लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक अहम फैसले में कहा कि सरकारी कार्मिक को वरिष्ठता से वंचित करने से उच्च वेतनमान व परिणामी लाभों का नुकसान होने के साथ ही उसके लिए गंभीर नतीजे वाला होता है। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक के वरिष्ठ सहायक कर्मी की नियुक्ति एक अप्रैल 2002 से सभी परिलाभों समेत उच्च पदों पर प्रमोशन के लिए माने जाने का आदेश बैंक प्रशासन को दिया। यह कार्यवाही आठ सप्ताह में पूरी करने को कहा है।
न्यायमूर्ति इरशाद अली ने यह फैसला बैंक के वरिष्ठ सहायक कर्मी अनिल किशोर गुप्ता की दो याचिकाओं पर दिया। याची के वकील अमित सिंह भदौरिया का कहना था कि याची के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही चल रही
थी। इसमें उसे चेतावनी दी गई थी। इसके बावजूद उसे समकक्ष कर्मियों के समान एक अप्रैल 2002 से वरिष्ठ सहायक कर्मी के रूप में होता है। नियुक्त नहीं किया गया। इसके बजाय उसे इस पद पर 4 सितंबर 2004 को नियुक्त किया गया।
याची ने एक अप्रैल 2002 से वरिष्ठ सहायक कर्मी के रूप में नियुक्ति देने का आग्रह किया था। उसने मामले में दिए गए अनुशासनात्मक व अपील आदेश को चुनौती दी थी। उधर, बैंक प्रशासन के वकील ने याचिका का विरोध किया
कोर्ट ने कहा कि अनुशासनात्मक कार्यवाही के संबंध में दंड के रूप में एक बार जब याची की सर्विस बुक में चेतावनी दर्ज कर दी गई तो फिर उसे एक अप्रैल 2002 से वरिष्ठ सहायक कर्मी के रूप में नियुक्ति न देने का कोई औचित्य नहीं था। क्योंकि सरकारी कार्मिक को वरिष्ठता से वंचित करना, जिसके कारण उसे उच्च वेतनमान व परिणामी लाभों का नुकसान हो, उसके लिए गंभीर नतीजे का मामला होना है
कोर्ट ने कहा कि बैंक के वकील ने अपने समर्थन में जो फैसले पेश किए हैं, वे इस मामले के तथ्यों व हालत को नकारने वाले नहीं हैं। ऐसे में याचिका मंजूर की जाती है। कोर्ट ने याचिका में चुनौती दिए गए आदेशों को रद्द कर दिया। साथ ही बैंक के वरिष्ठ सहायक कर्मी की नियुक्ति एक अप्रैल 2002 से सभी परिलाभों समेत आगे के उच्च पदों पर प्रमोशन के लिए माने जाने का आदेश बैंक प्रशासन को दिया।