गौतमबुद्ध नगर गाजियाबाद और हापुड़ में 80 प्रतिशत स्कूलों में ब्लैक बोर्ड पर ही प्रश्न पत्र लिखे गए। गौतमबुद्ध नगर के सभी 511 स्कूलों में छात्रों ने ब्लैक बोर्ड से ही प्रश्न उतारे । गाजियाबाद के 431 स्कूलों में ब्लैक बोर्ड और करीब 15 स्कूलों में प्रश्न पत्र टाइप कराकर दिए गए। वहीं हापुड़ में 455 स्कूलों में कागज पर प्रश्न पत्र बनाकर और और अपनी कापियों के पन्नों पर 200 स्कूलों में ब्लैक बोर्ड पर परीक्षा जवाब दिए। कुछ स्कूलों में छात्रों कराई गई।