मंत्रियों को बोलने से रोक नहीं सकते: सुप्रीम कोर्ट


सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा है कि मंत्रियों, सांसदों और विधायकों की बोलने की स्वतंत्रता पर अधिक प्रतिबंध नहीं लगाए जा सकते। कोर्ट ने कहा कि बोलने की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने के लिए अनुच्छेद 19(2) के आधार संपूर्ण हैं।



न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर, बीआर गवई, एएस बोपन्ना, वी रामासुब्रमण्यम और बीवी नागरत्ना की पांच जजों की संविधान पीठ ने सुनवाई की। पांच जजों की पीठ में सिर्फ न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने अलग फैसला दिया। हालांकि, उन्होंने घृणा फैलाने वाले भाषणों पर चिंता जताई। उन्होंने कहा, अनुच्छेद 19(1) (ए) और 21 के तहत मौलिक अधिकार संवैधानिक अदालतों में लागू नहीं हो सकते, लेकिन नागरिकों के लिए सामान्य कानून के तहत उपचार उपलब्ध है


हेट स्पीच एक समाज को असमान रूप में चिन्हित करके संविधान के मूलभूत मूल्यों पर हमला करती है।

नई दिल्ली, विशेष संवाददाता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मंत्रियों के बयानों के लिए सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।

पीठ ने जिन प्रश्नों पर विचार किया, उनमें से एक यह था कि क्या राज्य के किसी भी मामले या सरकार की सुरक्षा के लिए मंत्री द्वारा दिए गए बयान को विशेष रूप से सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। इस सवाल का जवाब देते हुए बहुमत के फैसले में पीठ ने कहा, मंत्रियों के बयानों के लिए सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।

जस्टिस बीवी नागरत्ना ने असहमति जताई हालांकि, जस्टिस बीवी नागरत्ना ने इससे असहमति जताई और कहा कि एक मंत्री द्वारा आधिकारिक रूप से दिए गए बयान के लिए उसकी सरकार जिम्मेदार है।

क्या थी दलील एक मंत्री दो क्षमताओं में बयान दे सकता है। पहला अपनी व्यक्तिगत क्षमता में। दूसरा अपनी आधिकारिक क्षमता में और सरकार के एक प्रतिनिधि के रूप में। यदि कोई बयान अपमानजनक (जो न केवल व्यक्तिगत विचारों का प्रतिनिधित्व करते हैं और उसमें सरकार के विचारों को भी शामिल करते हैं) है तो ऐसे बयानों को विशेष रूप से सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। संविधान पीठ मंत्रियों और उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों की बोलने की स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रतिबंध से संबंधित मुद्दों पर जवाब दे रही थी।

नागरिकों की बंधुता का भी उल्लंघन जस्टिस नागरत्ना ने कहा, हेट स्पीच एक समाज को असमान रूप में चिन्हित करके संविधान के मूलभूत मूल्यों पर हमला करती है। यह विविध पृष्ठभूमि के नागरिकों की बंधुता का भी उल्लंघन करता है, जो बहुलता और बहुसंस्कृतिवाद पर आधारित एक सामंजस्यपूर्ण समाज की अनिवार्य शर्त है।

नागरिकों की एक दूसरे के प्रति पारस्परिक जिम्मेदारियां जस्टिस नागरत्ना ने जोर देकर कहा कि यह इस विचार पर आधारित है कि नागरिकों की एक दूसरे के प्रति पारस्परिक जिम्मेदारियां होती हैं। जस्टिस नागरत्ना ने दोहराया देश की संप्रभुता, एकता और अखंडता को बनाए रखना और उसकी रक्षा करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य है। भारत के सभी लोगों के बीच सद्भाव और आम भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना हमारा कर्तव्य है। राजनैतिक दलों का भी कर्तव्य है कि वे अपने नेताओं को कटुतापूर्ण बयान देने से रोकें।

क्या है अनुच्छेद 19(2) अनुच्छेद 19(2) वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के उपयोग पर संप्रभुता देश की अखंडता, शालीनता, नैतिकता आदि के हित में तार्किक पाबंदी लगाने के लिए कानून बनाने की सरकार की शक्तियों से संबद्ध है।


छह आरोपी जेल में

बुलंदशहर अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश विशेष न्यायाधीश पॉक्सो एक्ट न्याय कक्ष संख्या-2 के न्यायालय में वर्तमान में हाईवे गैंगरेप मामला विचाराधीन है। सीबीआई ने इस मामले में कोर्ट में छह आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर चुकी है। कुल 20 गवाहों में से अभी तक 9 की गवाही हो चुकी है।

क्या है मामला

बुलंदशहर की एक बलात्कार पीड़िता के पिता द्वारा दायर रिट याचिका पर 2016 में मामले को एक बड़ी पीठ के पास भेजा गया था, जहां यह आरोप लगाया गया था कि तत्कालीन सपा सरकार में कैबिनेट मंत्री आजम खां ने पूरी घटना को ‘केवल राजनीतिक साजिश और कुछ नहीं’ के रूप में करार दिया था।