कोरोना टीके की वजह से कथित मौतों पर मंगलवार को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया। इसमें स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा, मृतकों और उनके परिजनों के प्रति उसकी पूरी हमदर्दी है, लेकिन टीके के किसी भी प्रतिकूल प्रभाव के लिए उसे जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। ऐसे मामलों में सिविल कोर्ट में मुकदमा दायर कर मुआवजे की मांग की जा सकती है।
एक परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दावा किया था कि कोरोना टीका लगने के बाद उनकी दो बेटियों की मौत हो गई थी। याचिका में टीकाकरण के दुष्प्रभावों का जल्द पता लगाने और समय पर उपचार के लिए प्रोटोकॉल बनाने की मांग की गई थी। मौतों की स्वतंत्र पैनल से जांच कराने की भी मांग की गई थी। इसी के जवाब में सरकार ने हलफनामा दायर किया। हलफनामे में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि टीकों के प्रतिकूल प्रभाव के कारण बेहद कम मौतों व मुआवजे के लिए केंद्र को जिम्मेदार मानना कानूनी रूप से उचित नहीं होगा।
अनिवार्य नहीं टीकाकरण
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता ने कहा कि यदि टीके के खतरों के बारे में पूर्व में सूचना देकर सहमति ले ली जाती तो यह मौतें नहीं होतीं। इस पर स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि सहमति का सवाल वैक्सीन जैसे दवा के स्वैच्छिक उपयोग पर लागू नहीं होता। सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि कोविड-19 टीका लगवाना कानूनी रूप से अनिवार्य नहीं है।
प्रतिकूल प्रभाव मामूली
सरकार ने कहा कि कुल लगाए गए टीकों की तुलना में दुष्प्रभाव के मामले बहुत मामूली हैं। 19 नवंबर तक 219.86 करोड़ खुराक दी गई और सिर्फ 92,114 केस में शिकायत आई। विशेषज्ञों के मुताबिक, इन मामलों में से 89,332(0.0041) मामूली प्रतिकूल प्रभाव के थे। मात्र 2,782 ( 0.00013) मामले मौत व अन्य गंभीर प्रतिकूल असर के हैं।