जी हाँ, वहीं मोबाइल जिसे शिक्षकों ने अपनी खुद की कमाई से अपने घर परिवार रिश्तेदार से सम्पर्क साधने, मनोरंजन के साधन के तौर पर प्रयोग करने व बच्चों के बीच कक्षा शिक्षण को रोचक बनाने के लिए अपनी व्यक्तिगत इच्छा से खरीदा व प्रयोग किया। आज वही उनके लिए जी का जंजाल बनता जा रहा है। कभी कभी तो लगता है कि ये व्हाट्सअप के फाउंडर भी हैरान होंगे कि हमने जिस चैटिंग/इंटरटेनमेंट/सोशल प्लेटफॉर्म को बनाया था उसका प्रयोग भविष्य में हर 10 मिनट पर एक आधिकारिक वेतन रोको धमकी/कार्यवाही/सूचना देने के तौर पर होने लगेगा। हो यही रहा है फिलहाल...।कुछ अनसुलझे सवाल हैं जिनका जवाब देने को कोई तैयार नहीं है। सवाल 1- शिक्षकों की अपनी व्यक्तिगत सम्पत्ति है उनका मोबाइल, उनके अपनी खुद की कमाई का हिस्सा है वो, उन्होंने अपनी इच्छा से इसे प्रयोग किया।अगर वे न करें तो क्या कार्यवाही बनती है उनपर! सवाल 2 - शिक्षकों ने अपने व्यक्तिगत विकास के लिए व बच्चों के कक्ष शिक्षण को सरल सुलभ बनाने के लिए इसका कभी कभार परम्परागत शिक्षण में किया वो भी जब उन्हें आवश्यकता महसूस हुई...तो क्या थोपा जा सकता है कि नहीं आप प्रयोग करो ही करो?सवाल 3 - जब उनका खुद का फोन है तो अगर वे रिचार्ज नहीं करा पाते हैं तो क्या कार्यवाही बनती है उनपर ! वेतन इस बात का तो नहीं मिलता और न ही किसी सेवा नियमावली में ऐसा था कि आगे जाकर आपको अपना ही मोबाइल लेना है उसमें परमानैंट रिचार्ज कराकर रखना है। सवाल 4 - दुनिया भर के तमाम एप्स कोई क्यों रखे अपने मोबाइल में ? सवाल 5 - विभाग या व्यवस्थाएं जब इतना ही आवश्यक समझती हैं तो सभी के लिए इंतजाम क्यों नहीं करवातीं ? सवाल 6 - ये विद्यालय समय मे आखिर क्यों विभिन्न सूचनाएं विभागीय ग्रुप्स में भेजी जाती हैं औऱ उन्हें पढ़ने का मानसिक दबाव बनाया जाता है जबकि कहने को वो पढ़ाने का समय है। अभिभावक या अन्य की नजर में शिक्षक मोबाइल चला रहे हैं विद्यालय समय मे ऐसा माहौल तैयार किया जा रहा है या तो एक बकायदा प्रेस नोट जारी क्यों नहीं किया जाता कि शिक्षकों को विद्यालय समय मे मोबाइल समय-समय पर देखना आवश्यक है ऐसा विभाग उनसे करवा रहा है ।कई ऐसे सवाल हैं जो लाजमी हैं । इन सवालों को उठाने का मकसद बस यही है कि चौपट हो रही है पठन पाठन व्यवस्था, शिक्षकों को पढ़ाने नहीं दिया जा रहा विद्यालय समय मे, तमाम सूचनाएं विभिन्न एप्स व लिंक के माध्यम से मांगी जा रही हैं, दबाव है उन पर कि, वे ये सब विद्यालय समय मे ही करें औऱ समाज की नजरों में ये भ्रम भी फैलाया जा रहा है कि वे विद्यालय समय मे मोबाइल में व्यस्त रहते हैं। इन सबमें जो सबसे बड़ी बात हैं वो ये हैं कि, ये मोबाइल उनके खुद के हैं। विभाग या सरकार द्वारा प्रदत्त नहीं।क्या निजी संपत्ति/साधन विभाग या सरकार का हो सकता है? आज विद्यालय के बाद का समय भी शिक्षकों के खुद के विकास और अगले दिवस की तैयारी या अपने आप को अपडेट रखने के लिए नहीं रह गया है। वे बाध्य कर दिए गए हैं कि वे अब शिक्षण में अपने से नया कुछ न सीखें वो सीखें जो उन्हें बस बताया जा रहा है - जैसे सूचना देना, एप्स पर फीडिंग करना, यूट्यूब सेशन देखना, बिना आवश्यकता ट्रेनिंग करना। एक पहले का समय था जब शिक्षक निश्चिन्त थे विद्यालयों में पठन पाठन को लेकर, विद्यालय समय के बाद का समय उनका खुद का समय था नया सीखने को। तब परिणाम क्या थे और अब क्या हैं कोई सबक नहीं लेना चाहता। इस तरह आँकड़ो की कलाबाजियां लगाकर लगता है कि आप कुछ हासिल कर सकेंगे तो आप भ्रम मे हैं, आप बस मानसिक तनाव ले रहे हैं और दे रहे हैं इसके अलावा कुछ नहीं।#जय_हों.....शोसल मिडिया से प्राप्त