पटना, मुख्य संवाददाता। स्कूलों में मध्याह्न भोजन के लिए चावल का बोरा (खाली गनी बैग) तो आता है, लेकिन चावल खत्म होने के बाद बोरा का कोई हिसाब स्कूल नहीं देता है। बिहार राज्य मध्याह्न भोजन योजना निदेशालय के अनुसार राज्य के 80% स्कूलों ने 15 वर्षों से हिसाब नहीं दिया है। न ही अब तक कोई रिपोर्ट दी है। सभी स्कूलों को बोरा खाली होने के बाद उसकी बिक्री कर प्राप्त राशि को मध्याह्न भोजन योजना के खाते में डालनी है। इसकी सूचना संबंधित जिला कार्यक्रम पदाधिकारी को देनी है। अब मध्याहन भोजन योजना निदेशालय ने सभी जिला कार्यक्रम पदाधिकारी को पत्र लिख कर खाली बोरा का हिसाब मांगा है। अभी पिछले पांच साल की अद्यतन स्थिति मांगी गई है। इसके लिए एक सप्ताह का समय दिया गया है। 2008 में मध्याहन भोजन योजना शुरू हुई थी ।
एक माह में पांच से सात बोरा लगता है चावल: सूबे के 70 हजार स्कूलों में मध्याह्न भोजन योजना संचालित है। अगर औसतन एक स्कूल में दो सौ बच्चे नामांकित हैं तो उनके खाने पर हर माह पांच से छह बोरा चावल लगता है। ऐसे में एक स्कूल से एक साल में 72 खाली बोरा प्राप्त होता है। एक बोरा की कीमत 10 रुपये है।
रिपोर्ट मांगी
महालेखाकार ने निदेशालय से बोरे का हिसाब मांगा है। निर्देश दिया है कि राज्य में जितने स्कूल में मध्याह्न भोजन चल रहा है, उसके चावल के बोरे की बिक्री में खर्च का हिसाब दें।
बोरे से संबंधित ये जानकारी देनी है
■ विद्यालय का नाम, जिला और प्रखंड के साथ
■ बोरे की बिक्री कब की गई, साल व माह बताएं
■ बिक्री से कितनी राशि प्राप्त हुई
■ प्राप्त राशि को किस खाते में जमा किया गया
अंतिम राशि जमा करने के बाद पुन: बिक्री से कितनी राशि मिली,
30 जून को अद्यतन अवशेष राशि