इंटरव्यू में दिव्यांग से चलवा दी साइकिल, मुआवजे का आदेश
प्रयागराज, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राजकीय डिग्री कॉलेज में लाइब्रेरी चपरासी पद पर साक्षात्कार देने गए दिव्यांग से जबरदस्ती साइकिल चलवाने के मामले को गंभीरता से लिया है। कोर्ट ने कहा कि सरकारी अधिकारी न सिर्फ दिव्यांग के अधिकारों की रक्षा करने में असफल रहे बल्कि उसके सम्मान को भी उन्होंने ठेस पहुंचाई है।
यह आदेश न्यायमूर्ति एसडी सिंह ने सहारनपुर के प्रदीप कुमार गुप्ता की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है। कोर्ट ने कहा कि सरकारी मशीनरी ने न सिर्फ दिव्यांग को फेल कर दिया बल्कि उसके मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रता का हनन भी किया है। कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों ने उसे यह बताने की बजाय कि यह पद दिव्यांगजनों के लिए आरक्षित नहीं है, उसे साइकिल चलाने के लिए कहा, जो गलत है। विज्ञापन में इस बात का जिक्र नहीं था कि किस तरह की साइकिल चलानी है इसलिए याची से ट्राई साइकिल चलाई जा सकती थी। जो वह बड़ी कुशलता से चला सकता था। कोर्ट ने कहा कि उसे सामान्य अभ्यर्थी मानते हुए उसकी नियुक्त पर विचार करना चाहिए था।
याची ने राजकीय डिग्री कॉलेज देवबंद सहारनपुर में लाइब्रेरी चपरासी पद के लिए आवेदन किया था। इस पद के लिए योग्यता पांचवी पास व साइकिल चलाने की थी। याची का कहना था कि साक्षात्कार प्रिंसिपल ने लिया। उन्होंने हाईस्कूल पास की योग्यता मांगी जो याची के पास नहीं थी तथा वह साइकिल भी नहीं चला सकता है।
हालांकि कोर्ट का कहना था कि पद आरक्षित नहीं होने के कारण याची नियुक्ति का दावा नहीं कर सकता लेकिन इस पर हैरानी जताई की पद चिह्नित किए बगैर व बिना आरक्षण के विज्ञापन जारी किया गया। कोर्ट ने कहा कि राज्य के अधिकारियों द्वारा किए गए इस निरादर के लिए याची पांच लाख मुआवजा पाने का हकदार है। कोर्ट ने यह मुआवजा तीन माह के भीतर सीधे उसके खाते में भेजने का निर्देश दिया है।
हालांकि कोर्ट का कहना था कि पद आरक्षित नहीं होने के कारण याची नियुक्ति का दावा नहीं कर सकता लेकिन इस पर हैरानी जताई की पद चिह्नित किए बगैर व बिना आरक्षण के विज्ञापन जारी किया गया। कोर्ट ने कहा कि राज्य के अधिकारियों द्वारा किए गए इस निरादर के लिए याची पांच लाख मुआवजा पाने का हकदार है। कोर्ट ने यह मुआवजा तीन माह के भीतर सीधे उसके खाते में भेजने का निर्देश दिया है।
.