प्रयागराज: प्रदेश के उच्च प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत लगभग 27 हजार से अधिक अनुदेशकों को 17 हजार रुपया प्रतिमाह मानदेय देने संबंधी एकल पीठ के निर्णय के खिलाफ प्रदेश सरकार की अपीलों पर मंगलवार को भी सुनवाई पूरी नहीं हो सकी। भारत सरकार की तरफ से मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली खंडपीठ में अनुसचिव (अंडर सेक्रेटी) स्वर्निश कुमार सुमन बिना किसी रिकॉर्ड पेश हुए। उनके व्यवहार से खफा कोर्ट ने आदेश दिया कि सरकार उन्हें प्रयागराज आने का यात्रा भत्ता नहीं दें। कोर्ट ने टिप्पणी की कि वह प्रयागराज घूमने आए हैं। अपर सालिसिटर जनरल (एएसजी) शशि प्रकाश सिंह के अनुरोध पर मुकदमे की सुनवाई को फिर टाल दिया गई। अब सुनवाई 11 जुलाई को होगी।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेश बिंदल तथा जस्टिस जेजे मुनीर की खंडपीठ प्रकरण में राज्य सरकार द्वारा दाखिल अपीलों की सुनवाई कर रही है। राज्य सरकार ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की प्रयागराज स्थित प्रधान पीठ तथा लखनऊ बेंच में अपील की है। इनकी एक साथ सुनवाई हो रही है। लखनऊ से वीडियो कांफ्रेसिंग के माध्यम से वरिष्ठ अधिवक्ता एलपी मिश्र तथा इलाहाबाद हाई कोर्ट से अपर महाधिवक्ता एमसी चतुर्वेदी राज्य सरकार की तरफ से उपस्थित रहे। अनुसचिव को भारत सरकार के एएसजी ने स्वयं कोर्ट से अनुरोध कर बुलाया था। केंद्र सरकार की तरफ पिछली तिथि पर अनुरोध किया गया था कि एक मौका दिया जाए। इस पर मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली खंडपीठ ने 24 मई को केस सुनने का निर्देश दिया था। केंद्र सरकार को यह बताना है कि अनुदेशकों को दिए जाने वाले मानदेय के मद में उसने राज्य सरकार को कितना पैसा दिया? राज्य सरकार का कहना है कि अनुदेशकों की नियुक्ति कांट्रेक्ट आधार पर की गई है। कांट्रेक्ट में उल्लेखित शतर्ें और मानदेय लागू होगा। केंद्र सरकार ने अपना अंश राज्य सरकार को नहीं दिया है। अनुदेशकों का कहना है कि केंद्र सरकार ने उनका मानदेय 2017 में 17 हजार रुपये कर दिया था। इसके बाद भी उन्हें बढ़ा हुआ मानदेय नहीं मिल रहा है।
’बिना रिकार्ड के खंडपीठ के समक्ष पेश हुए थे केंद्र सरकार के अधिकारी ’प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत अनुदेशकों के मानदेय से जुड़ा मसला