आज के समय में शिक्षामित्रों के हालात चक्रव्यूह में फंसे अभिमन्यु जैसे होने लगे हैं , उसे चारों ओर से घेर लिया गया है । उसकी समझ में नहीं आ रहा कि वह क्या करे बेशक मनुष्य जीवन जब अंधकार में पहुंच जाता है तो उसे हर पल हर समय यही आश लगी रहती है कि किसी को तो ईश्वर फरिश्ता बनाकर भेजेगा जो हमे इस समय अंधकार से निकाल ले जायेगा। शिक्षामित्र कैसे हालात में संघर्ष कर रहा है बस वो ही जानता है केवल 10 हजार रुपए महीने की पगार में शिक्षा मित्र बच्चो की पढ़ाई , दवाई खर्च , रसोई खर्च , अन्य खर्च , बच्चो की शादी के लिए बचत आदि कैसे कर सकता है इसको जानने के लिए बड़े से बड़ा अर्थ शास्त्री भी चक्कर काट कर भूमि पर गिर जायेगा ।
ऐसा तो उत्तर प्रदेश सरकार के पास ही कोई फार्मूला है। उस फार्मूले को उत्तर प्रदेश सरकार से खुलकर पूछा जाय ये सभी शिक्षा मित्रों का अधिकार है । ये तस्वीर जो आपको ऊपर दिखाई दे रही इसमें सरकार से लेकर शिक्षामित्र नेता, वकीलों, जनता, विभागीय अधिकारियों , बीमारियों, परिवार द्वारा शिक्षामित्र घिरा हुआ है। अब उसे हर पल यही आश है कि कौन घड़ी में कौन तेरी मदद कर दें ताकि तेरा जीवन गुजर हो जाय । किसी भी राज्य की सरकार अपने राज्य की जनता की रहनुमा होती है उसे 23 साल से केवल फ्री बराबर सेवा देने वाले शिक्षामित्र को समाज व सरकार की मदद करने की इतनी बड़ी सजा घोर अन्याय है। संविधान की धारा 14 क का उलंघन है ।
समानता के अधिकार पर कुल्हाड़ी मारकर सरकार द्वारा जघन्य अपराध किया जा रहा है , सरकार द्वारा अनेक रास्ते निकल सकते हैं बस मन की इच्छा होनी चाहिए । शिक्षामित्रों के साथ सौतेला व्यवहार कर इनको गहरी खाई में धक्का देना बहुत बड़ा पाप है क्योंकी इन्होंने पूर्ण योग्यता हासिल कर बच्चो को 22 साल शिक्षा दी है समाज को दिशा देने का काम किया है। अब उम्र के अंतिम पड़ाव पर उसे सभी की सहानुभूति की जरूरत है । उत्तर प्रदेश सरकार से मेरी मांग है शिक्षा मित्रों के लिए समान कार्य , समान वेतन पर विचार करें और नियमावली में संशोधन कर अति शीघ्र रोज रोज होने वाली मौत से बचाएं ।प्रमोद कुमार विधूड़ी शिक्षामित्र