फर्रुखाबाद, परिषदीय शिक्षकों को रोजाना नए नियमों से बांधने की कवायद चर्चा में बनी हुई है। सरकारी चाबुक से बचने के लिए कोई भी शिक्षक-शिक्षिका खुलकर विरोध नहीं करती है। लेकिन अपने-अपने समूहों में चचर्चायें करते रहते हैं। अब तो लम्बे-चौड़े लेख भी लिखे जा रहे हैं। वे तो यहां तक कहने लगे हैं कि बेसिक शिक्षा मंत्री संदीप सिंह समेत शिक्षक नेता भी एक अधिकारी के आगे बौने साबित हो गए हैं। पूरा विभाग गिने-चुने अधिकारियों के चंगुल में फसकर कार्य कर रहा है। सभी का एकमात्र उद्देश्य शिक्षकों को परेशान करना है। अभी तक परेशान करने के अलावा दूसरा कोई लाभ शिक्षा व्यवस्था को नहीं मिला है और न ही बच्चों को अतिरिक्त सुविधा मिली है। छुट्टी के दिनों में शिक्षकों को बुलाना, रीज नया पत्र जारी करके नई-नई व्यवस्थाओं को सौंपना, पिछले कार्यों पर चर्चा न करके आगामी योजनाओं को थोपना अब आदत में आ गया है। जिले में प्राथमिक शिक्षकों के कई समूह सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं जिसमें अपने-अपने दिल की बात शिक्षक कहते हैं।
शिक्षक तो यहां तक कह रहे हैं कि इतने ऐप दे दिए गए हैं कि कौनसा इंस्टॉल किया जाए और किसको छोड़ा जाए। प्रशिक्षण और सूचनाओं का संकलन इतनी बड़ी तादाद में हो गयी हैं कि उनको याद रखना काफी मुश्किल हो गया है। उल्लेखनीय है कि शिक्षा के उन्नयन को लेकर शुरु से ही प्रयास होते रहे हैं। सरकार कोई भी हो लेकिन हर कोई बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए प्रयास करती रही है। संबंधित विभाग के मंत्री सक्रिय भूमिका निभाते थे। उनकी देखरेख में ही आलाधिकारी नियम बनाते थे और उनके क्रियान्वयन के लिए योजना तैयार की जाती थी। प्रथम पायदान से लेकर अंतिम पायदान तक जिम्मेदारियां दी जाती थी। जिसको निर्वहन करने का भी हर संभव प्रयास होता था। समाजवादी पार्टी की सरकार के दौरान ही मिड डे मिल योजना संचालित की गयी थी जो आज भी संचालित है। अब योजनाओं व नियमों की झड़ी लग गयी है, महानिदेशक स्तर से रोजाना एक न एक पत्र जारी किया जाता है जो सचिवालय से होते हुए जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय पहुंच जाता है। यहां से मातहतों को जिम्मेदारी सौंपी जाती है। कभी-कभी तो ऐसा हुआ है कि संबंधित समूह में रात 11 या 12 बजे सूचना प्रसारित की जाती है और निर्देशित किया जाता है कि अगले दिन सुबह इसका क्रियान्वयन आवश्यक है।
ऐसा पत्र देखकर शायद ही कोई खुश होगा। लेकिन अपने ऊपर शासन की तलवार को देख दिखावटी ही सही पालन किया जाता है। ऊपर से की जाने वाली कड़ाई का असर अंतिम पायदान पर बैठे शिक्षकों पर होता है। सरकारी चाबुक इस कदर चलाया जाता है कि उसकी जांच पड़ताल सुबह से शुरु हो जाती है। जो शिक्षक या शिक्षिका जवाब नहीं दे पाता है तो उसको कई मानकों से होकर गुजरना पड़ता है। शिक्षकों का रोना है कि उन पर तो कार्यवाही हो जाती है लेकिन भ्रष्टाचार के समुद्र में एक भी पत्थर नहीं फेंका जाता है। जिन कार्यों की कीमत तय थी अब उसमें बढोत्तरी हो गयी है।
भ्रष्टाचार पर लगाम सिर्फ और सिर्फ कागजों पर दिखाई दे रही है। सर्विस बुक को तो ऑनलाइन ही कर दिया गया है। लेकिन सारे कार्य ऑफलाइन किए जाते हैं। बगैर किसी चढ़ावे के कुछ नहीं होता है। एरियर भुगतान को लेकर लंबे चौड़े वायदे किए गए लेकिन जमीनी हकीकत में बगैर वसूली के कुछ नहीं होता है। जिले के अंदर होने वाले तबादलों को लेकर कई बार अधिकारियों ने अपनी पीठ थप- थपाई, होता कुछ नहीं दिखा। पिछले तीन वषों में बेसिक शिक्षा विभाग की एक भी योजना का सही से क्रियान्वयन नहीं हुआ है सिर्फ और सिर्फ शिक्षकों, का शोषण किया गया है और समाज में इस तरह से प्रसारित किया गया है कि शिक्षक ही एकमात्र अव्यवस्था के लिए दोषी है। शिक्षक अपनी बात किससे कहे, अब तो बेसिक शिक्षा मंत्री की भी शायद नहीं सुनी जाती। विभागीय आदेशों और कार्यों पर सिर्फ और सिर्फ एक अधिकारी के हस्ताक्षर होते हैं।