सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में हिमाचल प्रदेश के मामले में दिए अहम फैसले में कहा है कि पेंशन के लिए संविदा कर्मचारी यानी कांट्रैक्ट वर्कर के रूप में की गई सेवा को ध्यान में रखा जाएगा। शीर्ष अदालत ने हिमाचल प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि वह नौकरी में नियमित किए गए संविदा कर्मचारियों को नियम के मुताबिक विकल्प अपनाने का मौका दे और सारी प्रक्रिया चार महीने में पूरी करके शिक्षा और आयुर्वेदिक विभाग के ऐसे कर्मचारियों की पेंशन या परिवार पेंशन जैसा भी मामला हो, आदेश जारी करे।
न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट व अरविंद कुमार की पीठ ने सात अगस्त को हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ दाखिल हिमाचल प्रदेश सरकार की याचिका खारिज करते हुए और बहुत सी अन्य याचिकाएं निपटाते हुए यह आदेश दिया। हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने संविदा कर्मचारी के रूप में पिछली सेवा को पेंशन के लिए ध्यान में रखने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट में केस का नाम हिमाचल प्रदेश राज्य व अन्य बनाम शीला देवी था।
हिमाचल प्रदेश सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सीसीएस पेंशन नियम 1972 के नियम 2 (जी) को आधार बनाते हुए दलील दी थी कि इसमें संविदा कर्मचारियों को पेंशन नियमों के दायरे से बाहर रखा गया है। सरकार का कहना था कि नियम 17 जो पेंशन गणना के लिए संविदा कर्मचारी के रूप में सेवा अवधि को शामिल करने की इजाजत देता है, वह नियम 2 (जी) में दिए बाहरी
खंड के कारण लागू नहीं होगा।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की दलील खारिज करते हुए कहा कि अगर राज्य सरकार के मुताबिक इस नियम को पढ़ा जाएगा तो नियम 17 निरर्थक बन जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि राज्य सरकार तत्काल प्रभाव से नियमित किए गए सभी संविदा कर्मचारियों को चाहे वे 2003 से पहले नियमित किए गए हों या उसके बाद, को तय समय आठ सप्ताह में विकल्प अपनाने का मौका दिए जाने के तौर तरीके तय करने के लिए कदम उठाएगी। और राज्य सरकार चार महीने के भीतर पेंशन या परिवार पेंशन जैसा भी केस हो, आदेश जारी कर देगी.
क्या है मामला
शिक्षा और आयुर्वेदिक विभाग में अनुबंध या संविदा के आधार पर काम कर रहे कर्मचारियों को नौकरी में नियमित
किया गया था। कई की नियुक्ति पेंशन नियम 2004 बनने से पहले हुई थी, जिसमें पेंशन की पात्रता को समाप्त कर दिया गया था। उसके बाद वे नियमित हुए थे। कुछ पहले नियमित हो गए थे।
कर्मचारियों ने मांग की थी कि नियमित होने के बाद पेंशन की गणना में उनकी संविदा कर्मचारी के रूप में की गई सेवा अवधि को भी जोड़ा जाना चाहिए, लेकिन राज्य सरकार ने उनके दावे को खारिज कर दिया था। कर्मचारियों ने हाई कोर्ट में याचिका डाली। हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को पेंशन में संविदा अवधि की पिछली सेवा को भी ध्यान में रखने का आदेश दिया। तब राज्य सरकार ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की। मामले पर सुनवाई के दौरान हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा गत चार मई को लागू की गई नई पेंशन योजना की भी चर्चा हुई।