अफसरों और विभागीय आदेशों का अनुपालन करने में ही व्यस्त रहते हैं अध्यापक हुक्म की तामीली में तालीम गुम


फतेहपुर |

बच्चों की शिक्षा समेत अन्य काम व निर्देशों के बोझ से दबे बेसिक शिक्षकों के चेहरों में तैर रही बेचैनी साफ देखी जा सकती है। बोझ के कारण शिक्षक स्कूल पहुंच कर औपचारिकता करते देखे जा सकते हैं। स्कूलों में टीएलएम (टीचर लर्निंग मैटेरियल) की जगह अधिकारियों के आदेश देखे जा सकते हैं। शिक्षक और हेडमास्टरों के हाथ में अब कुछ भी नहीं है। सब कुछ तिथिवार पहले से तय हैं।


बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा संचालित स्कूलों में आदेशों व निर्देशों की बाढ़ के चलते बच्चों की शिक्षा व शिक्षकों का उत्साह गुम होता जा रहा है। शासन और विभागीय स्तर पर जारी होने वाले

1- बालगणना

2- स्कूल चलो अभियान

3- ड्रेस वितरण कराना 4- मिड डे मील बनवाना

5-निर्माण कार्य कराना 6- एसएमसी की बैठक कराना

7- पीटीए की बैठक कराना

8- एमटीए की बैठक कराना 9 ग्राम शिक्षा समिति की बैठक

10- रसोइयों का चयन कराना 11- शिक्षा समिति के खाते का प्रबंधन

12- एसएमसी के खाते का प्रबंधन 13- मिड डे मील के खाते का प्रबंधन

14- दूध व फल का वितरण कराना

15- शिक्षा निधि के खाते का प्रबंधन 16-बोर्ड परीक्षा में ड्यूटी करना

17- पोलियों कार्यक्रम में प्रतिभाग 18- बीएलओ ड्यूटी में प्रतिभाग

19- चुनाव ड्यूटी करना

20- जनगणना करना

21- संकुल की सप्ताहिक और बीआरसी की मासिक मीटिंग में भाग

22- विद्यालय अभिलेख तैयार करना 23- विद्यालय की रंगाई पुताई कराना

24- रैपिड सर्वं कराना

25- बच्चों को घरों से बुलाना 26- टीएलएम की व्यवस्था करना

27- वृक्षारोपण कराना

28- विद्यालय की सफाई कराना 29- जिला स्तरीय अफसरों के

आदेशों का पालन

30- शिक्षण कार्य।

| ‘सूली’ और ‘वसूली’ के शिकार बन रहे शिक्षक

बच्चे स्कूल नहीं आए, शैक्षिक गुणवत्ता खराब, मिड डे मील नहीं बना, गुणवत्ता खराब, स्कूल में गंदगी, निर्माण में खामी, खाता बही का हिसाब गलत जैसी अनेक कमियों के लिए शिक्षकों को दोष दिया जाता है। बताते हैं कि जो शिक्षक सूली से बच जाते हैं, वह वसूली का शिकार बन जाते हैं। स्कूलों में चपरासी और क्लर्क के काम भी शिक्षक ही कर रहे है।

शिक्षक के कंधों पर इन कामों की जिम्मेदारी

काम के बोझ से दबे अध्यापक बच्चों को नहीं दे पाते समय

अफसरों के औचक निरीक्षण से बढ़ रहा मानसिक दबाव

शिक्षकों का हाल

आदेशों के अलावा स्थानीय स्तर पर भी अफसरों के कई आदेशों का पालन शिक्षकों को करना पड़ रहा है। इन आदेशों को कागज में भी उतारने की मजबूरी के चलते बच्चों की पढ़ाई का समय कागजी उलझनों में जाया हो रहा है। जिन स्कूलों में प्रत्येक कक्षा के लिए एक टीचर नहीं है, उन पर यह आदेश व निर्देश शिक्षा पर अधिक भारी पड़ रहे हैं। माह के कई दिन इन्हीं औपचारिकताओं को पूरा करने व अधिकारियों को दिखाने के लिए उनके अभिलेखीकरण में बीत रहे हैं। नौनिहालों के साथ स्वस्थ तन और मन से वक्त गुजारने के लिए सहमे शिक्षकों के पास वक्त ही नहीं है। शिक्षकों को दर्द है कि शासन व विभागीय स्तर पर शिक्षकों एवं प्रधानाध्यापकों के विवेक पर कुछ नहीं छोड़ा गया है।