स्कूली बच्चे आईफ्लू से ग्रस्त अभिभावक त्रस्त, शिक्षा विभाग मस्त


 मौदहा कस्बा सहित आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों मे आईफ्लू का संक्रमण लगातार बढ़ने के बाद भी शिक्षा माफिया और शिक्षा विभाग बेपरवाह होकर मस्त है। जबकि सैकड़ों बच्चे इस संक्रामक बीमारी से ग्रस्त हैं और इन बज्चों के अभिभावकं विद्यालय प्रबंधन व शिक्षा विभाग के लापरवाह रवैया से त्रस्त हैं। ज्ञात हो कि इन दिनों आईफ्लू नामक संक्रामक बीमारी मौदहा कस्बा सहित आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में तेजी से पांव पसार रही है।


        इस बीमारी की चपेट में च्यादातर स्कूली बच्चे आ रहे हैं। कस्बा सहित ग्रामीण क्षेत्रों एक भी विद्यालय जल्दी से नहीं मिलेगा जहाँ इस बीमारी ने छोटे बज्चों को अपनी चपेट में न लिया हो इसके बावजूद शिक्षा विभाग और शिक्षा माफिया इस बीमारी के रोकथाम एवं इस संक्रमण से बज्चों को बचाने मे पूरी तरह से बेपरवाह दिखाई दे रहे हैं। चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना है कि यह बीमारी छुआछूत से बहुत ही तेजी के साथ फैलती है इसकी चपेट में प्राथमिक व जूनियर हाईस्कूल स्कूल तक के बज्चे सबसे पहले आते हैं और यहीं से घरों में पहुंचने के बाद यह बीमारी घर के अन्य सदस्यों को अपनी चपेट में ले लेती है। जिस तेजी के साथ कस्बा व क्षेत्र के स्कूलों में यह बीमारी फैल रही है उसे देखकर यह लगता है कि यदि इसके बढ़ते संक्रमण को रोकने के लिए तत्काल प्रभाव से कारगर उपाय नहीं किये गए तो यह एक गंभीर समस्या बन जायेगी।

              इधर शिक्षा माफियाओं की दुकानों (स्कूलों) में यदि ईमानदारी के साथ सर्वे कराया जाये तो 99: शिशु मंदिर, ज्ञान मंदिर, पब्लिक स्कूल, कान्वेंट स्कूलों मे एक भी प्राथमिक चिकित्सा की सुविधायें उपलब्ध नहीं है और बिना सोशल डिस्टेन्सिग, मास्क और सेनेटाइजर के बच्चों को बंद कमरों में भूसे की तरह तूंसे रहते हैं। ऐसी परिस्थितियों में किसी भी संक्रामक बीमारी से बच पाना इन नवनिहालों के लिए कितना कठिन र काम है। ऐसी हालत यहाँ के दो चार नहीं बल्कि बहुतायत स्कूलों में देखने में मिलती है। 


      

          जहाँ एयर वेंटिलेशन, शोसल डिस्टेन्सिग, शुद्ध पेयजल, स्वच्छत का दूर दूर तक न संम्बंध नहीं है। जबकि इन स्कूलों के फेंकूं शिक्षा माफियाओं के द्वारा तमाम माध्यमों से प्रचार प्रसार किया जाता है कि इनके स्कूलों में जनरेटर, इन्वर्टर, पंख, कूलर, खेल का मैदान, आर ओ का ठंडा पेयजल सहित सभी आवश्यक सुविधाएं बच्चों के लिए उपलब्ध हैं लेकिन सज्चाई यह है कि एक भी सुविधा स्कूलों में पूरी होते दिखाई नहीं देती हैं। स्कूलों में जनरेटर अक्सर बंद रहते हैं और इन्वर्टर का उपयोग मात्र प्रधानाध्यापक कक्ष, कार्यालय और अध्यापक विश्राम कक्ष के लिए किया जाता है। यदि मान्यता प्राप्त के समय इन स्कूल प्रबंधकों द्वारा शिक्षा विभाग में जमा की गई फाईलों में दर्शायी गयी स्कूलों की स्थिति और मौके की परिस्थितियों का मिलान किया जाये तो जमीन आसमान का अंतर मिलेगा और बिना स्थलीय निरीक्षण के पैसों के दम पर स्कूलों को मान्यता देने वालों की हकीकत भी खुल जायेगी।

                   वहीं आईफ्लू जैसी संक्रामक बीमारी के रोकथाम के लिए हो रहे उपायों के बारे में जब शिक्षा विभाग के जिम्मेदार लोगों से बात हुई तो उनका कहना है कि जो बज्चे इस संक्रमण से प्रभावित हो गये हैं उन्हें घर पर ही रहने को कहा गया है। लेकिन आईफ्लू को देखते हुए अभिभावकों का कहना है कि संक्रामक बीमारी को देखते हुए कक्षा आठ तक के बज्चों की छुट्टी कर देना चाहिए ताकि तेजी से बढ़ते संक्रमण को रोका जा सके।