लखनऊ: राज्य सरकार की सेवाओं में ज्येष्ठता के आधार पर होने वाले चयन (पदोन्नति) पर विचार करते समय कार्मिक के पिछले 10 वर्षों के बजाय अब उसकी आखिरी पांच वर्षों की वार्षिक गोपनीय प्रविष्टियों (एसीआर) और सुसंगत सेवा अभिलेखों पर ध्यान दिया जाएगा। अंतिम पांच वर्षों से तात्पर्य संबंधित चयन वर्ष से ठीक पांच साल पहले की अवधि के अभिलेखों से होगा। ज्येष्ठता आधारित चयनों को वस्तुनिष्ठ और पारदर्शी बनाने और विभागों की प्रक्रिया में एकरूपता लाने के लिए कार्मिक विभाग ने सामान्य मार्गदर्शक सिद्धांत तय कर दिए हैं।
मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र की ओर से शुक्रवार को जारी शासनादेश के तहत पांच वर्षों की विचारण अवधि में से 24 महीने से अधिक की प्रविष्टियां पूरी न होने पर और अंतिम तीन वर्ष में से 12 महीने से अधिक की एसीआर न होने पर चयन टाल दिया जाएगा। लघु दंड के लिए कार्मिक को आदेश होने के बाद पहले चयन में अनुपयुक्त घोषित किया जाएगा। वेतनवृद्धि रोकने के लिए कोई अवधि तय की गई है तो उसके बाद ही पदोन्नति की जाएगी। वृहद दंड के तहत यदि कार्मिक की संचयी प्रभाव के साथ वेतनवृद्धि रोकी गई है तो आदेश के बाद प्रथम तीन चयन वर्षों में उसकी पदोन्नति नहीं होगी। अवधि पूरी होने के बाद पदोन्नति होगी।
कार्मिक को रिक्तियां और ज्येष्ठता होने के बावजूद दो बार अनुपयुक्त किया जाएगा। कार्मिक को किसी निम्नतर पद या श्रेणी या समय वेतनमान में अवनति का दंड दिये जाने की स्थिति में दंडादेश जारी होने की तारीख से पदावनति के पद पर कार्यरत कनिष्ठ कर्मचारी की पदोन्नति के बाद ही पदावनत कार्मिक की पदोन्नति पर विचार किया जाएगा। यदि किसी कार्मिक को किसी दंड या प्रतिकूल तथ्य के होते हुए भी पदोन्नति मिल गई है तो अगले प्रमोशन में यह तथ्य बाधक नहीं बनेगा। वार्षिक प्रतिकूल प्रविष्टि असंतोषजनक या खराब होगी, उस वर्ष में कार्मिक को पदोन्नत नहीं किया जाएगा। यदि किसी कार्मिक की सत्यनिष्ठा किसी वर्ष अप्रमाणित/संदिग्ध रही है या रोकी गई है तो संबंधित चयन वर्ष में पदोन्नति नहीं की जाएगी। अगले वर्ष उसकी सत्यनिष्ठा प्रमाणित होती है तो उसे अनुपयुक्त नहीं माना जाएगा।
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