शिक्षा परिसरों में हों खुशी के कोने

बहुत तेज बदलती दुनिया में इंसानियत का क्या हाल है? जहां एक ओर नई तकनीकें लगातार विकसित हो रही हैं, तो वहीं दूसरी ओर, लोग अपने समाज तथा अपनी प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं। ज्यादातर लोग बढ़ती भीड़ में भी स्वयं को खोया हुआ महसूस कर रहे हैं। सामान्यत आज हर आदमी प्रतिस्पर्द्धा में लिप्त है। उसे नहीं पता कि उसकी प्रतिस्पर्द्धा किससे है, कहां तक, कब तक है, और यही पहले मानसिक तनाव और बाद में अवसाद की अहम वजह बन रहा है। आज मानसिक तनाव और अवसाद समाज के विकास में बाधा बन खड़ा हो रहा है। अस्थिर, अनिश्चित, जटिल और अस्पष्ट दुनिया ने मानवीय रिश्तों को जटिल बना दिया है तथा व्यक्ति किसी मृग-मरीचिका की तरह अनजान लक्ष्य के पीछे भाग रहा है। ऐसे में, उसे आत्म-मूल्य, अस्तित्व और अपने योगदान के बारे में असुरक्षा महसूस होती है। इन परिस्थितियों में समाज में एक सकारात्मक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।


हमें यह समझना चाहिए कि पैसा वित्तीय सुरक्षा प्रदान कर सकता है, लेकिन स्वास्थ्य एवं खुशहाल जीवन को सुनिश्चित नहीं कर सकता। विभिन्न शोधों से सिद्ध हुआ है कि जो लोग परिवार, समुदाय एवं प्रकृति से जुड़े हुए हैं, वे अधिक खुश और शारीरिक रूप से ज्यादा स्वस्थ हैं। प्रसन्नता की चाबी मानवता है तथा इसके लिए सामाजिक संपर्क या संबंध धन की अपेक्षा ज्यादा आवश्यक है। संतोषप्रद जीवन के लिए हमें अपने रिश्तों को मजबूत व पोषित करने की जरूरत है। इस संदर्भ में परिवार व समुदाय में धन के निवेश की अपेक्षा समय का निवेश ज्यादा महत्वपूर्ण है। खुशी के लिए चीजों की अपेक्षा अनुभव का अधिक महत्व है। अनुभव से ही आप अपने लिए खुशी संजोते हैं। तमाम तरह की वस्तुओं से ही केवल खुशी मिलना संभव नहीं है। अक्सर हमारे समाज में बच्चों को सिखाया जाता है कि जिसके पास ज्यादा संसाधन है, वह ज्यादा खुश है। बच्चे इन संसाधनों के सपने देखने लगते हैं और उनकी खुशी घटने लगती है। बच्चों या छात्रों को ऐसे सकारात्मक कार्यों में खुशी खोजनी चाहिए, जिनसे उनकी सामाजिकता और समझ का दायरा सहजता से बढे़।

उदाहरण के लिए, संगीत सुनना प्रसन्नता का भाव लाता है। जब लोग या छात्र समूह में एक साथ बैठकर संगीत सुनते हैं, तो उनका मन-मस्तिष्क लयबद्ध तरीके से ताल-मेल बैठाता है और एक साझा भावनात्मक अनुभव कराता है। मानवीय संबंध एक गहरा सामाजिक बंधन है, जो व्यक्तियों के बीच तब बनता है, जब वे एक-दूसरे का महत्व महसूस करते हैं। थोड़ा-सा भी सच्चा अपनत्व जागे, तो सकारात्मक ऊर्जा का आदान-प्रदान होता है, जो परस्पर विश्वास बनाने में लाभकारी होता है। छात्रों को समाज से जोड़ने की प्रक्रिया का महत्व अब कई शिक्षण संस्थान समझने लगे हैं। उनके तनावों से निपटने की कोशिशें की जाने लगी हैं।

मिसाल के लिए, भारतीय प्रबंधन संस्थान, आईआईएम, रांची ने ‘द ह्यूमन कनेक्ट’ नामक एक कार्यक्रम की शुरुआत की है। इससे जुड़ी गतिविधियां सफलतापूर्वक चलाई जा रही हैं। इसका मूल मकसद यह है कि छात्रों को साथ लाया जाए, उनका परस्पर संपर्क बढ़ाया जाए, जिससे वे अपने को सार्थक रूप से व्यक्त कर सकें। आज बहुत जरूरी है कि छात्रों का संपर्क उनके अपने समाज से बढ़ाया जाए, उन्हें उनकी प्रकृति के ज्यादा करीब लाया जाए, जिससे वे ज्यादा शांति और मानवीयता का अनुभव करें। उनके सहज मानवीय जुड़ाव को बनाए रखना है, जो सामान्यत कथित सफलता की अंधी होड़ में कहीं खो जाती है।

यह ‘द ह्यूमन कनेक्ट’ छात्रों के मानसिक और भावनात्मक हित को बढ़ावा दे रहा है। इसके जरिये छात्रों को अकेलेपन या व्यर्थता के एहसास से बचाया जा सकता है। हममें से हर कोई यह महसूस करता होगा कि व्यावसायिक होड़ में हमारा समाज कमजोर हुआ है। हम लंबे समय से छात्रों को सिर्फ होड़ करना सिखाते रहे हैं, यह गलत नहीं है, लेकिन उन्हें परिवार, समाज व अपनी जमीन से जोड़े रखना भी जरूरी है। क्या कई छात्र आज विदेश चले जाने को लालायित नहीं हैं?

छात्रों को मजबूत बनाने के लिए कई तरह की गतिविधियों का सहारा लिया जा सकता है, जैसे ड्रम सर्कल (साथ में ड्रम बजाना), डांस सर्कल (साथ में नृत्य करना), ह्यूमन लाइब्रेरी, पेट थेरेपी (जीव सेवा), विलेज स्लो डाउन, कलेक्टिव कैनवास (सामुदायिक चित्रकारी), कलेक्टिव मेडिटेशन (साथ में प्राणायाम), केयरिंग कन्वर्सेशन (चिंता साझा करने के लिए परस्पर बातचीत), पौधरोपण अभियान और खुशी का एक कोना, मतलब हैप्पीनेस कॉर्नर। दरअसल, एक-दूसरे से तालमेल बिठाकर चलना सीखना चाहिए, ताकि हम एक-दूसरे के लिए समस्या नहीं, बल्कि समाधान बनें। तमाम शिक्षण संस्थानों में ऐसी गतिविधियां जरूरी हैं। ह्यूमन लाइब्रेरी अर्थात मानव पुस्तकालय ने छात्रों को अपनी अनूठी कहानियों को एक-दूसरे के साथ साझा करने का मौका दिया है। पालतू या छोड़ दिए गए पशुओं के साथ समय बिताना भी उपयोगी है। गांव की सरल जीवन शैली हमें प्रकृति का आनंद लेने में सक्षम बनाती है, जबकि आज के छात्र गांव से लगातार दूर जा रहे हैं। शिक्षा परिसरों में जगह-जगह ऐसे खुशी के कोने या हैप्पीनेस कॉर्नर होने चाहिए, जहां पहुंचते ही छात्र कुछ राहत या खुशी स्वत महसूस कर सकें।

आज छात्र वही है, जो सतत परीक्षा की तैयारी में लगा हुआ है। वह कितने तनाव में है, उसको कैसी भयावह समस्याओं से गुजरना पड़ता है, यह समझना होगा। निस्संदेह, ह्यूमन कनेक्ट जैसे कार्यक्रमों को सभी प्रकार के संस्थानों में चलाया जा सकता है। इससे पढ़ाई में छात्रों का प्रदर्शन भी सुधरेगा। शिक्षा संस्थानों में प्रसन्नता और खुशी का माहौल बनेगा।

आज के समय में व्यक्ति को ऐसे स्थान तथा अवसर की जरूरत है, जो उसे प्रसन्नता व मानवीयता का भाव दे सके। मानवीय उपलब्धियां किसी भी प्रतिस्पर्द्धा तथा दूसरों को प्रभावित करने के प्रयास से भिन्न हैं। विभिन्न संस्थानों, विशेषकर शैक्षणिक संस्थानों में छात्र-छात्राओं को ऊंचे लक्ष्य तक पहुंचाने के साथ-साथ जीवन यात्रा का आनंद लेना भी सिखाना चाहिए। उत्कृष्टता के साथ-साथ संस्थानों को मानवीय विकास पर भी ध्यान देना चाहिए। आर्टिफिशिल इंटिलिजेंस, सिमूलेशन ऐंड वर्चुवल रियलिटी की दुनिया में शिक्षा को मानव केंद्रित बनाने पर ध्यान देना ही पड़ेगा। छात्रों को आज मनोवैज्ञानिक सलाह या सहायता ही नहीं, बल्कि मानवीयता की ज्यादा जरूरत है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)