यूनेस्को द्वारा जारी ‘ग्लोबल एजुकेशन मॉनिटरिंग रिपोर्ट-2022’ के अनुसार भारत में पिछले आठ साल में नए खुले प्रत्येक 10 स्कूलों में से 7 निजी हैं। भारत में 2014 के बाद से स्थापित 97,000 स्कूलों में से करीब 67,000 निजी और गैर सरकारी सहायता प्राप्त हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 30 साल में दक्षिण एशिया ने दुनिया के बाकी हिस्सों को पीछे छोड़ते हुए शिक्षा के क्षेत्र में तेजी से विस्तार किया है। सरकारी स्कूलों में शिक्षा और गुणवत्ता की कमी ने भारत में निजी शिक्षा को बढ़ावा दिया है। यूनेस्को के सर्वे में शामिल केवल 46 वयस्कों ने कहा कि स्कूली शिक्षा प्रदान करने की प्राथमिक जिम्मेदारी सरकार के पास है, 35 मध्यम और उच्च आय वाले देशों में यह सबसे कम है। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि सरकारी सहायता के बिना खुले स्कूलों के माध्यम से शिक्षा असमानता को बढ़ावा देगी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत और पाकिस्तान में लगभग एक तिहाई छात्र और नेपाल में एक चौथाई छात्र निजी स्कूलों में पढ़ते हैं। भारत के आठ शहरों में कम आय वाले परिवारों के 4,400 माता-पिता की प्राथमिकताओं के विश्लेषण में पाया गया कि 86 से अधिक बच्चे निजी स्कूल में नामांकित थे या कक्षा एक से निजी स्कूल में जाएंगे। अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में दाखिला अभिभावकों की पहली पसंद है।
प्राथमिक स्तर पर औसत फीस 500 से 1500 तक
यूनेस्को की ओर से देश के पांच राज्यों, आंध्र प्रदेश, असम, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर और तेलंगाना में 1,052 मान्यता प्राप्त और गैर-मान्यता प्राप्त स्कूलों के बीच सर्वे किया गया था। सर्वे के अनुसार, अधिकांश सस्ते निजी स्कूल 2000 के दशक की शुरुआत में स्थापित हुए थे। स्कूलों में प्राथमिक शिक्षा के लिए औसत मासिक शुल्क जम्मू-कश्मीर में 500 रुपए, हरियाणा में 750 रुपए, आंध्र प्रदेश में 900 रुपए और तेलंगाना में 1500 रुपए था।
प्राथमिक स्तर पर औसत फीस 500 से 1500 तक
यूनेस्को की ओर से देश के पांच राज्यों, आंध्र प्रदेश, असम, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर और तेलंगाना में 1,052 मान्यता प्राप्त और गैर-मान्यता प्राप्त स्कूलों के बीच सर्वे किया गया था। सर्वे के अनुसार, अधिकांश सस्ते निजी स्कूल 2000 के दशक की शुरुआत में स्थापित हुए थे। स्कूलों में प्राथमिक शिक्षा के लिए औसत मासिक शुल्क जम्मू-कश्मीर में 500 रुपए, हरियाणा में 750 रुपए, आंध्र प्रदेश में 900 रुपए और तेलंगाना में 1500 रुपए था