परिषदीय प्राथमिक स्कूलों में कार्यरत सहायक अध्यापकों के सालों बाद होने जा रहे प्रमोशन में अफसरों की मनमानी के कारण अड़चन आ सकती है। पीयूष पांडेय एवं अन्य के मामले में हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 27 फरवरी को राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) की समय-समय पर जारी गाइडलाइन के अनुसार पदोन्नति करने के आदेश दिए थे।
बेसिक शिक्षा विभाग के अफसरों ने 26 फरवरी को हाईकोर्ट में दाखिल जवाब में एनसीटीई की अधिसूचना के अनुसार प्रमोशन करने की बात स्वीकार की थी। एनसीटीई की 12 नवंबर 2014 की अधिसूचना के अनुसार प्राथमिक स्कूलों के सहायक अध्यापकों को उच्च प्राथमिक स्कूलों में सहायक अध्यापक पद पर पदोन्नति देने के लिए उच्च प्राथमिक स्तर की शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) पास होना अनिवार्य है। लेकिन पांच मार्च को बेसिक शिक्षा परिषद के सचिव प्रताप सिंह बघेल की ओर से सभी बेसिक शिक्षा अधिकारियों को जारी पत्र में शिक्षकों की अनन्तिम ज्येष्ठता सूची निर्धारित करने के लिए जो प्रोफॉर्मा दिया है उसमें कहीं भी टीईटी के संबंध में जानकारी नहीं मांगी गई है। सवाल है कि जब यही पता नहीं है कि कितने शिक्षकों ने उच्च प्राथमिक की टीईटी पास की है तो पदोन्नति कैसे और किसकी करेंगे। इससे पहले 28 मार्च 2018 को सचिव बेसिक शिक्षा परिषद ने पदोन्नति की प्रक्रिया शुरू की थी। उस समय दीपक शर्मा ने प्रमोशन में एनसीटीई गाइडलाइन का पालन करने के लिए हाईकोर्ट में याचिका की तो अफसरों ने पदोन्नति की प्रक्रिया ही रोक दी थी। तब से प्रमोशन ठप है।
मार्च 2009 से नियुक्त शिक्षकों का प्रमोशन नहीं
जिले में फरवरी 2009 तक नियुक्त सहायक अध्यापकों को ही प्रमोशन मिल सका है। मार्च 2009 से नियुक्त शिक्षक 14 साल बीतने के बावजूद पदोन्नति का इंतजार कर रहे हैं। जबकि नियमानुसर नियुक्ति के पांच साल बाद प्रमोशन मिल जाना चाहिए था। प्रदेशभर के अधिकांश जिलों में शिक्षकों के प्रमोशन सालों से नहीं हुए हैं।