फर्जी डिग्री वालों से सहानुभूति नहीं दिखा सकते: हाईकोर्ट


उच्च न्यायालय ने कहा है कि नौकरी पाने के लिए फर्जी डिग्री का इस्तेमाल करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की जरूरत है। उनसे किसी भी प्रकार की सहानुभूति नहीं दिखाई जा सकती है। न्यायालय ने 2014 में बिहार भवन के एक महिला कर्मचारी को फर्जी डिग्री सहित कई कारणों से नौकरी से निकाले जाने को सही ठहराते हुए यह टिप्पणी की है।


पति की मौत के बाद महिला बिहार भवन में अनुकंपा के आधार पर नौकरी कर रही थी। जस्टिस मिनी पुष्करणा ने अपने फैसले में कहा है कि कोई भी व्यक्ति जाली दस्तावेजों के सहारे नौकरी पाने के योग्य नहीं है। फर्जी डिग्री धारक कर्मचारी के प्रति किसी भी तरह की सहानुभूति या करुणा नहीं दिखाई जा सकती।

बिहार भवन प्रबंधन ने 2009 में महिला को आए दिन नशे की हालत में आए दिन हंगामा करना, अन्य कर्मचारियों के साथ दुर्व्यवहार करने और अन्य आरोपों में कारण बताओ नोटिस जारी किया था। इसके बाद महिला कर्मचारी ने अदालत में याचिका दायर की थी।

नई दिल्ली, प्र.सं.। आपराधिक मामलों की जांच पूरी किए बगैर अधूरा आरोपपत्र दाखिल करने पर हाईकोर्ट ने कड़ी नाराजगी जाहिर की है।

न्यायालय ने कहा कि किसी मामले में जांच एजेंसी द्वारा अधूरा आरोपपत्र दाखिल करना न सिर्फ आरोपी के स्वत (डिफॉल्ट) जमानत के अधिकार का हनन है, बल्कि ऐसा करना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले अधिकारों यानी जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का भी उल्लंघन है। जस्टिस अमित शर्मा ने भ्रष्टाचार के मामले में अधूरा आरोपपत्र दाखिल किए जाने पर एक आरोपी को स्वत जमानत पर रिहा करने का आदेश देते हुए यह टिप्पणी की है।

हाल ही में पारित फैसले में न्यायालय ने कहा कि जांच एजेंसी की ओर से आरोपी को स्वत जमानता पाने के कानूनी अधिकार से वंचित करने के लिए जांच एजेंसी ने जांच पूरी किए बगैर अधूरा आरोपपत्र दाखिल किए जाने का चलन बढ़ा है। यह टिप्पणी करते हुए न्यायालय ने आरोपी अविनाश जैन को जमानत दे दी।


यह था मामला

महिला को निलंबित करते हुए उसके खिलाफ जांच भी शुरू कर दी। जांच के दौरान सामने आया कि महिला ने अनुकंपा के आधार पर नौकरी पाने के लिए 8वीं कक्षा की फर्जी डिग्री का इस्तेमाल किया है। महिला द्वारा पेश डिग्री के अनुसार उसने फरवरी, 1988 में 8वीं कक्षा उतीर्ण कर ली थी। लेकिन दरभंगा बिहार के जिस स्कूल का प्रमाणपत्र महिला ने पेश किया है, उस स्कूल में 8वीं कक्षा की पढ़ाई 2007 में ही शुरू हुई थी। पूरे मामले की जांच के बाद बिहार भवन ने 2014 में महिला को नौकरी से निकाल दिया था।