इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा किउत्तर पुस्तिकाओं के पुनर्मूल्यांकन को निर्देशित करने या निर्देशित नहीं करने के मामले में सहानुभूति या करुणा की कोई भूमिका नहीं होती है। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान की पीठ ने अनूप कुमार सिंह व अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए की।
मामले में उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा सेवा आयोग ने विभिन्न विषयों में सहायक प्रोफेसर के रिक्त पदों को भरने के लिए विज्ञापन प्रकाशित किया था। याचिकाकर्ताओं ने भूगोल विषय में सहायक प्रोफेसर के पद के लिए आवेदन किया था और 30 अक्तूबर 2021 को लिखित परीक्षा में शामिल हुए। परीक्षा के बाद आयोग द्वारा उत्तर कुंजी प्रकाशित की गई थी। याचिकाकर्ताओं ने पाया कि आयोग द्वारा प्रकाशित उत्तर कुंजी में दिए गए 10 प्रश्नों के उत्तर गलत थे। इसलिए उन्होंने आयोग के समक्ष अपनी आपत्तियां उठाईं।
याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाई गई आपत्तियों पर विचार किए बगैर एक उत्तर को सही करके परिणाम घोषित किया गया। अभ्यर्थियों ने उसे हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी और उत्तर पुस्तिकाओं का पुनर्मूल्यांकन करने और फिर से परिणाम घोषित करने का निर्देश देने की भी मांग की। याचियों ने कहा कि आयोग ने मनमाने तरीके से आपत्तियों पर विचार किए बिना परिणाम घोषित कर दिया।
विशेषज्ञ के निर्णय की नहीं कर सकते न्यायिक समीक्षा
कोर्ट ने कहा कि न्यायालयों कोउम्मीदवारों की उत्तर पुस्तिकाओं का पुनर्मूल्यांकन या जांच करने का निर्देश नहीं देना चाहिए, क्योंकि इस मामले में उनकी कोई विशेषज्ञता नहीं है। यह भी कहा कि अकादमिक मामलों को शिक्षाविदों पर छोड़ दिया जाए, न्यायिक समीक्षा की कोई गुंजाइश नहीं है। मामले में पुनर्मूल्यांकन के लिए निर्देश देकर अपने अधिकार क्षेत्र को आगे नहीं बढ़ाना चाहिए, क्योंकि विशेषज्ञ के निर्णय की न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती है। ऐसे मामलों में न्यायालयों को दखल भी नहीं देना चाहिए। कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया।