अधिकारियों द्वारा बेसिक स्तर पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा लक्ष्य प्राप्ति की अतिआतुरता और जल्दबाजी, लक्ष्य की ओर उन्मुख है या लक्ष्य से विमुख ? इस प्रश्न पर गंभीरता पूर्वक विचार करने की जरूरत है।
शासन-प्रशासन द्वारा वर्तमान में चल रही शिक्षा गुणवत्ता सुधार गतिविधियां बेशक नेक नीयत से की जा रही हो परन्तु आदेश-निर्देशों, विभिन्न बैठकों, कार्यशालाओं की बढ़ती आवृत्ति से अधीनस्थ अधिकारियों, अन्य जिम्मेदार लोगों तथा शिक्षकों में उहापोह की स्थिति सी बनी हुई है। गुणवत्तापूर्ण और प्रभावी शिक्षण में शिक्षक की मुख्य भूमिका होती है।
वर्तमान आदेश-निर्देशों की बाढ़ में लगभग सभी शिक्षक इसी उलझन में हैं कि क्या-कहां-कितना-कैसे शुरू करें, कहां-कैसे-किसको-कितना जारी रखे और क्या-कब-कितना-कैसे समाप्त करें। शिक्षक स्वयं को किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में पा रहा है। शिक्षकों की यह मन:स्थिति उसके लिए शिक्षण एकाग्रता में न सिर्फ बाधक है अपितु शिक्षण उत्साह में भी नकारात्मक असर डाल रहा है।
शिक्षकों के लिए दिन-प्रतिदिन के घंटे-दर-घंटे आने वाले विभिन्न आदेश-निर्देशों में सामंजस्य बनाना भी कम चुनौतीपूर्ण कार्य नहीं है। कई बार यह देखा जाता है कि स्वयं जिम्मेदार अधिकारी का कोई एक आदेश-निर्देश उनके या अन्य अधिकारियों के पूर्व में जारी किसी अन्य आदेश के विरुद्ध या प्रतिकूल हो जाता है। इस विषम स्थिति में शिक्षकों के लिए नये-पुराने दोनों आदेश-निर्देश का अक्षरशः अनुपालन करना अव्यावहारिक/असंभव सा हो जाता है और शिक्षक किसी जवाबदेही में फंसने का तनाव लेकर ड्यूटी करने को बाध्य है।
निजी विद्यालयों के शैक्षिक गुणवत्ता को आधार मानक मानते हुए शासन-प्रशासन बेसिक शिक्षा में गुणवत्ता सुधार के त्वरित और जादुई परिणाम के प्रति जल्दबाजी में है। इस जल्दबाजी में बेसिक शिक्षा में गुणवत्ता सुधार के लिए विभिन्न कार्यक्रम, अभियान तथा योजनाओं पर एक साथ काम किया जा रहा है। उससे सम्बन्धी एक के बाद एक नये-नये लक्ष्य रखे जा रहे हैं। दिन-प्रतिदिन उससे सम्बन्धी आदेश-निर्देश धड़ाधड़ जारी किए जा रहे हैं।
प्रश्न यह है कि निजी विद्यालयों के शैक्षिक गुणवत्ता को मानक मानते हुए परिषदीय विद्यालयों में शैक्षिक गुणवत्ता को अत्यंत कम मान लेना और शैक्षिक गुणवत्ता सुधार के त्वरित और जादुई परिणाम के लिए व्याकुल हो जाना और इस व्याकुलता में एक के बाद एक आदेश-निर्देश जारी कर शिक्षकों पर अतिरिक्त तनाव डालना शैक्षिक गुणवत्ता सुधार के लिए अनुकूल है या प्रतिकूल।
कहीं ऐसा न हो कि हमारे प्रदेश की कक्षा 1 से 8 तक की प्राथमिक शिक्षा विभिन्न मिशन, विभिन्न मोबाइल ऐप, जागरूकता कार्यक्रम, विभिन्न अभियान, यूट्यूब सेशन, आनलाइन-आफलाइन प्रशिक्षण, आकस्मिक निरीक्षणों, सपोर्टिव सुपरविजन, विभिन्न टेक्निकल शब्दावलियों और उससे जुड़े कार्यक्रमों, दिन-प्रतिदिन के आदेश-निर्देशों, सूचनाओं के आदान-प्रदान में ही उलझ कर ही न रह जाए।
👉 नये-पुराने तकनीकी-गैरतकनीकी शब्दों की समझ बनाना, इनसे सम्बन्धित आदेश-निर्देशों में समन्वय स्थापित करते हुए उनका समयबद्ध अनुपालन सुनिश्चित करना, शिक्षकों के लिए बहुत बड़ी चुनौती
वर्तमान समय में बेसिक शिक्षा में कई तरह के नये-पुराने तकनीकी-गैरतकनीकी शब्दों के प्रयोग का चलन बढ़ा हुआ है। इन शब्दों पर ध्यान दें-
'निपुण भारत मिशन', निपुण लक्ष्य, निपुण विद्यालय, निपुण तालिका, निपुण सूची, 'मिशन प्रेरणा', प्रेरणा लक्ष्य, प्रेरणा तालिका, प्रेरणा सूची, Measurable Goals, आधारशिला क्रियान्वयन संदर्शिका, प्रिंट रिच सामग्री, Engaging Learning Environment, सहज पुस्तिका, पावर एन्जिल, मीना मंच, सपोर्टिव सुपरविजन विजिट, इंस्पेक्शन विजिट, ARP, SRG, KRP, DC, डायट मेंटर, शिक्षक संकुल, DIKSHA- Digital Infrastructure for Knowledge Sharing, दीक्षा पोर्टल, दीक्षा प्रशिक्षण माड्यूल, DCF-DATA CAPTURE FORMAT, Experience Sharing, Targeted intervention, एजेंडा बिंदु, स्कूल रेडीनेस कार्यक्रम, Fit India Quiz, 'चहक' ( Children Having Happiness in Ambience and Acquiring Knowledge) कार्यक्रम, गूगल फार्म, समग्र शिक्षा, प्री-प्राइमरी शिक्षा, आदर्श पाठ योजना, पीयर लर्निंग, शिक्षक संदर्शिका, कम्पोजिट विद्यालय, कम्पोजिट ग्रांट, रिमेडियल क्लास, ई-वेरीफिकेशन, गूगल मीट, 'निष्ठा' ( NISHTHA - National Initiative for School Heads' and Teachers' Holistic Advancement), निष्ठा प्रशिक्षण माड्यूल, शिक्षण योजना, पाठ योजना, शिक्षक डायरी, TLM-Teaching Learning Materials, गतिविधि, बाल वाटिका, गणित एवं विज्ञान किट्स, यूट्यूब सेशन, समृद्ध माड्यूल, NAT (NIPUN Assessment Test), ओएमआर सीट, FLN-Foundational Literacy & Numeracy, लर्निंग इनहांसमेंट प्रोग्राम, मिशन कायाकल्प, फाउंडेशन लर्निंग, शिक्षण संग्रह हस्तपुस्तिका, आधारशिला हस्तपुस्तिका, ध्यानाकर्षण हस्तपुस्तिका, BALA (Building as learning aid), फाउंडेशन शिविर, ध्यानाकर्षण शिविर, लर्निंग गैप, ICT, आपरेशन लर्निंग, लर्निंग आउटकम, प्रिंट रिच सामग्री, बाल संसद, NLO (Nested learning outcome), फोकल लर्निंग आउटकम, शिक्षण तकनीक, आधारभूत आकलन, ERAC (Experience Reflection Aplication Consolidation), मिशन शक्ति, रीडिंग कैंपेन, आपरेशन विद्यालय कायाकल्प, शारदा कार्यक्रम, UDISE+ (Unified District Information System for Education Plus), यू-डाइस कोड, CRC (Cluster Resource Center), Latitude-Longitude, रीडिंग कार्नर, स्टूडेंट ड्राप आउट, लाइब्रेरी, स्मार्ट क्लास, मॉडल स्कूल, CWSN- Children With Special Needs, जीरो बैलेंस एकाउंट, SS(EE)-समग्र शिक्षा एलीमेंट्री एजूकेशन, स्टूडेंट रोल बैक, MDM, दुग्ध वितरण, फल वितरण, PTM-Parent-teacher meeting, SMC- School Management committee, NMMS (National Means-Cum-Merits Scholarship), EHRMS- Electronic Human Resource Management System, मानव संपदा पोर्टल, मानव संपदा आईडी, मानव संपदा पासवर्ड, स्टूडेंट्स आईडी, विभिन्न प्रकार के आनलाइन लीव, पेरोल, Leave Prefixed day-Leave Suffixed day, ई-सर्विस बुक । उपर्युक्त शब्दों से परिचित होना, समझना, आवश्यकतानुसार इनसे सम्बन्धित आदेश-निर्देशों में सामंजस्य बनाते हुए उसका समयबद्ध अनुपालन करना शिक्षकों के लिए अत्यंत ही तनावपूर्ण कार्य होता जा रहा है।
👉 शिक्षकों के लिए विभिन्न मोबाइल ऐप, बने सिरदर्द-
शिक्षकों को दीक्षा ऐप, रीड एलांग ऐप, प्रेरणा डीबीटी ऐप, प्रेरणा ऐप, निपुण लक्ष्य ऐप, समर्थ ऐप, सरल ऐप आदि का अपने निजी मोबाइल में इंस्टाल करना, निजी खर्च से इंटरनेट पैक डलवाना, सभी का यूजर आईडी, पासवर्ड बनाना तथा याद रखना। इन ऐप्स का समुचित प्रयोग भी करना उनकी विवशता है। यह विवशता भी अंततः शिक्षकों के तनाव में वृद्धि कर रही है।
👉 विद्यालय अवकाशों में हुई कटौती गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा उद्देश्य पूर्ति में सहायक या बाधक
सरकार द्वारा बेसिक शिक्षा में गुणवत्ता सुधार हेतु बेसिक शिक्षकों को देय वार्षिक अवकाशों में पूरे वर्ष में कई दिनों की कटौती की गई है। यहां तक कि वार्षिक अवकाश सूची में कई महापुरुषों की जयंती को अवकाश में गिनती तो कर दी जाती है परन्तु इन जयंती तिथि को मनाने हेतु शिक्षकों को विद्यालय जाना ही पड़ता है।
शिक्षकों को विशेषकर पुरुष शिक्षकों को अवकाश का टोटा पड़ा हुआ है। उन्हें 14 आकस्मिक अवकाश के अतिरिक्त कोई भी अवकाश अलग से देय नहीं है। स्थिति यह है शिक्षकों को शादी सहित विभिन्न जरूरी घरेलू तथा निजी जिम्मेदारियों का निर्वहन करने के लिए येन-केन तरीके से मेडिकल अवकाश तक लेकर अपने निजी जिम्मेदारियों का निर्वहन करना पड़ रहा है।
कई शिक्षकों को इस तरह बगैर बीमारी मेडिकल अवकाश लेना अपराध बोध सा लगता है और उनके तनाव में वृद्धि करता है। तनाव इस बात का भी कि भविष्य में वास्तव में लम्बे मेडिकल अवकाश की स्थिति आन पड़े तो कहीं ऐसा न हो कि ये बचे अवकाश कम न पड़ जाएं। विचारणीय है कि बेसिक शिक्षकों की अवकाश कटौती शिक्षा गुणवत्ता सुधार में सहायक या बाधक।
👉 शिक्षकों का एमडीएम दायित्व निर्वहन शिक्षण एकाग्रता में बड़ी बाधक
स्कूलों में बच्चों को गुणवत्तापूर्ण एमडीएम, दूध, फल के नियमित वितरण की व्यवस्था की सम्पूर्ण जिम्मेदारी भी विद्यालय हेडमास्टर/प्रभारी की ही है। सर्वविदित है कि व्यवहार में सम्बन्धित ग्राम का ग्रामप्रधान ही एमडीएम, दूध तथा फल वितरण करता है या इसके वितरण में पूरी दखल रखता है। अपवाद को छोड़ दिया जाए तो लगभग सभी ग्रामप्रधान एमडीएम, दूध तथा फल वितरण को अपनी आय का मुख्य स्रोत समझते हैं। ग्राम का जनप्रतिनिधि होने के कारण वे एमडीएम आदि वितरण में सम्बन्धित हेडमास्टर/प्रभारी का हस्तक्षेप तनिक भी पसंद नहीं करते हैं।
हेडमास्टर/प्रभारी क्षेत्र के ग्रामप्रधान से सीधे उलझने की स्थिति में भी नहीं होता और अंततः गुणवत्तापूर्ण एमडीएम, फल, दूध वितरण के जवाबदेही में फंसने के तनावपूर्ण ड्यूटी करने को वह बाध्य है। इतना ही नहीं एमडीएम कन्वर्जन कास्ट भी कभी-कभी पांच-छह माह तक नहीं आता, ऐसे में ग्राम प्रधान उधार न मिलने का कारण बताते हुए एमडीएम, दूध, फल वितरण से हाथ खड़ा कर देता है। ऐसी स्थिति में विभागीय अधिकारी सम्बन्धित हेडमास्टर/प्रभारी को कार्रवाई की चेतावनी देकर एमडीएम, दूध, फल वितरण कराने के लिए बाध्य करते हैं। ऐसे में हेडमास्टर/प्रभारी अपने वेतन से एमडीएम, दूध, फल वितरण कराने को विवश होता है। यह स्थिति भी शिक्षकों के शिक्षण एकाग्रता में बाधक एवं तनाव वृद्धि का कारण बनती है।
👉 अधिकारियों की नजर में बेसिक शिक्षक हैं मल्टीटास्किंग टूल
अधिकारीगण बेसिक शिक्षकों को शिक्षण के अतिरिक्त कई अन्य गैर शैक्षणिक जिम्मेदारी भी सौंप देते हैं जैसे, पोलियो बूथ ड्यूटी, बीएलओ ड्यूटी, जनगणना ड्यूटी, पशु गणना ड्यूटी, कोरोना वेरीफायर ड्यूटी, कांवड़ यात्रियों के सहयोग सम्बन्धी ड्यूटी, चुनाव ड्यूटी, राशन कार्ड सत्यापन ड्यूटी, राशन वितरण करवाने की ड्यूटी, सड़क पर शौच करने से रोकने सम्बन्धी ड्यूटी, गौशाला हेतु भूसा एकत्र करने सम्बन्धी ड्यूटी, बाढ़ राहत सहायता सम्बन्धी ड्यूटी, डीबीटी हेतु आधार सत्यापन, यूपी बोर्ड परीक्षा कक्ष निरीक्षक ड्यूटी, विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के कक्षनिरीक्षक ड्यूटी, विभिन्न जागरूकता अभियान, रैली आदि निकलवाना आदि। इस प्रकार बेसिक शिक्षकों को मल्टीटास्किंग टूल समझ कर विभिन्न गैर शैक्षणिक दायित्व देने से शिक्षक न सिर्फ निराश होता अपितु उसके शिक्षण एकाग्रता में बाधा भी पड़ती है।
👉 बेसिक शिक्षकों की जायज मांग की लगातार उपेक्षा तथा भेदभाव शिक्षकों के लिए मानसिक तनाव वृद्धि का कारण
नि: शुल्क चिकित्सा सुविधा, अर्जित अवकाश, प्रतिकर अवकाश, पदोन्नति, स्थानांतरण, समायोजन सहित दर्जनों मांग को जिम्मेदारों द्वारा लगातार नजर अंदाज किया जा रहा है। प्रधानाध्यापक पद पर पदोन्नति न करके बगैर पदोन्नति प्रभारी प्रधानाध्यापक की भूमिका निर्वहन करने के लिए बेसिक शिक्षकों को बाध्य किया जा रहा है। इसके लिए उन्हें कोई भी अतिरिक्त पारिश्रमिक या धनराशि भी नहीं दिया जाता। बेसिक शिक्षक स्वयं को अन्य राज्य कर्मचारियों की तुलना में न सिर्फ उपेक्षित और शोषित महसूस कर रहे हैं अपितु उनके तनाव में वृद्धि भी हो रही है।
👉 परिषदीय विद्यालय यानी लेखा-जोखा और सूचनाओं का अंबार
परिषदीय विद्यालयों में विभिन्न तरह की पंजिकाएं होती हैं उनको अद्यतन करना। विभिन्न फार्मेट में तुरंत सूचनाएं मांग ली जाती हैं उनको तैयार करना तथा प्रेषित करना, डीबीटी आधार सत्यापन, विभिन्न डाटा फीडिंग तथा अपलोडिंग, विभिन्न बैठक आयोजित करना उसका लेखा-जोखा तैयार करने की भी जिम्मेदारी शिक्षकों को ही दी गई है।
ध्यातव्य है इन सब लेखा-जोखा कार्यों तथा डाटा फीडिंग-अपलोडिंग के लिए परिषदीय विद्यालयों में कोई भी लिपिक या कम्प्यूटर आपरेटर का पद सृजित नहीं है। शिक्षकों को शिक्षण दायित्व के निर्वहन के साथ ही विभिन्न तरह का लेखा-जोखा तैयार करने के लिए बाध्य करना शिक्षकों का न सिर्फ शारीरिक-मानसिक शोषण है अपितु शिक्षकों के निराशा और तनाव वृद्धि का एक मुख्य कारण भी है।
👉 आदेश-निर्देशों में समन्वय का घोर अभाव-
एक तरफ टाइम एंड मोशन संस्था का आदेश है शिक्षक विद्यालय समय में केवल शिक्षण कार्य ही करेंगे। कोई भी गैर शैक्षणिक कार्य विद्यालय समय में नहीं होगा। दूसरी तरफ विद्यालय समय में शिक्षकों के विभिन्न प्रशिक्षण, बैठक, आनलाइन-आफलाइन कार्यशाला, गोष्ठी, जागरूकता कार्यक्रम, विभिन्न अभियान, यूट्यूब सेशन, विभिन्न सूचना प्रेषण की अपेक्षा आदि के लिए आदेश आ जाते हैं। ऐसे आदेश शिक्षकों के लिए शिक्षण एकाग्रता में न सिर्फ बाधक हैं बल्कि उनके समक्ष असमंजस की स्थिति भी बन जाती है। इससे अंततः झुंझलाहट और तनाव ही बढ़ता है।
अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि परिषदीय शिक्षक किस तनाव में ड्यूटी कर रहे होंगे। यूं तनावग्रस्त शिक्षक कैसे पूरे उत्साह के साथ अपने कर्तव्य का सफलतापूर्वक निर्वहन कर सकेगा ये विचारणीय है। 🤔
✍️ डी०सी० शर्मा
(परिषदीय शिक्षक, उत्तर प्रदेश)