राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत परिषदीय स्कूलों के छात्रों को भाषा और गणित में निपुण बनाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं। स्मार्ट क्लास रूम, स्मार्ट बोर्ड आदि से शिक्षण को बेहतर बनाने के दावे किए जा रहे हैं, लेकिन अर्द्धवार्षिक परीक्षा ने पूरी व्यवस्था की पोल खोल दी है। स्थिति यह रही कि छात्रों को प्रश्न पत्र ब्लैक बोर्ड पर चाक से लिखे मिले और उत्तर पुस्तिका के रूप में छात्रों ने कापियों का प्रयोग किया। शिक्षा विभाग छात्रों को डिजिटल और तकनीक युक्त बनाने का दंभ भर रहा है, जबकि वास्तविक स्थिति यह है कि परिषदीय स्कूलों में परीक्षा कराने से लेकर प्रश्न पत्र छपवाने और उत्तर पुस्तिका की व्यवस्था की जिम्मेदारी शिक्षकों पर है, जिसे वह स्वयं वहन कर रहे हैं। नतीजा यह निकला कि प्रदेश के जिलों में छात्रों ने ब्लैक बोर्ड से प्रश्न पढ़े
को उत्तर पुस्तिकाएं मिलीं, लेकिन प्रश्न पत्र कक्षा के ब्लैक बोर्ड पर चौक से लिखा रहा। सबसे अधिक कक्षा छह से आठवीं के छात्रों को परेशानी हुई। नई शिक्षा नीति में समग्र मूल्यांकन की बात मंचों से की जा रही है, प्रदेश के सरकारी स्कूलों में परीक्षा औपचारिकता बना दी गई। एनसीआर के अंतर्गत आने वाले गौतमबुद्ध नगर गाजियाबाद और हापुड़ में 80 प्रतिशत स्कूलों में ब्लैक बोर्ड पर ही प्रश्न पत्र लिखे गए। गौतमबुद्ध नगर के सभी 511 स्कूलों में छात्रों ने ब्लैक बोर्ड से ही प्रश्न उतारे । गाजियाबाद के 431 स्कूलों में ब्लैक बोर्ड और करीब 15 स्कूलों में प्रश्न पत्र टाइप कराकर दिए गए। वहीं हापुड़ में 455 स्कूलों में कागज पर प्रश्न पत्र बनाकर और और अपनी कापियों के पन्नों पर 200 स्कूलों में ब्लैक बोर्ड पर परीक्षा जवाब दिए। कुछ स्कूलों में छात्रों कराई गई।
• 80 प्रतिशत स्कूलों में ब्लैक बोर्ड पर ही प्रश्न पत्र लिखे गए
बदलती प्राथमिक शिक्षा की पोल अर्द्धवार्षिक परीक्षा ने खोली